वास्तविक स्वतन्त्रता

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वास्तविक स्वतन्त्रता क्या होती है यह वही जान सकता है जिसने गुलामी सही हो अपनी ज़िन्दगी के हर पल को गुलाम बनकर जिया हो।
डॉ. अब्दुल करीम जैदान लिखते है -” कानून के माहिर व्यक्ति की स्वतंत्रता की परिभाषा यह बताते है की इससे व्यक्ति की ऐसी आज़ादी से तात्पर्य है जिसमे उसे अपनी गतिविधि की आज़ादी हासिल हो और उसका व्यक्तित्व हर प्रकार के अन्याय एवं अत्याचार से सुरक्षित रहे।उसे नियमपूर्ण अदालती कार्यवाही के बगैर गिरफ्तार ना किया जा सके।”

इस्लाम व्यक्ति पर इस तरह की ज़्यादती अर्थात् जान माल और इज़्ज़त पर हाथ डालने को अत्याचार बताता है। और ऐसे अपराधियो को कठोर दंड देने का प्रावधान बताता है।केवल शक की बुनियाद पर किसी को सजा नही दी जा सकती। कोई भी सभ्य तथा राज्य व्यक्ति के अपमान एवं तिरस्कार की अनुमति नही देता।

हिंदुस्तान मे इस्लामी सभ्यता की आमद के बाद, मनुष्य की प्रतिष्ठा, उसकी महानता, उसकी स्वतंत्रता के अधिकारो की रौशनी खिल उठी।
मुहम्मद अली जौहर ने एकेश्वरवाद का कुछ यूँ वर्णन किया-” की मनुष्य केवल अल्लाह की गुलामी के लिए पैदा हुआ है वे आपस मे एक दूसरे के गुलाम नही हो सकते।

लेकिन आज का हर स्वतंत्र देश किसी ना किसी रूप मे किसी ना किसी का गुलाम बना हुआ है। निचली सीढ़ियों से लेकर ऊपर तक हर व्यक्ति को किसी ना किसी का डर खाये जाता है।

इस्लामी धारणा के अनुसार मनुष्य इस ज़मीन पर अल्लाह का प्रतिनिधि है।मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ दर्जा प्रदान कर उसके लिए अपनी प्रतिष्ठा एव् मर्यादा की सुरक्षा को भी अनिवार्य बता दिया गया।

इस्लाम ने 1400 वर्ष पूर्व मानव जाति को बहुत से अधिकार प्रदान किये-
1. ज़िंदा रहने का अधिकार और इंसानी ज़िन्दगी का सम्मान अनिवार्य बताया।
2. सुरक्षा का अधिकार।
3. स्त्री की मर्यादा का अधिकार
4. हर मनुष्य का यह अधिकार की उसके साथ न्याय किया जाए।
5. ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने का अधिकार।
6. इंसानी बराबरी का अधिकार।
7. अच्छाई मे दुसरो का साथ देने का अधिकार।
8. हर वंचित मांगने वाले का अधिकार की उसकी सहायता की जाए।
9. सुरक्षा का अधिकार
10. कही भी किसी भी तरह की लोगो के मदद करने का अधिकार।
ये अधिकार ऐसे रहे की अमन और इंसाफ पसंदों ने इसे फ़ौज़ दर फ़ौज़ क़ुबूल किया तथा यह कानून फैलता ही चला गया।

वर्तमान युग में हम कई सवालों के जवाब ढूंढकर भटक रहे हैं लेकिन जवाब नही मिल पा रहा है क्योंकि जिस चश्में को पहने हमने अब तक समाजिक समस्याओं के हल को लेकर जवाब तलाशें हैं उस एंगल में इस्लाम बहुत धुंधला नज़र आता है।
ज़रूरत इस बात की है कि या तो अपने चश्में के लेंस को बदला जाए या फिर यूँ ही कई और सालों तक भटका जाए,क्योंकि जवाब है,हर सवाल के,ऐसा कोई सवाल नही जिसका जवाब इस्लाम की उत्तरावली में ना हो इसलिए खोजने के नज़रिए को विस्तृत कीजिए,इसी में समाज की सम्पूर्ण भलाई है।

– खान शाहीन (सीकर , राजस्थान)

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