Top News
विश्व गौरैया दिवस विशेष: क्यों ज़रूरी है गौरैया संरक्षण?
गौरेया को बचाने के लिए दिवसों के आयोजन, राज्य पक्षी बनाने और टिकट जारी करने भर से काम नहीं चलेगा। हमें स्वयं कुछ व्यवहारिक तरीक़े अपनाने होंगे जिससे हम इस ख़ूबसूरत पक्षी को बचा सकें। इस संबंध में अपने छतों पर दाने छिड़कना और बर्तनों में साफ़ पानी रखना कारगर साबित हो सकता है। हमें ज़्यादा से ज़्यादा पेड़-पौधे लगाने होंगे ताकि उन्हें गौरैया अपना आश्रय बना सके।
सम्पादकीय
विश्व गौरैया दिवस विशेष: क्यों ज़रूरी है गौरैया संरक्षण?
गौरेया को बचाने के लिए दिवसों के आयोजन, राज्य पक्षी बनाने और टिकट जारी करने भर से काम नहीं चलेगा। हमें स्वयं कुछ व्यवहारिक तरीक़े अपनाने होंगे जिससे हम इस ख़ूबसूरत पक्षी को बचा सकें। इस संबंध में अपने छतों पर दाने छिड़कना और बर्तनों में साफ़ पानी रखना कारगर साबित हो सकता है। हमें ज़्यादा से ज़्यादा पेड़-पौधे लगाने होंगे ताकि उन्हें गौरैया अपना आश्रय बना सके।
अभिमत
सिनेमा
विश्व गौरैया दिवस विशेष: क्यों ज़रूरी है गौरैया संरक्षण?
गौरेया को बचाने के लिए दिवसों के आयोजन, राज्य पक्षी बनाने और टिकट जारी करने भर से काम नहीं चलेगा। हमें स्वयं कुछ व्यवहारिक तरीक़े अपनाने होंगे जिससे हम इस ख़ूबसूरत पक्षी को बचा सकें। इस संबंध में अपने छतों पर दाने छिड़कना और बर्तनों में साफ़ पानी रखना कारगर साबित हो सकता है। हमें ज़्यादा से ज़्यादा पेड़-पौधे लगाने होंगे ताकि उन्हें गौरैया अपना आश्रय बना सके।
किताबों की दुनिया
पुलिस रिफ़ॉर्म की बहस को आगे बढ़ाती है “पुलिसनामा”
इस किताब में बयान हुई कहानियां हमारे आस-पास की कहानियां हैं। इनमें कुछ भी नया नहीं है। कोई शॉक वैल्यू नहीं। यह कोई कल्पना नहीं है बल्कि ये हमारे ख़ुद के साथ घटी हुई या झेली हुई कहानियां हैं। हम इनके साथ रिलेट कर सकते हैं। हर एक क़िस्से को पढ़ कर आपको उसी जैसे तीन और क़िस्से याद आ जायेंगे, और यही इस किताब की कामयाबी है।
पत्रिका
छात्र विमर्श विशेषांक: वादे और वास्तविकता के बीच झूलती शिक्षा व्यवस्था
इस विशेषांक में आपके लिए है बहुत कुछ महत्वपूर्ण और दिलचस्प.
पढने के लिए क्लिक करें
इस विशेषांक पर अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर भेजें.
अपनी प्रतिक्रिया हमें [email protected] पर भेजें.
साक्षात्कार
देश में उत्पन्न आर्थिक संकट के लक्षण चिंतनीय – अभिजीत बनर्जी
भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को वर्ष 2019 के लिए अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उनका जन्म 1961...
“संघर्ष केवल अपने अधिकारों के लिए नहीं बल्कि न्याय पर आधारित समाज के निर्माण...
केरल से सम्बन्ध रखने वाले नहास माला 2017 व 2018, दो वर्षों तक देश के प्रतिष्ठित छात्र संगठन ‘स्टूडेंट्स इस्लामिक आर्गेनाईजेशन’ के अखिल भारतीय अध्यक्ष...
शिक्षा विमर्श
बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था का ज़िम्मेदार कौन?
एक ओर जहाँ शिक्षकों की घोर कमी है वहीं शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी/एसटीईटी) उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की एक बड़ी संख्या सड़कों पर बेरोज़गार घूम रही है और लगातार संघर्ष करते हुए पुलिस की लाठियां खा रही है। पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने की मांग भी समय-समय पर उठती रही है परन्तु इस पर कोई ठोस पहल अब तक नहीं हुई है। ऐसी ही कई समस्याएं हैं जो बिहार की शिक्षा व्यवस्था की राह में रोड़े अटका रही हैं।
Share on Whatsapp