नफ़रत के ख़िलाफ़ असहयोग आंदोलन
मीडिया की एजेंडा सेट करने की ताक़त की वजह से समाज में मीडिया की भूमिका बहुत अहम है। तब ऐसे में से नफ़रत की फ़सल बोने वाली मीडिया के साथ असहयोग करना मीडिया की स्वतंत्रता पर हमला तो क़तई नहीं है। आख़िरकार यह भी जनता के बीच से उठी आवाज़ है।
हिंदी में परोसी जा रही नफ़रत का सामना हिंदी में ही संभव है
अगर नफ़रत संगठित रूप से किसी भाषा के कंधे पर सवार होकर पांव फैला रही है तो प्रेम और सौहार्द की बातें करने वालों को और अधिक संगठित होकर उसी भाषा में मेल-मिलाप की बातें करनी होंगी।
देश चांद तक पहुंचा और नफ़रत क्लासरूम तक
मीडिया द्वारा फैलाई गई इस नफ़रत का ही नतीजा है जो अब मुज़फ्फरनगर और दिल्ली के स्कूलों में हाल ही में घटित हुई घटनाओं के रूप में सामने आ रहा है। देश तो चांद तक पहुंच गया है लेकिन नफ़रत भी स्कूल के क्लासरूम तक पहुंच गई है
कोटा में बढ़ती हुई आत्महत्याओं का ज़िम्मेदार कौन?
आंकड़े देखें तो इस वर्ष जनवरी से लेकर अगस्त तक 24 छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या की है। केवल अगस्त के महीने में ही 6 छात्र आत्महत्या कर चुके हैं। जबकि पिछले वर्ष इस तरह की 15 घटनाएं सामने आईं थीं।
‘बेटी बचाओ’ के नारे का पोल खोलती है एनसीआरबी की रिपोर्ट
‘बेटी बचाओ’ के नारे का पोल खोलती है एनसीआरबी की रिपोर्ट
उम्मे वरक़ा
“किसी भी समाज की तरक़्क़ी का मापदंड उस समाज की महिलाओं के विकास...
जब मुहाफ़िज़ ही लुटेरे बन जाएं!
पिछले दस सालों में इस देश में मुसलमानों के ख़िलाफ़ जितनी नफ़रत फैलाई गई है और जितना उत्पीड़न हुआ है, उतना आज़ादी के बाद के 75 सालों में नहीं देखा गया। मॉब लिंचिंग के नाम पर मुसलमानों का उत्पीड़न और हत्या आम होती जा रही है। मुसलमानों के ख़िलाफ़ अपराधों में लगातार बढ़ोतरी भाजपा शासित राज्यों में ही हो रही है।
आज़ादी का मतलब क्या?
आज़ादी का सबसे बड़ा हासिल तो यही है कि हमारे शासक हमारी मुट्ठी में हैं। लेकिन इस प्रत्यक्ष दिखने वाली सच्चाई की अपनी विडंबनाएं भी हैं। सत्ता लगातार जनता को बदल रही है। उसे अपने अधिकारों के प्रति सजग, समानता के मूल्य के प्रति सतर्क और सवाल पूछने वाले सचेत नागरिक नहीं चाहिए, उसे वैसे लोग चाहिए जिन्हें वह जनता का नाम देकर एक भीड़ में बदल सके और अपने पक्ष में इस्तेमाल कर सके।
महिला सुरक्षा के खोखले दावे
मणिपुर, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और बिहार में महिलाओं के उत्पीड़न को लेकर देश में अभी चर्चा चल ही रही थी कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के संकलित आंकड़ों को संसद में पेश किया गया। इसमें बताया गया है कि 2019 से 2021 के बीच तीन साल की अवधि के दौरान देश भर में 13.13 लाख से अधिक लड़कियां और महिलाएं लापता हुई हैं।
बजरंग दल की जलाभिषेक यात्रा बनी नूह में हिंसा की वजह
राजधानी दिल्ली से सटा हरियाणा राज्य हिंसा की चपेट में है। हरियाणा के विभिन्न इलाक़ों से आने वाले कई वीडियोज़ सोशल मीडिया पर गर्दिश कर रहे हैं जिनमें यह साफ़ देखा जा सकता है कि हिंसा जान-बूझकर भड़काई जा रही है। फ़िलहाल कुछ इलाक़ों में धारा 144 लागू है और कुछ जगहों पर पूरी तरह कर्फ़्यू लगा दिया गया है। साथ ही भारी मात्रा में पुलिस बल भी तैनात किया गया है।
यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड, मुस्लिम आबादी और चार शादियों का प्रॉपगैंडा
‘नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे’ की रिपोर्ट यह बताती है कि एक से ज़्यादा शादियां करने का रिवाज सब से ज़्यादा ईसाईयों में (2.1%) है। मुसलमानों में 1.9%, हिंदुओं में 1.3% और अन्य कम्युनिटीज़ में 1.6% है। इसमें नोट करने की बात यह है कि मुसलमानों में यह प्रतिशत उस स्थिति में है जब उनके यहां एक से ज़्यादा शादियों की क़ानूनी रूप से अनुमति है, जबकि दूसरी कम्युनिटीज़ में क़ानूनी रूप से प्रतिबंधित है।