पुलिस की लापरवाही के कारण हुई बेंगलुरु हिंसा – फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट

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पिछले महीने बेंगलुरु में हुई हिंसा को लेकर सिविल सोसाइटी के 11 संगठनों के सहयोग से बनी “सिविल सोसायटी- फैक्ट फाइंडिंग टीम” द्वारा एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की गई है जिसमें हिंसा के लिए पुलिस द्वारा कार्रवाई में देरी को ज़िम्मेदार ठहराया गया है.

इस रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक पर एक अपमानजनक पोस्ट के खिलाफ़ की गई शिकायत और इसके बाद हुई प्रतिक्रिया पर देरी से कार्यवाही करने के कारण बैंगलुरू हिंसा में भड़की. रिपोर्ट एक वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में बुधवार को रिलीज़ की गई, जिसे सेवानिवृत हाई कोर्ट जज जस्टिस नागा मोहन दास और दूसरे लोगों द्वारा ब्रीफ किया गया. रिपोर्ट अभी सरकार को सौंपा जाना बाकी है.

रिपोर्ट के अनुसार, घटना कि रात को मुस्लिम समुदाय के दो प्रतिनिधिमंल पूर्वी बैंगलुरू के डीजे हाली और केजी हाली पुलिस स्टेशनों में पहुंचे थे. घटना वाले दिन 5:30 बजे प्रतिनिधि मंडल पी. नवीन कुमार के फेसबुक पेज पर उसके द्वारा मोहम्मद साहब पर पोस्ट की गई अपमानजनक तस्वीरों के विरुद्ध शिकायत दर्ज करवाना चाहते थे. उस पर पुलिस ने कोई एक्शन नहीं लिया.

रिपोर्ट के अनुसार पुलिस स्टेशन पर भीड़ पूरी तरह से शांत थी:

पुलिस द्वारा एफआईआर और नवीन के ख़िलाफ़ एक्शन में देरी की वजह से दोनों स्टेशनों पर भीड़ बढ़ने लगी जिसने बाद में नवीन और विधायक अखंड श्रीनिवास मूर्ति के घर पर अटैक कर दिया.

रिपोर्ट बताती है कि पुलिस न सिर्फ नवीन के ख़िलाफ़ शिकायत पर कार्यवाही करने में विफल हुई बल्कि कवल बिरासंद्रा जहां विधायक व नवीन के घर हैं वहां भी हिंसा व आगजनी को रोकने में नाकाम रही. नवीन के परिवार के मुताबिक पुलिस ने उनके फोन का कोई जवाब नहीं दिया और जब हिंसा शुरू हुई तो तीन पुलिस वाले जो आये थे वो फौरन लौट गए. इसके बाद भीड़ ने विधायक के घर हमला कर दिया गया परन्तु पुलिस द्वारा देर रात 1:30 बजे हालात को काबू में किया गया.

कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन अब्दुल अज़ीम के अनुसार भी डीजे हाली में पुलिस द्वारा कार्यवाही में देरी के कारण उपजे गुस्से ने हिंसा भड़काई.

हिंसा पूर्वनियोजित नहीं थी : रिपोर्ट

रिपोर्ट के अनुसार हिंसा पूर्वनियोजित नहीं थी लेकिन स्थानीय राजनीतिक दलों द्वारा आगामी निगम चुनावों में राजनीतिक लाभ उठाने के लिए एक अवसर के तौर पर इस्तेमाल की गई.

रिपोर्ट आगे कहती है कि भीड़ ने हिन्दू समुदाय को निशाना बनाया इसके पर्याप्त सबूत नहीं है. जिस प्रकार हिंसा हुई उससे लगता है कि यह पूरी तरह से एक स्थानीय दुर्घटना थी.

भीड़ नेतृत्व विहीन थी:

भीड़ को उकसाने के आरोप में पुलिस द्वारा की गई एसडीपीआई नेता मुज़म्मिल पाशा की गिरफ्तारी पर रिपोर्ट सवाल खड़ा करती है. रिपोर्ट कहती है कि कोई भी भीड़ का नेतृत्व नहीं कर रहा था.

रिपोर्ट आगे बताती है कि मुजम्मिल पाशा ने सिर्फ़ आपत्तिजनक पोस्ट डालने वाले के खिलाफ कार्यवाही की मांग की, उसके द्वारा भीड़ को उकसाने का कोई सबूत नहीं है.

हिंसा के शिकार कोई ख़ास स्थान नहीं थे:

रिपोर्ट के अनुसार हिंसा के शिकार कई धर्मो के लोग हुए. संदिग्ध मुज़म्मिल पाशा सहित दूसरे मुसलमानों और ईसाईयों के वाहनों और संपत्तियों को लूटा गया और नुकसान पहुंचाया गया. मुनेगौड़ा में घटना का इस्तेमाल कुछ लोगों द्वारा व्यक्तिगत प्रतिशोध लेने के लिए भी किया गया.

मीडियाकर्मियों और पुलिस स्टेशन की रक्षा मुसलमानों द्वारा की गई:

रिपोर्ट कहती है मुसलमानों द्वारा बिरासंद्रा में मानव श्रृंखला बनाकर मन्दिर व डीजे हाली में पुलिस स्टेशन को बचाया गया. कन्नड़ न्यूज़ चैनल स्वर्ण न्यूज़ के पत्रकार रवि ने फैक्ट फाइंडिंग टीम को बताया कि, “हालांकि मुझपर मुसलमानों द्वारा हमला किया गया लेकिन बचाने वाले भी मुसलमान ही थे.”

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ जब हमला शुरू हुआ तो नवीन के परिवार को भी पड़ोसी मुस्लिम परिवार द्वारा बचाया गया.

आपत्तिजनक पोस्ट के पीछे नवीन के इरादों की जांच के बारे में सरकार पूरी तरह से खामोश है:

रिपोर्ट, नवीन द्वारा की गई आपत्तिजनक पोस्ट के पीछे नवीन के इरादों की जांच के बारे में राज्य सरकार पर सवाल खड़े करती है. राज्य की बीजेपी सरकार ने नवीन और उसकी आपत्तिजनक पोस्ट की कोई निंदा नहीं की. राज्य सरकार ने सिर्फ मुसलमानों पर नकेल कसने का काम किया और नवीन की आपत्तिजनक पोस्ट और उसके पीछे छिपी साज़िश पर चुप्पी साध ली. 11 अगस्त की इस घटना के पीछे छिपे कारण सामने आए या न आए लेकिन बीजेपी सरकार ने इसका इस्तेमाल सांप्रदायिक आधार पर समाज का ध्रुवीकरण करने के लिए किया है.

हिंसा के बाद की कार्रवाई, मध्यरात्रि गिरफ्तारियां और मुसलमानों का प्रदर्शन:

रिपोर्ट में कर्फ्यू के बाद मुस्लिम इलाकों में बिगड़े हालात का ज़िक्र है. पुलिस ने कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए बिना मुस्लिम युवाओं को गिरफ्तार किया. रिपोर्ट के अनुसार मीडिया हाउस और बीजेपी नेता मुस्लिम समुदाय की छवि का गलत चित्रण करने में व्यस्त रहे. रिपोर्ट आगे बताती है कि जिस प्रकार धारा 144 लगाई गई उससे इलाके में अपराधीकरण बढ़ा.

रिपोर्ट कहती है कि जहां भी पुलिस द्वारा छापेमारी कर गिरफ्तारी की गई उस इलाके के हालात बुरे हो गए. रिपोर्ट बताती है कि ज़फरुल्ला लेआउट के लोगों की दुर्दशा पर विचार किया जाए जहां 40-45 घरों से तीस पेतीस लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया.

गिरफ्तारियों में नियत कानूनी प्रक्रिया का अभाव:

गिरफ्तारियां करते समय पुलिस ने न तो गिरफ्तार व्यक्तियों के परिवार को सूचित किया और न ही गिरफ्तारी के बाद कोई ज्ञापन जारी किया. फैक्ट फाइंडिंग टीम ने डीजे हाली और केजी हाली पुलिस स्टेशनों के बाहर अपने रिश्तेदारों का पता लगाने के लिए प्रतीक्षा करती महिलाओं को भी देखा.

रिपोर्ट ध्यान दिलाती है कि यह देखा गया कि मजिस्ट्रेट के समक्ष आरोपियों को पुलिस कर्मियों के फोन द्वारा वीडियो कॉल के माध्यम से पेश किया गया जबकि कथित रूप से उन्हें हिरासत में रखा गया था. इस प्रकार की पेशी के बाद उनका रिमांड लिया गया.

मजिस्ट्रेट की भूमिका पर सवाल:

जिस प्रकार बिना किसी नोटिस और वीडियो कॉल पर पेशी के बाद हिरासत के आदेश दिए गए उस पर रिपोर्ट सवाल खड़े करती है. रिपोर्ट कहती है मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए आरोपियों के डिटेंशन के आदेश में उचित तर्को का अभाव है.

गिरफ्तारी और हिरासत के लिए दिए गए आदेशों में पूरी तरह से कानूनी प्रक्रियाओं का अभाव है.

आरोपियों को उनका पक्ष रखने के लिए किसी प्रकार की कानूनी मदद नहीं दी गई:

दो मामलों का उदाहरण देते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है, “अभियुक्तों को अपनी पसंद के वकीलों तक पहुंचने से वंचित किया गया और कोई कानूनी सहायता नहीं दी और उन्हें उनके कानूनी प्रतिनिधित्व के अपने मौलिक अधिकार से वंचित किया गया.”

मीडिया द्वारा प्रमाणहीन और पक्षपाती रिपोर्टिंग:

मीडिया ने मुसलमानों और इस्लाम धर्म के ख़िलाफ़ रिपोर्टिंग इस प्रकार से की है कि दूसरे लोगों में उनके खिलाफ नफरत बढ़े. हर दिन मीडिया ने मुख्य अभियुक्त को लेकर बयान बदला. मीडिया हाउसेज़ ने इस्लामोफोबिक न्यूज़ चलाई. 11 अगस्त की घटनाओं का पक्षपातपूर्ण तरीके से कवरेज किया गया.

(इस रिपोर्ट को हुमा अहमद द्वारा हिंदी में अनुवाद किया गया)

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