“मेरे पति निर्दोष हैं,वह एक पत्रकार हैं और घटना की रिपोर्टिंग के लिए हाथरस जा रहे थे”

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उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा हाथरस जाने के रास्ते में केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन, मुजफ्फरनगर के अतीक-उर रहमान, बहराइच के मसूद अहमद और रामपुर के आलम को यूएपीए की धारा के तहत गिरफ्तार किया है।पुलिस ने जिले के चंदपा थाने में जाति आधारित संघर्ष की साजिश, सरकार की छवि बिगाड़ने के प्रयास और माहौल बिगाड़ने के आरोप में अज्ञात लोगों के खिलाफ FIR भी दर्ज की है. इस मामले में चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है,प्राथमिकी के अनुसार पुलिस का कहना है की चारों हाथरस में शांति भंग करने की साजिश रच रहे थे.
पुलिस ने धारा 153A (विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना), 295-ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्यों, धार्मिक भावनाओं को भड़काने के इरादे से) और भारतीय दंड संहिता की 124A (राजद्रोह), और धारा 17 (धन जुटाने के लिए दंड) के तहत मामला दर्ज किया है।

केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (KUWJ) ने हाथरस की घटना को कवर करने गये पत्रकार की गिरफ्तारी पर कड़ी प्रतिक्रिया जताते हुए सुप्रीम कोर्ट में हेबियस कॉर्पस (बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका) दायर की है। संगठन ने माँग की है कि पत्रकार को अवैध हिरासत से तत्काल मुक्त किया जाये.

इस बीच, केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (KUWJ) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर सिद्दीकी की रिहाई की मांग की है.

पीएम को लिखे पत्र में संघ ने कहा कि सिद्दीकी एक पत्रकार के रूप में अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए हाथरस जा रहे थे.

यूपी सरकार एंव सत्ताधारी दल के मीडिया संस्थानों ने दावा किया था कि हाथरस जातीय दंगा भड़काने के लिये 100 करोड़ की फंडिंग हुई थी, यह पैसा भीम आर्मी और पीएफआई को मिला था। लेकिन इस दावे को ईडी ने खारिज कर दिया है।
केरला के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन को हिंसा की साज़िश के आरोप में यूपी पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद उनकी पत्नी रहिनात ने अपने पति पर लगे आरोपों को निराधार बताया है.
रहिनात ने बताया कि, “उनके पति निर्दोष हैं. वह एक पत्रकार हैं घटना की रिपोर्टिंग के लिए हाथरस जा रहे थे.”

रहिनात कहती हैं कि, “अपनी गिरफ्तारी से कुछ दिन पहले उन्होंने मुझसे बात की और बताया था कि वह हाथरस बलात्कार पीड़िता के परिवार से मिल कर एक न्यूज़ स्टोरी की योजना बना रहे हैं लेकिन पुलिस द्वारा पैदा की जा रही रुकावट और कार की अनुपलब्धता के कारण उन्हें वहाँ पहुँचना मुश्किल लग रहा था.”
“उन्हें सिद्दीक के दिल्ली स्थित दोस्त से 6 अक्टूबर को अपने पति की गिरफ्तारी की खबर मिली जिन्होंने सिद्दीक के गिरफ्तारी की खबर न्यूज़ में पढ़ी थी.”

उन्होंने कहा, “अभी तक हमें अपने पति की गिरफ़्तारी पर यूपी पुलिस से कोई सूचना या जानकारी प्राप्त नहीं हुई है हालाँकि कल केरल पुलिस ने हमारे घर का दौरा किया और हमारे परिवार और सिद्दिक के बारे में हमसे जानकारी ली.”

रहिनाथ ने बताया, “मैं अपने पति के लिए चिंतित हूं क्योंकि वह 25 वर्ष की उम्र से ही डायबिटीज़ के मरीज़ हैं. वह हमारे परिवार का एक मात्र कमाने वाले सदस्य हैं. मैं अपने पति सिद्दीक की 90 वर्षीय मां और हमारे 3 बच्चों के साथ रहती हूं. हमारे पास आय का कोई अन्य स्रोत नहीं है. हम सिद्दीक के लिए वकील का ख़र्च भी नहीं उठा सकते हैं.”

पत्रकार वसीम अकरम त्यागी लिखते हैं

” फेक न्यूज़ फैलाने वाले तथाकथित पत्रकारों और सरकार के लोगों पर कोई मामला दर्ज क्यों नहीं हुआ? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। हाथरस में आरोपियों के समर्थन में पंचायत करने वाले लोगों के खिलाफ कोई मामला क्यो नहीं दर्ज किया गया? इसका जवाब भी किसी के पास नहीं है। राज्यसभा सांसद संजय सिंह पर स्याही फेंककर माहौल बिगाड़ने की कोशिश करने वाले शख्स को मात्र कुछ घंटे बाद ही थाने में बैठाकर क्यों छोड़ दिया गया? इसका जवाब भी किसी के पास नहीं है। हाथरस की मृतका का चरित्रहनन की कोशिश करने वाले सत्ताधारी दल के नेताओं पर कोई एक्शन क्यों नहीं लिया गया? इसका जवाब भी किसी के पास नहीं है। हाथरस के अभियुक्त जेल से चिट्ठी क्यों भेज रहे हैं? इसका जवाब भी किसी के पास नहीं है। हाथरस में पीड़िता के घर मिलने आने वाले समाजिक कार्यकर्ताओं, राजनेताओं को सर फोड़ने की धमकी देने वाले शख्स पर मुक़दमा दर्ज क्यों नहीं हुआ? इसका जवाब भी किसी के पास नहीं है। हाथरस के अभियुक्तों पर यूएपीए अथवा राजद्रोह क्यों नहीं लगाया गया?इसका जवाब भी किसी के पास नहीं है। लेकिन एक पत्रकार और समाजिक संगठन पीएफआई के कार्यकर्ताओं की आधारहीन गिरफ्तारी कर ली जाती है ?”

हाथरस के रास्ते में गिरफ्तार किए गए अन्य छात्र अतीक उर रहमान कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष हैं,मसूद खान,जामिया के छात्र एवं सीएफआई दिल्ली के महासचिव है और इन्ही के साथ आलम भी थे।

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