मौलाना मौदूदी के अनुसार इस्लाम राष्ट्रवाद के बारे में क्या कहता है?

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25 सितंबर 1903 को औरंगाबाद में जन्मे मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी बीसवीं सदी ईस्वी में इस्लाम के सबसे बड़े अलंबरदारों में से एक...

पीर अली ख़ान : स्वतंत्रता संग्राम का अनाम योद्धा

अंग्रेज़ी हुकूमत ने 7 जुलाई, 1857 को पीर अली और उनके साथियों को बीच सड़क पर फांसी पर लटका दिया था। आज बिहार की राजधानी पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान के पास उनके नाम पर बना एक छोटा-सा पार्क “शहीद पीर अली ख़ान पार्क” उनकी यादगार है।

उत्तरकाशी में क्या चल रहा है?

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मुसलमानों की दुकानों पर लगाए गए इन पोस्टरों में कहा गया था कि 15 जून को होने वाली महापंचायत से पहले इस इलाक़े को छोड़ कर चले जाएं, जिसके बाद इस इलाक़े से मुस्लिम व्यापारियों का पलायन होने लगा।

अन्याय से लड़ने के लिए ‘सिर्फ़ एक बंदा काफ़ी है’

ऐसे लाखों केस आज भी न्यायालय की तिजोरियों में बंद होंगे जिन पर तारीख़ें तो आती हैं, लेकिन फ़ैसले नहीं आते। मुजरिम खुले आम घूम रहे हैं और पीड़ित अपना मुंह छुपाते फिर रहे हैं कि कोई उन पर लांछन न लगाए। यह फ़िल्म कहती है कि अब समय बदलना चाहिए। पीड़ित अगर हर हाल में अडिग रहे तो फ़ैसले भी उनके पक्ष में होंगे।

क्या एहसान जाफ़री को हम भूल जाएंगे?

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21 साल पहले, आज (28 फ़रवरी) ही के दिन, गुजरात में हिन्दुत्ववादी भीड़ ने गुलबर्ग सोसाइटी पर हमला किया था जिसमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफ़री सहित 69 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी। एहसान जाफ़री ने गुलबर्ग सोसायटी के लोगों को बचाने के लिए सबको फ़ोन किये, यहाँ तक कि तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भी, लेकिन किसी ने उनकी मदद नहीं की। कौन थे एहसान जाफ़री? क्या थी गुलबर्ग सोसायटी और क्या हुआ उनके साथ? पढ़िए इस लेख में।

मौलाना आज़ाद के समावेशी विचारों पर बात करने की आवश्यकता है – प्रोफ़ेसर एस०...

अपने वक्तव्य में प्रोफ़ेसर हबीब ने कहा कि, “मौलाना आज़ाद केवल राजनीतिक व्यक्ति या एक इस्लामिक विद्वान नहीं थे बल्कि उसके अलावा भी बहुत कुछ थे जिस पर बात करने की आवश्यकता है। मौलाना आज़ाद एक उत्कृष्ट लेखक, वक्ता, संगीत प्रेमी, कला प्रेमी, साहित्यकार, स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ भारत विभाजन के विरुद्ध सबसे प्रखर आवाज़ थे, जिनसे प्रभावित होकर लाखों मुसलमानों ने मुस्लिम लीग और विभाजन का विरोध किया था।”

‘बेटी बचाओ’ के नारे का पोल खोलती है एनसीआरबी की रिपोर्ट

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‘बेटी बचाओ’ के नारे का पोल खोलती है एनसीआरबी की रिपोर्ट उम्मे वरक़ा “किसी भी समाज की तरक़्क़ी का मापदंड उस समाज की महिलाओं के विकास...

पर्यावरण सुधारों के लिए बड़े पैमाने पर भागीदारी की आवश्यकता है

पारिस्थितिकीय तंत्र को नुक़्सान पहुंचाने वाली जीवन-पद्धति की वजह से हमें आज कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है लेकिन पर्यावरण सुधार शायद ही हमारी राजनीतिक बहसों का हिस्सा बनता हो। हमारे पास जाति और पंथ, धर्मस्थलों और सांस्कृतिक पहचान आदि के बारे में राजनीति करने का समय है लेकिन पर्यावरणीय सुधारों के संबंध में हमारी कोई राजनीतिक सक्रियता नहीं है।

[व्यंग्य] हम आज तक टमाटर की ग़ुलामी से बंधे हुए हैं!

देश फिर से 2014 में आज़ाद हो गया है मगर हम आज तक टमाटर की ग़ुलामी से बंधे हुए हैं! शर्म आनी चाहिए हमें कि हम आज तक इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं हुए हैं, जबकि पिछले नौ साल से प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं कि मेरी और मत देखो, आत्मनिर्भर बनो! हम शर्म तक के मामले में उनकी ओर देख रहे हैं कि पहले उन्हें किसी एक बात पर तो शर्म आए, तब हमें भी आने लगेगी!

साउथ एशियन यूनिवर्सिटी में छात्रों का उत्पीड़न जारी

छात्रवृत्ति बढ़ाने की माँग को लेकर अक्टूबर 2022 में हुई एक हड़ताल में शामिल होने के लिए यूनिवर्सिटी द्वारा पाँच छात्रों पर दंडात्मक कार्रवाई की गई थी, जिनमें से एक छात्र अम्मार अहमद की हालत बिगड़ गई थी। अम्मार को हार्ट अटैक आया था। उनकी हालत अभी भी नाज़ुक बनी हुई है और वह Body Paralysis का शिकार हैं। इसके बावजूद यूनिवर्सिटी का हठधर्मितापूर्ण रवैया बरक़रार है और अभी भी छात्रों को निष्कासित करने का सिलसिला चल रहा है।