गीता प्रेस को ‘शांति’ पुरस्कार और ‘आल्ट-राईख’ की याद
2018 में कारवाँ पत्रिका ने यह लेख प्रकाशित किया था। कैरोल शैफ़र ने लिखा था और इसके प्रकाशन तथा लिखे जाने की तैयारी में दसियों वर्ष की मेहनत है। यह आलेख मूलतः ‘आर्कटोस’ नामक प्रकाशन गृह पर है। इस प्रकाशन के संस्थापक ‘डेनियल फ़्रायबर्ग’ और अन्य सदस्यों की विचारधारा ने दक़ियानूसी और नफ़रत फैलाने वाली किताबों का जो कारोबार खड़ा किया है उसे पढ़ते हुए आप सकते में आ जाएँगे।
[कविता] तरस आता है उस देश पर
“लॉरेंस फ़र्लिंगहेटी की यह कविता ‘तरस आता है उस देश पर’, उस देश की है, जिसकी बदनामी इस देश में नहीं हो सकती। इस-उस देश के बीच फँसे एक देश के नागरिकों के सामने एक कविता खड़ी है।” - रवीश कुमार
मौलाना आज़ाद के समावेशी विचारों पर बात करने की आवश्यकता है – प्रोफ़ेसर एस०...
अपने वक्तव्य में प्रोफ़ेसर हबीब ने कहा कि, “मौलाना आज़ाद केवल राजनीतिक व्यक्ति या एक इस्लामिक विद्वान नहीं थे बल्कि उसके अलावा भी बहुत कुछ थे जिस पर बात करने की आवश्यकता है। मौलाना आज़ाद एक उत्कृष्ट लेखक, वक्ता, संगीत प्रेमी, कला प्रेमी, साहित्यकार, स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ भारत विभाजन के विरुद्ध सबसे प्रखर आवाज़ थे, जिनसे प्रभावित होकर लाखों मुसलमानों ने मुस्लिम लीग और विभाजन का विरोध किया था।”
सपनों की उड़ान (लघुकथा)
सपनों की उड़ान (लघुकथा)
सहीफ़ा ख़ान
ट्रेन अपनी रफ़्तार पकड़ चुकी थी। अब तो शहर भी आंखों से ओझल होता जा रहा था। वह सीट के...
किताबों का मेला, मेले में हम
किताबों ने हमारे भीतर काफ़ी कुछ बदला है- सिर्फ़ उस ज्ञान से नहीं, जो उनमें दर्ज होता है, बल्कि पठन-पाठन की उस प्रक्रिया से भी जिसमें आंख और मस्तिष्क के बीच बनने वाले अक्षर, शब्द, वाक्य और उनके अर्थ बहुत सहजता से हमारी चेतना का हिस्सा बन जाते हैं। ठोस तस्वीरों और छवियों में हम बस भोक्ता होते हैं, जबकि शब्दों में हमारी कल्पना का निवेश भी होता है। इसी प्रक्रिया में हम पाठक होते-होते लेखक भी होते चलते हैं।
फणीश्वर नाथ रेणु : धरती का धनी कथाकार
साहित्य चाहे किसी भी भाषा अथवा बोली में रचा जाए, उसका महत्व तभी है जब उसमें अतीत से मिले सबक हों और बेहतर भविष्य के निर्माण की परिकल्पना। हिंदी साहित्य में ऐसे रचनाकार जिनकी रचनाओं में यह बात स्पष्ट दिखती है, उनमें फणीश्वर नाथ रेणु अग्रणी हैं। इसकी ख़ास वजह यह कि उनकी रचनाओं में वर्तमान के द्वंद्व तो होते ही हैं लेकिन एक बुनियाद भी होती है जिसके सहारे वह बेहतर समाज के निर्माण का सपना संजोते हैं।
दूसरा रास्ता (लघुकथा)
दूसरा रास्ता (लघुकथा)
सहीफ़ा ख़ान
दो मिनट पहले तक ख़ुशी में झूम रही सीमा अब दहशत में सुनसान सड़क पर अपनी ट्रॉफ़ी हाथ में लिए भाग...
अर्थशास्त्र के इस्लामीकरण के ध्वजवाहक, प्रोफेसर नजातुल्लाह सिद्दीकी का निधन
-डॉ मुहम्मद रज़ी उल इस्लाम नदवी
सुबह में, यह बताया गया कि प्रोफेसर मुहम्मद नजतुल्लाह सिद्दीकी साहब का निधन हो गया था। तुरंत जुबान...
विकास ढूंढ़ता हूँ मैं…..
मैं अखबार पढ़ते ना जाने क्यों अपने देशका विकास ढूंढता हूँविकास हमारे मोहल्ले का खोया हुआकोई नन्हा बालक नहीं है,विकास हमारी प्रगति का है,विकास...
लघुकथा:सरकार की नीति
" आइए मित्तल साहब …बैठिए , बैठिए …सब खैरियत ? "" साहब ! ….वो टैक्स वाला मामला सेटल हो जाता तो … "" हो...