हम बात बात में हिंसा का रास्ता अपनाने लगते हैं, यह हम सबकी कमज़ोरी है !

अरुणाचल प्रदेश में छह समुदायों को अनुसूचित जाति और स्थायी निवासी का दर्जा दिए जाने के लिए सरकार बिल ला रही थी। जिसके विरोध में हिंसा भड़क उठी है। अब अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू ने कहा है कि यह विधेयक नहीं लाया जाएगा। विरोध करने वाले इन छह समुदायों को राज्य का मूल बाशिंदा नहीं मानते हैं।

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अरुणाचल प्रदेश की राजधानी इटानगर से हिंसा की ख़बरें आ रही हैं। उप मुख्यमंत्री के घर को जला दिया गया है। उनकी गाड़ी भी जला दी गई है। पर्यावरण मंत्री का भी घर जला दिया गया है। मुख्यमंत्री के घर की तरफ प्रदर्शनकारी बढ़ने का प्रयास कर रहे थे। दीवार लांघने की कोशिश कर रहे एक व्यक्ति पर गोली चलानी पड़ी और उसकी मौत हो गई है।

अरुणाचल प्रदेश में छह समुदायों को अनुसूचित जाति और स्थायी निवासी का दर्जा दिए जाने के लिए सरकार बिल ला रही थी। जिसके विरोध में हिंसा भड़क उठी है। अब अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेमा खांडू ने कहा है कि यह विधेयक नहीं लाया जाएगा। विरोध करने वाले इन छह समुदायों को राज्य का मूल बाशिंदा नहीं मानते हैं।

इटानगर में सतीश कौशिक के पांच थियेटर को जला दिया गया है। सतीश कौशिक भीड़ की हिंसा से बच निकलने में कामयाब हुए हैं। इटानगर में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह हो रहा है। इन सभी को वहां से निकाल कर गुवाहाटी लाया गया है। फिल्म समारोह स्थगित हो गया है। फिल्म समारोह में आए गायक और कलाकार भी इस हिंसा में घिर गए। उनके उपकरणों को भी नुकसान पहुंचा है।

अभी हाल ही में पूरे पूर्वोत्तर भारत ने एकजुट होकर नागरिकता संशोधन विधेयक वापस लेने पर मजबूर कर दिया। जिस बिल को लेकर बीजेपी उत्तर भारत में आक्रामक हो रही थी कि एक भी घुसपैठिया नहीं बचेगा। उसने विरोध को देखते हुए चुपचाप इस विधेयक को ठंडे बस्ते में डाल दिया। राज्यसभा में पास कराने का कोई प्रयास नहीं किया। इस बिल के पास होने से हिन्दू माइग्रेंट को भारत की नागरिकता मिल जाती। पूर्वोत्तर में विरोध हो रहा था कि इससे बांग्लादेश से आए हिन्दू घुसपैठिए नागरिक हो जाएंगे।

विरोध को देखते हुए नेशनल रजिस्टर का भी काम धीमा किया गया जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट की डांट सरकार को सुननी पड़ी। हिन्दू हितों से समझौता नहीं करने का दावा करने वाली सरकार और नेता इस विधेयक को लेकर चुप हो गए हैं। अब पता नहीं घुसपैठिया निकालने के दावों का क्या होगा जिन्हें वे चुन-चुन कर निकाल रहे थे।

दूसरी तरफ पूर्वोत्तर में बीजेपी की सरकार होने के बाद भी कई राज्यों ने मिलकर जो हासिल किया है वह अभूतपूर्व है। बीजेपी की सहयोगी असम गण परिषद ने सरकार छोड़ दी। मेघालय के मुख्यमंत्री कोनार्ड संगमा भी विरोध में उतर आए। मिज़ोरम में लोग आज़ादी की मांग करने लगे और चीन में मिल जाने का पोस्टर लेकर सड़कों पर आ गए। दिल्ली के आज़ादी विरोधी चैनल भी चुप हो गए। उन्हें ज़रा भी नहीं ललकारा। कहीं ऐसा तो नहीं कि पूर्वोत्तर के मसलों से हिन्दी प्रदेशों को कोई फर्क ही नहीं पड़ता है। ऐसा ही लगता है। कम से कम मिज़ोरम की घटना को लेकर ये राष्ट्रवादी चैनल एकाध हफ्ता तो बहस कर ही सकते थे।

पूर्वोत्तर के लोगों ने साफ कर दिया कि कोई भी ताकतवर सरकार उनके इलाके में अवैध माइग्रेंट को बसाने की अनुमति नहीं दे सकती। धर्म के आधार पर घुसपैठ के सवाल का बंटवारा नहीं हो सकता है। इस मसले पर बीजेपी के नेताओं को पूर्वोत्तर में जाकर आक्रामक रूप से बोलते सुना हो या दिल्ली में बयान देते सुना हो तो बताइयेगा।

फिलहाल यही कहना चाहता हूं कि सरकारों से नाराज़गी रहेगी। उनकी नीतियों का विरोध रहेगा। हम बात बात में हिंसा का रास्ता अपनाने लगते हैं। यह हम सबकी कमज़ोरी है। हिंसा का रास्ता छोड़ना चाहिए। दिल्ली की मीडिया को अरुणाचल प्रदेश में हो रहे बवाल पर ध्यान देना चाहिए। उन चैनलों के पास बहुत संसाधन हैं। टीआरपी है। विज्ञापन का पैसा है वैसे चैनलों को पूर्वोत्तर को प्राथमिकता देनी ही चाहिए। आप हिन्दी प्रदेशों के पाठकों को भी पूर्वोत्तर की खबरों को जानने के लिए मेहनत करनी चाहिए। आपके हिन्दी के अखबार और चैनल आपको बताना नहीं चाहते। आप खुद ही वहां से निकलने वाले अखबारों को पढ़ें। जानें।

लेख साभार : रवीश कुमार

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