दूसरों की रोशनी चुराकर चमकते दिखने की निर्लज्ज चाहतें
जिस देश में ख़ुद उसके प्रधानमंत्री के दावे के हिसाब से 80-85 करोड़ लोग सरकार के 5 किलो राशन और हज़ार डेढ़ हज़ार रुपयों की बाट जोहते इतने हताश हो गए हैं कि किसी भी चिरकुट बाबा के यहां बीसियों हज़ार की भीड़ बनाकर भगदड़ में मौत के मुंह में जाने का जोखिम उठा रहे हैं, ऐसे देश में इतनी विपुल मात्रा में धन का पानी की तरह बहाया जाना किसी भी सभ्य समाज के लिए क्षोभ और लज्जा का विषय है, एक राष्ट्रीय अपराध है।
पुरुषवादी समाज में औरत की तलाश करती है ‘लापता लेडीज़’
दो दुल्हनों के किरदार के ज़रिए इस फ़िल्म में भारतीय रुढ़िवादी परंपराओं ख़ासकर पितृसत्तात्मक सोच और उससे पनपी सामाजिक जटिलताओं को बेहद ख़ूबसूरत अंदाज़ में सामने लाया गया है और ना केवल उन्हें सामने लाकर असहाय छोड़ दिया गया है बल्कि फूल और जया के किरदार के ज़रिए सामाजिक कुरीतियों को कड़ी चुनौती देते हुए अंत में एक ज़बरदस्त संदेश भी दिया गया है।
भौतिकवादी दौर में नैतिकता का चयन बोझ नहीं है
नैतिकता इन्सान के लिए कोई अप्रिय बोझ बिल्कुल नहीं है। रंग और सुगन्ध फूलों पर बोझ नहीं होते। परिन्दों के पंख उनके के लिए कभी भार नहीं होते, बल्कि ये उनकी शोभा भी हैं और उड़ान में उनके सहायक भी। यही हाल फूलों के रंग और गन्ध और आँखों की पलकों का भी है। इन्सान के जीवन में भी वास्तविक सौन्दर्य नैतिकता ही से उत्पन्न होता है। नैतिकता से वंचित हो जाने के बाद इन्सान के पास कोई मूल्यवान वस्तु शेष नहीं रहती।
क्या ‘नेट’ और ‘नीट’ की विफलता शैक्षिक महामारी की ओर इशारा कर रही है?
शिक्षा के उपयोगितावादी दृष्टिकोण ने उसकी वास्तविक भावना को धुंधला कर दिया है, जिससे शिक्षा के महान क्षेत्र को एक वाणिज्यिक, धन कमाने वाले व्यवसाय में बदल दिया गया है।
एक फांसी – जॉर्ज ऑरवेल
‘एनिमल फ़ार्म’ और ‘नाइंटीन एटी फ़ोर’ जैसी कृतियों के प्रसिद्ध लेखक जॉर्ज ऑरवेल 1922 से 1927 के बीच ब्रिटिश पुलिस के अधिकारी के रूप में बर्मा में रहे थे। उन्हीं दिनों के अनुभवों पर लिखा उनका यह लेख ‘ए हैंगिंग’ पहली बार 1931 में एक ब्रिटिश पत्रिका ‘द एडेल्फ़ी’ में छपा था। हालांकि ऑरवेल ने कभी नहीं बताया कि यह अनुभव किस शख़्स की फांसी पर है। उनसे जब कभी पूछा गया तो उन्होंने इसे बस एक कहानी बताया।
क्या यहूदी एक बेघर क़ौम थे? जानिए इज़राइल के इस दावे का सच
ज़ायोनवाद दरअस्ल, एक यहूदी परियोजना बनने से पहले एक ईसाई उपनिवेशवादी परियोजना थी। इसके स्पष्ट प्रतीक विक्टोरियन ब्रिटेन में 1820 के दशक से ही दिखाई देने लगे थे। एक शक्तिशाली धार्मिक और साम्राज्यवादी आंदोलन उभरा जो फ़िलिस्तीन में यहूदियों की वापसी को एक रणनीतिक योजना के केंद्र में रख कर इसे ईसाई साम्राज्य का भाग बनाना चाहता था। उन्नीसवीं शताब्दी में यह भावना ब्रिटेन में और भी लोकप्रिय हुई और आधिकारिक साम्राज्यवादी नीति पर काफ़ी प्रभावित हुई।
कॉर्पोरेट हिंदुत्व का बेताल अब एनडीए के विक्रम के कंधे पर सवार रहेगा
यक़ीनन चुनाव परिणामों ने अंधेरी चादर में एक बड़ा सुराख़ किया है - इससे पहले कि कॉर्पोरेट हिंदुत्व इसे थेगड़े लगाकर रफ़ू करे, इसे और ज़्यादा चौड़ा करना होगा। एक जगह बनी है - इससे पहले कि इसे दोबारा से हड़पने की साज़िशें कामयाब हों, इसे आर्थिक सहित वैचारिक, सांस्कृतिक आदि सभी मोर्चों पर गतिशीलता बढ़ाकर और वृहद बनाना होगा।
लोकसभा चुनाव 2024: एक विश्लेषण
इंडिया गठबंधन आंशिक रूप से मुस्लिम मतदाताओं के सर्वसम्मत समर्थन के कारण सफल रहा, जिन्होंने भारत में विभाजनकारी और नफ़रत की राजनीति के ख़िलाफ़ खुलकर वोट किया। अब सवाल यह है कि क्या ये पार्टियां अल्पसंख्यक विभागों के ज़रिए प्रतीकात्मक काम करने से आगे बढ़कर, वास्तव में अपने राज्यों के अल्पसंख्यक समुदायों में निवेश करेंगी? क्या इन पार्टियों के भीतर राजनीतिक आरक्षण पर चर्चा होगी और आगामी चुनावों में मुस्लिम प्रतिनिधियों को अधिक सीटें आवंटित की जाएंगी?
विश्व बाल श्रम निषेध दिवस: बचपन पढ़ाई के लिए, कमाई के लिए नहीं
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार दुनिया भर में 21 करोड़ से अधिक बच्चों से बाल मज़दूरी करवाई जाती है। 71 देश ऐसे हैं जहां बच्चों को मज़दूरी करने के लिए किसी-न-किसी रूप में मजबूर होना पड़ता है।
NEET विवाद पर न्याय की मांग करते हुए एसआईओ ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़...
NEET विवाद को लेकर एसआईओ ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है, जिसमें नीट की काउंसलिंग को रोकने और राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) द्वारा आयोजित पूरी प्रक्रिया की एसआईटी जांच कराने की मांग की गई है।