भारत में प्राथमिक शिक्षा बनी चिंता का विषय

बैंक ने अपनी रिपोर्ट ‘‘वर्ल्ड डेवलेपमेंट रिपोर्ट 2018 : लर्निंग टू रियलाइज एजुकेशन्स प्रॉमिस’’ में कहा, ‘‘ग्रामीण भारत में तीसरी कक्षा के तीन चौथाई छात्र दो अंकों के, घटाने वाले सवाल को हल नहीं कर सकते और पांचवीं कक्षा के आधे छात्र ऐसा नहीं कर सकते।’’

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भारत में तमाम परेशानियों को उठाते हुए स्कूल जाते हुए बच्चों की तस्वीरें आये दिन सुर्खियां बनती रहती हैं, लेकिन विश्व बैंक ने हाल ही मैं जो आंकड़े दिये है वो चौकाने वाले है। विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में दूसरी कक्षा के छात्र एक छोटे से पाठ का एक शब्द भी नहीं पढ़ पाते हैं।
बैंक ने अपनी रिपोर्ट ‘‘वर्ल्ड डेवलेपमेंट रिपोर्ट 2018 : लर्निंग टू रियलाइज एजुकेशन्स प्रॉमिस’’ में कहा, ‘‘ग्रामीण भारत में तीसरी कक्षा के तीन चौथाई छात्र दो अंकों के, घटाने वाले सवाल को हल नहीं कर सकते और पांचवीं कक्षा के आधे छात्र ऐसा नहीं कर सकते।’’
विश्व बैंक की इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत 12 देशों की सूची में दूसरे नंबर पर है और मलावी पहले स्थान पर है।
एक ओर जहां विकास के बड़े बड़े दावे किये जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर प्राथमिक  शिक्षा का गिरता स्तर पूरे देश के लिए एक गहन चिंता का विषय है।

वर्ष 2001 में देश में साक्षरता 64.8% थी जो 2011 में 8.2% बढ़कर 73% तो हो गयी लेकिन आकंड़ों के बढ़ने के साथ ही गुणवत्ता कंहीं पीछे छूट गयी। किसी भी खूबसूरत इमारत की मज़बूती उसकी नींव की मज़बूती पर निर्भर करती है। बच्चों के सुनहरे सपनों को सच करने के लिये प्राथमिक शिक्षा उसी नींव की तरह होती है जिस पर उनके भविष्य के ख़्वाबों का महल खड़ा होता है। इस रिपोर्ट में ये कहा गया है कि बिना ज्ञान के शिक्षा देना ना केवल विकास के अवसर को बर्बाद करना है बल्कि दुनियाभर में बच्चों और युवा लोगों के साथ बड़ा अन्याय भी है। बच्चे इस देश का आने वाला कल है, सरकार को इस रिपोर्ट की गम्भीरता को समझते हुए शीघ्र ऐसे उपाय करने चाहिये जिससे कि प्राथमिक शिक्षा के स्तर में सुधार लाया जा सके।

अ. रहीम खान

सेंट्रल युनिवर्सिटी राजस्थान


        

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