रिपोर्ट : उवैस सिद्दीकी़
नई दिल्ली : इन दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव का माहौल है। यूनिवर्सिटी कैंपस में तमाम छात्र दल जोरों शोरों से तैयारीयां कर रहे हैं। 27 सितंबर 2024 को मतदान होना है जबकि छात्रों के अनुसार मतों की गिनती 28 सितंबर को होगी। डीयू जो हमेशा से एनएसयूआई और एबीवीपी जैसे मुख्यधारा के संगठनों का गढ़ माना जाता है, जहां हमेशा छात्रसंघ की चारों सीटों पर इन्हीं दोनों संगठनों का क़ब्ज़ा होता है वहां पहली बार बहुजन और मुस्लिम छात्र भी अपनी क़िस्मत आज़माने निकले हैं।
बता दें कि एनएसयूआई (नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया) और एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) ने चारों सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। ये दोनों ही संगठन कोंग्रेस और बीजेपी के छात्र संगठन हैं जिनका सीधा जुड़ाव मुख्यधारा से है। जबकि वामपंथी संगठन गठबंधन में चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं एक मुस्लिम संगठन फ्रेटरनिटी मूवमेंट डीयूएसयू अध्यक्ष के चुनाव लड़ रहा है जबकि बहुजन छात्रों का नेतृत्व कर रहे अम्बेडकराईट स्टूडेंट्स एसोसिएशन संगठन ने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के लिए अपने दो उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास में पहली बार ऐसा होने जा रहा है कि मुस्लिम और बहुजन छात्रों को प्रत्यक्ष रूप से प्रतिनिधित्व करने का मौका मिल रहा है। ऐसे में हमने दोनों संगठनों के उम्मीदवारों से बात कर उनके मुद्दे और चुनौतियां जानने का प्रयास किया तो फ्रेटरनिटी मूवमेंट से अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार बदी उज़ ज़मा ने बताया कि वे पूरे चुनाव में अकेले ऐसे उम्मीदवार हैं जो मुस्लिम समुदाय से आते हैं। बदी ने बताया कि उनका संगठन दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में विशेष रूप मुस्लिम छात्रों का प्रतिनिधित्व कर रहा है। बदी ये भी बताते हैं कि उनके संगठन ने बीते वर्ष भी चुनाव लड़ने का प्रयास किया था और उम्मीदवारों के सभी दस्तावेज़ मुकम्मल होने के बावजूद विश्वविद्यालय निर्वाचन आयोग ने मनमाने ढंग से उम्मीदवारों का नामांकन रद्द कर दिया था। लेकिन इस दफा वे छात्रों के हित के चुनाव लड़ रहे हैं। फ्रेटरनिटी मूवमेंट से जुड़ी हाना, जो ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में उपाध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ रही हैं, बताती हैं कि एक हिजाबी छात्रा के तौर पर अपनी पहचान के साथ छात्रों के बीच जाकर उनकी आवाज़ बनना बहुत मुश्किल होता है और वे भी ऐसे कैंपस में जहां तथाकथित पितृसत्तात्मक मानसिकता का प्रभाव ज़्यादा हो। हाना का कहना है कि वे जब पहली बार कॉलेज आईं तो उन्होंने देखा कि कैंपस शिक्षा संस्थान कम और जंग का मैदान ज़्यादा लग रहा था, उस समय छात्रों के दो ग्रहों में ख़ासी मुठभेड़ चल रही थी यहां तक कि वे छात्र लाठियों तक का उपयोग कर रहे थे, ऐसे में हाना ने चुनाव लड़ने का फैसला और भी मज़बूत कर लिया। वे आगे बताती हैं कि वे विश्वविद्यालय के माहौल को ठीक करने का संकल्प लिए चुनावी मैदान में हैं ताकि अपने समुदाय और विशेष रूप से छात्राओं का प्रतिनिधित्व कर सकें। हाना, ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से बी कॉम प्रथम वर्ष की छात्रा हैं।
बहुजन छात्रों के एक संगठन, अम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने भी दो उम्मीदवारों को इस चुनाव में उतारा है। उनमें से एक पिंकी, जो दिल्ली विश्वविद्यालय से बौद्ध अध्ययन में एम ए कर रहीं हैं, ने हमसे बातचीत में कहा कि वे पहली बार डीयू में ऐसा देख पा रही हैं कि बहुजन छात्र चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं। पिंकी अध्यक्ष पद के चुनाव लड़ रहीं हैं। आगे बताती हैं कि प्रचार के दौरान छात्रों से उनका अच्छा जुड़ाव रहा, वे जो कहना चाहती थीं छात्रों ने उनकी बातें बहुत सहानुभूति से सुनीं और उनका समर्थन भी किया। पिंकी का कहना है कि वे दिल्ली विश्वविद्यालय में विशेष रूप से बहुजन और पिछड़े वर्ग से आने वाले छात्रों की आवाज़ बनना चाहती हैं। वहीं इसी संगठन से जुड़ी एक अन्य छात्रा बनश्री, जो डीयू में अंग्रेजी में एम ए कर रहीं हैं, वे उपाध्यक्ष पद के चुनाव लड़ रही हैं। बनश्री दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ चुनाव की अकेली ऐसी उम्मीदवार हैं जो उत्तर पूर्व राच्य से हैं, वे असम की रहने वाली हैं। बनश्री का कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय में जिस प्रकार से छात्राओं की सुरक्षा हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है वे उसे हल करना चाहती हैं। साथ ही उनके संगठन ने घोषणापत्र में छात्रों से चार मुद्दे उठाए हैं जिनमें शुल्क वृद्धि में बढ़ोतरी, हॉस्टल की कमी, कैंपस में लोकतांत्रिक माहौल की बहाली और विकलांग छात्रों के लिए पर्याप्त सुविधाएं आदि शामिल हैं।
बता दें कि दिल्ली विश्वविद्यालय में चुनाव लड़ रहे ये संगठन प्रत्यक्ष रूप से किसी मज़बूत राजनितिक दल का हिस्सा नहीं हैं, बावजूद इसके वे पिछड़े वर्ग से आने वाले छात्रों का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं। इस पूरे चुनावी माहौल के दौरान इन छात्रों ने बिना किसी साधन संसाधन के बिना कोई बड़ी गाड़ियों के, सीधे छात्रों के बीच जा कर प्रचार किया है। देखने वाली बात है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के आम छात्र किसको अपना नेतृत्व सौंपते हैं।