भौतिकवादी दौर में नैतिकता का चयन बोझ नहीं है

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नैतिकता इन्सान के लिए कोई अप्रिय बोझ बिल्कुल नहीं है। रंग और सुगन्ध फूलों पर बोझ नहीं होते। परिन्दों के पंख उनके के लिए कभी भार नहीं होते, बल्कि ये उनकी शोभा भी हैं और उड़ान में उनके सहायक भी। यही हाल फूलों के रंग और गन्ध और आँखों की पलकों का भी है। इन्सान के जीवन में भी वास्तविक सौन्दर्य नैतिकता ही से उत्पन्न होता है। नैतिकता से वंचित हो जाने के बाद इन्सान के पास कोई मूल्यवान वस्तु शेष नहीं रहती।

क्या ‘नेट’ और ‘नीट’ की विफलता शैक्षिक महामारी की ओर इशारा कर रही है?

शिक्षा के उपयोगितावादी दृष्टिकोण ने उसकी वास्तविक भावना को धुंधला कर दिया है, जिससे शिक्षा के महान क्षेत्र को एक वाणिज्यिक, धन कमाने वाले व्यवसाय में बदल दिया गया है।

एक फांसी – जॉर्ज ऑरवेल

‘एनिमल फ़ार्म’ और ‘नाइंटीन एटी फ़ोर’ जैसी कृतियों के प्रसिद्ध लेखक जॉर्ज ऑरवेल 1922 से 1927 के बीच ब्रिटिश पुलिस के अधिकारी के रूप में बर्मा में रहे थे। उन्हीं दिनों के अनुभवों पर लिखा उनका यह लेख ‘ए हैंगिंग’ पहली बार 1931 में एक ब्रिटिश पत्रिका ‘द एडेल्फ़ी’ में छपा था। हालांकि ऑरवेल ने कभी नहीं बताया कि यह अनुभव किस शख़्स की फांसी पर है। उनसे जब कभी पूछा गया तो उन्होंने इसे बस एक कहानी बताया।

क्या यहूदी एक बेघर क़ौम थे? जानिए इज़राइल के इस दावे का सच

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ज़ायोनवाद दरअस्ल, एक यहूदी परियोजना बनने से पहले एक ईसाई उपनिवेशवादी परियोजना थी। इसके स्पष्ट प्रतीक विक्टोरियन ब्रिटेन में 1820 के दशक से ही दिखाई देने लगे थे। एक शक्तिशाली धार्मिक और साम्राज्यवादी आंदोलन उभरा जो फ़िलिस्तीन में यहूदियों की वापसी को एक रणनीतिक योजना के केंद्र में रख कर इसे ईसाई साम्राज्य का भाग बनाना चाहता था। उन्नीसवीं शताब्दी में यह भावना ब्रिटेन में और भी लोकप्रिय हुई और आधिकारिक साम्राज्यवादी नीति पर काफ़ी प्रभावित हुई।

कॉर्पोरेट हिंदुत्व का बेताल अब एनडीए के विक्रम के कंधे पर सवार रहेगा

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यक़ीनन चुनाव परिणामों ने अंधेरी चादर में एक बड़ा सुराख़ किया है - इससे पहले कि कॉर्पोरेट हिंदुत्व इसे थेगड़े लगाकर रफ़ू करे, इसे और ज़्यादा चौड़ा करना होगा। एक जगह बनी है - इससे पहले कि इसे दोबारा से हड़पने की साज़िशें कामयाब हों, इसे आर्थिक सहित वैचारिक, सांस्कृतिक आदि सभी मोर्चों पर गतिशीलता बढ़ाकर और वृहद बनाना होगा।

लोकसभा चुनाव 2024: एक विश्लेषण

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इंडिया गठबंधन आंशिक रूप से मुस्लिम मतदाताओं के सर्वसम्मत समर्थन के कारण सफल रहा, जिन्होंने भारत में विभाजनकारी और नफ़रत की राजनीति के ख़िलाफ़ खुलकर वोट किया। अब सवाल यह है कि क्या ये पार्टियां अल्पसंख्यक विभागों के ज़रिए प्रतीकात्मक काम करने से आगे बढ़कर, वास्तव में अपने राज्यों के अल्पसंख्यक समुदायों में निवेश करेंगी? क्या इन पार्टियों के भीतर राजनीतिक आरक्षण पर चर्चा होगी और आगामी चुनावों में मुस्लिम प्रतिनिधियों को अधिक सीटें आवंटित की जाएंगी?

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस: बचपन पढ़ाई के लिए, कमाई के लिए नहीं

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अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार दुनिया भर में 21 करोड़ से अधिक बच्चों से बाल मज़दूरी करवाई जाती है। 71 देश ऐसे हैं जहां बच्चों को मज़दूरी करने के लिए किसी-न-किसी रूप में मजबूर होना पड़ता है।

फ़िलिस्तीन एक राष्ट्र के रूप में कैसे वजूद में आया?

फ़िलिस्तीन कोई ख़ाली पड़ी ज़मीन नहीं थी। यह एक समृद्ध और उपजाऊ पूर्वी भूमध्य सागरीय दुनिया का हिस्सा था जो उन्नीसवीं सदी में आधुनिकीकरण और राष्ट्रीयकरण की प्रक्रियाओं से गुज़र रहा था, जो एक आधुनिक समाज के रूप में बीसवीं सदी में प्रवेश करने की कगार पर था। ज़ायोनी आंदोलन द्वारा इसके उपनिवेशीकरण ने इस प्रक्रिया को वहां रहने वाले अधिकांश मूल लोगों के लिए एक आपदा में बदलकर रख दिया।

विश्व पर्यावरण दिवस: सभी को उठानी होगी पर्यावरण बचाने की ज़िम्मेदारी

बढ़ते औद्योगिकीकरण और आधुनिकता की चकाचौंध ने हमारी जीवन-शैली को काफ़ी बदल दिया है। मानव जीवन में हो रहे निरंतर बदलावों ने पर्यावरण को भी प्रभावित किया है। मानव जीवन हेतु आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का लगातार दोहन किया गया है, इसीलिए आज पूरी दुनिया के सामने पर्यावरण संकट पैदा हो गया है।

एग्ज़िट पोल्स: सिर्फ़ धंधा है या कुछ और इरादे भी हैं?

सही या ग़लत जो हो, नागरिकों का एक बड़ा हिस्सा यह मान रहा है कि इस बार बड़े पैमाने पर परिणामों में धांधली की जा सकती है। इस धांधली की पूर्वतैयारी के लिए एग्ज़िट पोल्स के जरिये वातावरण बनाया जा रहा है ताकि दीवार पर मोटे-मोटे हुरूफ़ में लिखी जनभावनाओं की इबारत से उलट फ़ैसला आने पर उसे ‘एग्ज़िट पोल्स ने भी तो यही कहा था’ कहकर गले उतारा जा सके।