विश्व बाल श्रम निषेध दिवस: बचपन पढ़ाई के लिए, कमाई के लिए नहीं

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार दुनिया भर में 21 करोड़ से अधिक बच्चों से बाल मज़दूरी करवाई जाती है। 71 देश ऐसे हैं जहां बच्चों को मज़दूरी करने के लिए किसी-न-किसी रूप में मजबूर होना पड़ता है।

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विश्व बाल श्रम निषेध दिवस: बचपन पढ़ाई के लिए, कमाई के लिए नहीं

राजेश वर्मा

जब हम कभी परिवार संग घूमने जाते हैं तो रास्ते में गाड़ी की हवा चेक करवाने के लिए किसी मैकेनिक की दुकान पर एकाध बार रुकते हैं। वहां एक छोटा लड़का दिखाई देता है। हम आवाज़ लगाते हैं, “ओए छोटू, ज़रा गाड़ी की हवा चेक करना!” ‘छोटू’ इसलिए क्योंकि नाम मालूम नहीं और ऐसे बाल मज़दूरों को ज़्यादातर ‘छोटू’ नाम से ही संबोधित किया जाता है। जैसे ही छोटू से हवा चेक करवा कर आगे बढ़ते हैं, गाड़ी में बैठे बच्चे कोल्ड-ड्रिंक पीने की इच्छा ज़ाहिर करते हैं। आगे एक दुकान या ढाबा दिखता है, वहां रुकते हैं। तभी एक 12-13 वर्ष का लड़का ऑर्डर लेने आता है। परिवार संग सलाह-मशविरा करके आर्डर दिया जाता है, “छोटे! दो चाय, दो कोल्ड-ड्रिंक और चार समोसे लाओ!” चाय-पानी करके आगे बढ़ते ही शहर आ जाता है। शहर में प्रवेश करते ही एक रेड सिग्नल पर गाड़ी को ब्रेक लगती है। तभी एक 11-12 वर्ष की लड़की और उससे थोड़ा-सा बड़ा लड़का हाथों में कुछ सामान लिए गाड़ी के नज़दीक आकर कहता है, “अंकल जी, ये वाईपर ले लो अच्छा है!” लड़की कहती है,‌“अंकल, ये कार के अंदर लगाने के लिए एक झालर ले लो!” अंदर बैठे बच्चे कहते हैं, “पापा ले लो, कितनी अच्छी चीज़ें हैं।” जैसे ही इन बच्चों से सामान ख़रीदा उनके चेहरे पर एक मुस्कान तैर गई। सिग्नल ग्रीन होते ही गाड़ी आगे बढ़ा दी लेकिन उन बच्चों की मुस्कान कई सवाल छोड़ गई। सवाल कि मेरे बच्चे मेरे साथ गाड़ी में घूम रहे हैं, अपने बचपन का आंनद ले रहे हैं लेकिन रास्ते में विभिन्न जगहों पर मिलने वाले इन बच्चों का बचपन कहां है? ऐसी कौन-सी मजबूरियां हैं जो इन बच्चों को इस तरह मज़दूरी करनी पड़ रही है?

हर बच्चे को बचपन में ‘आप बड़े होकर क्या बनोगे?’ नामक प्रश्न से गुज़रना पड़ता है लेकिन बाल श्रम में लगे इन बच्चों से भी क्या किसी ने पूछा होगा कि आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हो? शायद किसी ने नहीं पूछा होगा। बाल श्रम करने वाले बच्चों में से हो सकता है किसी ने आपके पूछने पर कहा हो कि वह शिक्षक बनना चाहता है या वह चिकित्सक बनना चाहता है या फिर और भी बहुत कुछ, लेकिन प्रश्न यह है कि क्या हमनें कभी यह जानने की कोशिश की कि कितने बच्चे हैं जो अपने इन ख़्वाबों को पूरा कर पाए!

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार दुनिया भर में 21 करोड़ से अधिक बच्चों से बाल मज़दूरी करवाई जाती है। 71 देश ऐसे हैं जहां बच्चों को मज़दूरी करने के लिए किसी-न-किसी रूप में मजबूर होना पड़ता है। आईएलओ की नई रिपोर्ट ‘फ़ाइंडिंग्स ऑन द वर्स्ट फ़ॉर्म्स ऑफ़ चाइल्ड लेबर’ में 140 देशों का आंकलन किया गया है। रिपोर्ट बताती है कि ऐसी 130 चीज़ें हैं जिन्हें बनाने के लिए बच्चों से काम करवाया जाता है। ईंटें तैयार करने से लेकर मोबाइल फ़ोन के पुर्ज़े बनाने तक के कई काम बच्चों से लिए जाते है। 2001 की जनगणना के आंकड़ों अनुसार भारत में 5 से 14 वर्ष की आयु के 1 करोड़ 26 लाख 66 हजार 377 बच्चे बाल श्रम में लगे हुए थे। यही आंकड़े इसी आयु वर्ग में 2011 की जनगणना के अनुसार कम होकर 43 लाख 53 हजार 247 तक आ गए थे। उतर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, और गुजरात में बाल मज़दूरी की दर अन्य राज्यों से अधिक है। एक सभ्य समाज में कोई मां-बाप नहीं चाहेगा कि उनके बच्चे बीड़ी, पटाख़े, माचिस, ईंटें, जूते, कांच की चूड़ियां, ताले, इत्र, फ़ुटबॉल, कालीन आदि बनाने के कार्य करें। शायद बहुत कम लोग ही जानते होंगे की रेशम के तार ख़राब न हों इसलिए बच्चों के नन्हे हाथों से रेशमी वस्त्रों पर कढ़ाई करवाई जाती है। बाल श्रम एक ऐसा शोषण है जो बच्चों से उनके निर्दोष बचपन के अधिकार को लूटता है। ग़रीबी और बाल श्रम का आपसी दुष्चक्र निरंतर चलता रहता है। ग़रीबी से बाल श्रम होता है और बाल श्रम ग़रीबी के स्तर को बनाए रखता है।

दुनिया भर में हर दस में से एक बच्चा बाल मज़दूर है। जबकि 2000 के बाद से बाल श्रम में बच्चों की संख्या में 9 करोड़ से ऊपर की गिरावट आई है। संयुक्त राष्ट्र सतत विकास ने 2025 तक बाल श्रम के सभी रूपों को समाप्त करने का लक्ष्य रखा है। देखना होगा इस दिशा में विश्व समुदाय कैसे मज़बूती से आगे बढ़ता है। दुनिया भर के हर 10 बाल श्रमिकों में से 9 बच्चे अफ़्रीका, एशिया और प्रशांत क्षेत्र में हैं। अफ़्रीका में बाल श्रमिकों का सबसे ज़्यादा अनुपात है। अफ़ग़ानिस्तान के ईंट भट्टों में काम करने वाले लगभग आधे कर्मचारियों की आयु 14 वर्ष से कम है। इसी तरह इथियोपिया में लगभग 60% बच्चे काम करते हैं।

बाल श्रम को दूर करने के लिए देश के भीतर बहुत से कठोर क़ानून और नीतियां भी बनाई गई हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-24 के अनुसार 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से कारख़ानों, फ़ैक्ट्रियों व खदानों में जोखिम भरे कार्य कराना अपराध है। बाल अधिनियम (1933), बाल रोज़गार अधिनियम (1938), भारतीय कारख़ाना अधिनियम (1948), बाग़ान श्रम अधिनियम (1951), खान अधिनियम (1952), बाल श्रम गिरवीकरण अधिनियम तथा बाल श्रमिक प्रतिबंध एवं नियमन अधिनियम (1986) आदि क़ानून व नीतियां बाल मज़दूरों की सेवाओं, कार्यदशाओं, कार्य के घंटे, मज़दूरी दर आदि का नियमन करते हैं। बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम (1986), के अनुसार ‘बच्चे’ का मतलब है एक व्यक्ति जिसने अपनी उम्र के 14 वर्ष पूरे न किए हों। यह अधिनियम, अधिनियम की अनुसूची के भाग क एवं ख (धारा 3) में शामिल 18 व्यवसाय और 65 प्रक्रियाओं आदि उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति को प्रतिबंधित करता है।

संविधान में स्थापित अनुच्छेद 21-क में बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार क़ानून उनको 6 से 14 साल की उम्र तक सरकार द्वारा क़ानून के ज़रिए निर्धारित रूप से निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का मौलिक अधिकार देता है। इसी तरह अनुच्छेद-24 के तहत चौदह साल से कम उम्र के किसी भी बच्चे को किसी कारख़ाने या खदान या किसी अन्य ख़तरनाक रोज़गार में नियोजित नहीं किया जाएगा। बाल श्रम एक ऐसा विषय है, जिस पर संघीय व राज्य सरकारें, दोनों क़ानून बना सकती हैं। नाम के लिए क़ानून जितने मर्ज़ी बना दिए जाएं लेकिन जब तक धरातल पर उन्हें प्रभावशाली तरीक़े से लागू नहीं किया जाता, तब तक बाल श्रम निषेध क़ानूनों की फ़ेहरिस्त ही लंबी होगी, इन क़ानूनों के हाथ लंबे नहीं हो सकते। समाज को भी बच्चों के प्रति अपनी सोच बदलनी होगी। बच्चों को काम देने का अहसान करने की सोच की बजाए उसके व्यस्क अभिभावकों को रोज़गार दिया जाना चाहिए। वह बचपन जिसमें बच्चा सपनों के पंखों से उड़ान भरना सीखता है, उसमें उन पंखों को काट कर आपाहिज करने की बजाए खुला आसमान देने की ज़रूरत है। 12 जून को भले ही पूरा विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मना रहा हो लेकिन बाल श्रम, दिवस मनाने से नहीं बच्चों को उनके अधिकार देने से रुकेगा।

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