आर्थिक आधार पर आरक्षण (जोकि आरक्षण के आधारभूत तर्क सामाजिक पिछड़ेपन के तर्क को धता बताता है) को सफलतापूर्वक लागू होने के बाद, समाजिक पिछड़ेपन पर आधारित आरक्षण पर एक और हमला हुआ है। ये आघात भारत के विश्वविधालयों एंव कालेजो में प्रोफ्रेसेर्स की नियुक्तियों में लागू होने वाले रोस्टर फार्मूले में बदलाव के रूप में लगा है। इसका कुप्रभाव पूरे भारत के उन सभी कालेजों और विश्वविधालयों पर देखने को मिलेगा जिन्हे यूजीसी नियंत्रित करता है।
पिछला फार्मूला जोकि 200 प्वाइंट रोस्टर के नाम से जाना जाता है, के तहत नियुक्तियों में आरक्षित सीटों की गणना के लिएं कालेज/विश्वविधालय को एक इकाई माना जाता था। जबकि नये फार्मले के तहत अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण की गणना विभाग को एक इकाई मानकर की जाएगी।
नये विभागवार रोस्टर के लागू होने से कालेज/युनिवर्सटी की शैक्षिक नियुक्तियों में आरक्षण लगभग खत्म हो जाएगा। 200 प्वाइंट रोस्टर के तहत कालेज/युनिवर्सिटी को इकाई माना जाता था ना कि विभाग को। इसमें कालेज/युनिवर्सिटी के सभी छोटे-बड़े विभागो को मिलाकर आरक्षित सीटो की गणना की जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता था ताकि छोटे से छोटे विभाग जिनमे केवल चार ही शिक्षक होते हैं, में भी आरक्षण लागू हो सके। नये 13 प्वाईंट रोस्टर फार्मूले के तहत जिसमे विभाग को इकाई माना गया है इनमें अब आरक्षण न केवल विभागवार लागू होगा बल्कि ये शेक्षणिक पदों (असिस्टेंट प्रोफेसर,एसोसिएट प्रोफेसर,प्रोफेसर) के अनुसार भी होगा। इसके कारण बड़ी संख्या में आरक्षित पद अनारक्षित या खुली श्रेणी में चले जाएंगे।
उदाहरण के लिए, यदि किसी विभाग में 14 पद हैं तभी वहां पर एस.सी. एस.टी. व ओबीसी आरक्षण लागू होगा। क्योकिं 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण है तो पहली ओबीसी सीट तब भरी जाएगी जब विभाग का साइज़ 4 होगा। दूसरी ओबीसी आरक्षित सीट के लिए विभाग में शिक्षको की संख्या 8 और तीसरी आरक्षित नियुक्ती के लिए विभाग में स्वीकृत पदो की संख्या 12 होना आवश्यक है। इसी प्रकार एस.सी. 16 प्रतिशत आरक्षण के अनुसार उनके लिए पहले पद का सृजन तब होगा जब विभाग में पदो की संख्या कम से कम 7 होगी। अनुसूचित जनजाति के पहले आरक्षित पद का सृजन विभाग में पदो की संख्या 14 होने पर ही हो सकेगा। यदि प्रत्येक विभाग में 14 या उससे अधिक पद हों तो पुराने 200 प्वाइंट फार्मूले व नये 13 प्वाईंट फार्मूले के तहत बराबर ही आरक्षण मिलेगा। लेकिन समस्या ये है कि अधिकतर विभागों में स्वीकृत पदो की संख्या सात ही होती है। बहुत ही कम विभाग ऐसे होते हैं जिनमें पदो की संख्या 14 या उससे अधिक हो। ऐसें में, छोटे छोटे विभाग जिन्मे चार से कम शिक्षको के पद होगें, वहां कभी भी कोई आरक्षण लागू नही हो पाएगा। ऐसे ही यदि किसी विभाग में पदो की संख्या सात से कम है तो अनुसूचित जाति के अभ्यर्थी के लिए कोई पद आरक्षित नही होगा। अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थी को तो तब तक कोई आरक्षण नही मिलेगा,जब तक विभाग में पदो की संख्या 14 न हो जाए।
(टेबल-1)
Vacancies/Seats | 1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 |
Reservation Application | UR | UR | UR | OBC-1 | UR | UR | SC1 | OBC-2 | UR | UR | UR | OBC3 | UR | ST1 |
हालात और भी खराब होंगे जब इसको विश्वविधालयों में लागू करते समय इस इकाई का और अधिक बंटवारा शिक्षकों के उपलब्ध पदों (प्रोफेसर,असिसटेंट प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर) के स्तर पर होगा। यदि विश्वविधालय के किसी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर व असिसटेंट प्रोफेसर के तीन पद नही हैं तो वहां कभी आरक्षण लागू ही नही होगा। यदि विभाग एसोसिएट प्रोफेसर के 6 पद होंगे तब कही जाकर एक पद ओबीसी के लिए आरक्षित होगी और एस.सी. एस.टी. का आरक्षण कभी लागू ही नही हो पायगा। अनुसूचित जनजाति की हालत तो सबसे ज़्यादा खराब होगी क्योंकि उनके लिए पहली सीट तब आरक्षित होगी जब किसी विभाग में 13 या उससे ज़्यादा एसोसिएट और असिसटेंट प्रोफेसर के सृजित हों।आरक्षण के इस प्रकार की जरूरतों को बहुत कम विभाग ही पूरा कर पाएंगे। और इसतरह विश्वविधालयों में अनुसूचित जनजाति का आरक्षण पूरी तरह से समाप्त होता नज़र आ रहा है।
यदि आपको लगता है ये सब अभी दूर है तो आपको हाल ही में इंदिरा गांधी नेशनल ट्राईबल यूनिवर्सिटी द्वारा शिक्षक पदो की भर्ती के लिए निकाले गये विज्ञापन को एक बार अवश्य देखना चाहिये (स्त्रोत- 13 अप्रेल 2018- इंडियन एक्सप्रेस, पेज-10)। इससे आपका शक सच्चाई मे बदलता नज़र आएगा। निम्न फिगर-1 मे साफ तौर पर दिखाया गया है कि अगर 13 प्वांइट रोस्टर को लागू किया गया तो 95 प्रतिशत आरक्षित सींटे अनारक्षित में बदल जांएगी।
फिगर-1
फिगर-2
फिगर-2 में दिखाया गया है कि किस तरह नये फार्मूले के तहत आरक्षण सीटों की गणना करने से लगभग सभी आरक्षित सीटें अनारक्षित कोटे में चली जाएंगी। ये विश्लेषण हाल ही नौ केन्द्रीय विश्वविधालयों में जारी हुए शिक्षक भर्ती विज्ञापनो के आधार किया जा रहा है। अंतिम कॉलम को देखने पर मालूम होता है कि यदि विभागवार रोस्टर सिस्टम लागू किया गया तो नौ मे से छ: केन्द्रीय विश्वविधालयों के 90 प्रतिशत से अधिक पद अनारक्षित हो जाएंगे।
ये सब उन हालात मे किया जा रहा है जबकि 200 प्वाईंट रोस्टर लागू करने के बाद भी अनुसूचित जाति,जनजाति व ओबीसी का प्रतिनिधित्व उच्च शिक्षा में बहुत कम है। यदि नया विभागवार रोस्टर सिस्टम लागू होता है तो शिक्षण के क्षेत्र से दलितों,आदिवासियों और शुद्रों का पूरी तरह सफाया हो जाएगा। इस तरह ज्ञानोपार्जन के क्षेत्र में सदियों पुरानी ब्राहमणवादी मोनोपॉली फिर से कायम हो जाएगी।
असल में, पिछले साल इलाहबाद उच्च न्यायलय ने एक अभ्यर्थी की याचिका पर सुनवाई करते हुए 200 प्वाईंट रोस्टर को 13 प्वाइंट का कर देने का आदेश यूजीसी को दिया था। (दिनांक7/04/2016,विवेकानंद तिवारी बनाम भारत सरकार,रिट नम्बर43260)।
इस आदेश के बाद, यूजीसी को तो मानों जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई हो। उसने आनन-फानन में न्यायलय के आदेश को लागू कर दिया। लेकिन तीव्र विरोध प्रदर्शनो के बाद सरकार को इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम में जाना पड़ा। हालांकि सरकार 200 प्वाइंट रोस्टर के मामले में सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव याचिका दायर की थी लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। सरकार की ओर से ढीली पेरवी भी इसका एक कारण बताई जाती है। अब सरकार अध्यादेश लाकर ही 200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम को बचा सकती है। हालियां दस प्रतिशत आरक्षण जिसमें सामाजिक पिछड़ेपन को आधार ही नही माना गया है, को देखकर नही लगता कि सरकार ऐसा कोई कदम उठाने वाली है। ऐसें में सशक्त विरोध प्रर्दशन ही सरकार को इस मामले में अध्यादेश लाने को मजबूर कर सकते हैं। ऐसा ही एक अध्यादेश केन्द्र सरकार हाल ही में एस.सी.एस.टी. एक्ट को बहाल करने के लिए लेकर आई थी। जिससे सरकार ने कोर्ट के फेसले को पलट दिया था। यदि ऐसा नही हुआं तो विभागवार रोस्टर के द्वारा ये सरकार उच्च शिक्षा आरक्षण को पूरी तरह से समाप्त कर देगी।
लेख : दावा शेरपा
(असिस्टेंट प्रोफ्रेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय)
अंग्रेज़ी से अनुवाद : ज़ीशान गजाली