हाशिमपुरा हिरासती हत्याकांड के 36 वर्ष
लगभग दस वर्षों से उत्तर भारत मे चल रहे राम जन्मभूमि आंदोलन ने पूरे समाज को बुरी तरह से बांट दिया था। उत्तरोत्तर आक्रामक होते जा रहे इस आंदोलन ने ख़ास तौर से हिन्दू मध्यवर्ग को अविश्वसनीय हद तक साम्प्रदायिक बना दिया था। विभाजन के बाद सबसे अधिक साम्प्रदयिक दंगे इसी दौर मे हुए थे। स्वाभाविक था कि साम्प्रदायिकता के इस अन्धड़ से पुलिस और पीएसी के जवान भी अछूते नहीं रहे थे।
उच्च शिक्षा में मुसलमानों की गंभीर स्थिति
आज एक तरफ़ जहां ओबीसी छात्रों का उच्च शिक्षा में कुल नामांकन लगभग 36 प्रतिशत, दलित छात्रों का कुल नामांकन लगभग 14.2 प्रतिशत और आदिवासी छात्रों का कुल नामांकन लगभग 5.8 प्रतिशत है, तो वहीं दूसरी तरफ़ मुसलमान 4.6 प्रतिशत नामांकन के साथ इस फ़हरिस्त में सबसे नीचे खड़े हैं, जबकि वे पूरी आबादी में लगभग 15 प्रतिशत समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं।
कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के मायने
यह जीत कांग्रेस के लिए ख़ास है। 1985 के बाद कर्नाटक में कांग्रेस की यह सबसे बड़ी जीत है। इस जीत से कांग्रेस को ख़ुद सीखने की ज़रूरत है। कर्नाटक और हिमाचल दोनों राज्यों ने साफ़ संदेश दिया है कि जनहित के मुद्दों से, स्थानीय मुद्दों पर केंद्रित रह कर भी नफ़रत की राजनीति को परास्त किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए ज़रूरी है कि संगठन की आंतरिक गुटबंदियों से निपटते हुए यह लड़ाई सामूहिकता के साथ लड़ी जाए।
मैलकम एक्स की हज यात्रा
मलिक शहबाज़ उर्फ़ मैल्कम एक्स (19 मई 1925 - 21 फ़रवरी 1965) अमेरिका के मशहूर अश्वेत नेता थे। उन्हें अश्वेत अमेरिकियों के अधिकारों हेतु आवाज़ बुलंद करने के लिए जाना जाता है। इस्लाम की शिक्षाओं से प्रेरित होकर उन्होंने इस्लाम क़ुबूल किया और 1964 में हज यात्रा करने के लिए मक्का गए। इस दौरान उन्होंने एक पत्र में अपने संस्मरण लिखे। हज यात्रा के दौरान उनके द्वारा लिखे गए पत्र का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत है।
दुष्प्रचार का हथियार है ‘द केरला स्टोरी’
‘द केरल स्टोरी’, फ़िल्म द कश्मीर फ़ाइल्स की तर्ज़ पर बनाई गई है, जिसमें अर्धसत्य दिखाए गए हैं और मुख्य मुद्दों को परे रखकर नफ़रत फैलाने और विभाजनकारी राजनीति को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया है। कश्मीर फ़ाइल्स को गोवा में आयोजित 53वें अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह की जूरी के प्रमुख ने प्रचार फ़िल्म बताया था। जूरी के एक अन्य सदस्य ने इसे अश्लील कहा था।
वर्ल्ड प्रेस फ़्रीडम इंडेक्स में 11 पायदान लुढ़क कर 161वें स्थान पर पहुंचा भारत
रिपोर्ट के मुताबिक़, 2023 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत पिछले साल की तुलना में 11 पायदान गिरकर 161 वें स्थान पर पहुंच गया है। पिछले साल 180 देशों की सूची में भारत को 150 वां स्थान दिया गया था। इंडेक्स के मुताबिक़ अब भारत, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से भी कई पायदान पीछे है। इन दोनों देशों की रैकिंग में सुधार हुआ है और ये क्रमशः 150 और 152 वें स्थान पर पहुंच गए हैं।
ईद-उल-फ़ित्र के त्योहार का दर्शन
ईद-उल-फ़ित्र केवल सामूहिक मनोरंजन और पकवानों का अवसर नहीं है, बल्कि इसके माध्यम से जीवन के उद्देश्य की सामूहिक चेतना इस्लामी के अनुयायियों के सामूहिक अचेतन में जागृत होती है। इसी के ज़रिए मुसलमानों के बीच क़ुरआन के मानवतावादी और सार्वभौमिक मिशन और इस मिशन की प्राप्ति के लिए धर्मनिष्ठा (परहेज़गारी/तक़वा) प्राप्त करने की शुद्ध भावना हर साल ताज़ा हो जाती है।
मदरसों पर विवाद की हक़ीक़त क्या है?
यह बात एक हक़ीक़त है कि अगर मदरसे न हों तो मुसलमानों की एक बड़ी तादाद बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने से वंचित रह जाएगी जबकि बुनियादी और मुफ़्त शिक्षा देने का काम तो ख़ुद सरकार को ही करना चाहिए, जिस काम को मदरसे बख़ूबी अंजाम दे रहे हैं। मदरसों ने करोड़ों बच्चों को शिक्षा से जोड़ा है जो आज देश की तरक़्क़ी में अपना योगदान दे रहे हैं।
पैग़ंबर मुहम्मद (स०) और उनके साथियों का पहला रमज़ान
इबादत और रोज़ा का मतलब दैनिक जीवन के कामों और अन्य अभ्यासों को छोड़ देना नहीं है। अल्लाह के रसूल (सल्ल०) रमज़ान में अपने दैनिक जीवन को बाधित न करने की कोशिश करते थे, और अगर उन्हें रोज़े के दौरान कुछ करना होता, तो वह करते थे। अपने कामों में वह रोज़े के नाम पर देरी नहीं करते थे।
बिहार शरीफ़ दंगा प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा : प्रतिनिधि मंडल
बिहार शरीफ़ में राम नवमी के अवसर पर हुए दंगे के बाद ख़बरें और तस्वीरें चर्चा में रहीं। इसी बीच जमाअत-ए-इस्लामी हिंद और स्टूडेंट्स...