हमें उमर ख़ालिद को क्यों याद रखना चाहिए?

ऐसे समय में जब यह सत्ता मिथकों को तथ्यों में बदलने के लिए इतनी मेहनत कर रही है, हमारी लौकिक और स्थानिक वास्तविकताओं को बदलने के लिए शहरों और सड़कों का नाम बदल रही है और कायरों को स्वतंत्रता सेनानियों की तरह मना रही है, हमारा प्रतिरोध हमारे याद रखने में निहित है।

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हमें उमर ख़ालिद को क्यों याद रखना चाहिए?

अपेक्षा प्रियदर्शिनी

एक बार जब उमर को सुनवाई के लिए अदालत में लाया गया, तो मैं उसे चोरी-छिपे देने के लिए फूलों का एक गुच्छा ले गयी थी, उन सभी अवसरों के लिए आभार के रूप में जो जेल यात्राओं पर वह मेरे लिए लाते रहते थे। लेकिन इससे पहले कि उसे झटके से दूर ले जाया जाता, एक पुलिस वाले ने उसके हाथ में फूल देख लिए और उन्हें छीनकर फ़र्श पर फेंक दिया। क़ैद होने की भावना को एक बाहरी व्यक्ति के रूप में बयान करना जितना कठिन हो सकता है, उस कठिनाई के साथ इतना कह सकते हैं कि क़ैद में होना एक ऐसा अनुभव है जो अनगिनत ऐसी क्रूर घटनाओं के पहाड़ से मिलकर बना है, जिसकी पीड़ा तब और भी बढ़ जाती है जब तमाम शक्तियाँ आपको यह विश्वास दिलाने के लिए लगातार काम कर रही होती हैं कि आप एक अपराधी हैं जब कि आपने कोई अपराध न किया हो।

एक हज़ार दिन एक लंबा समय होता है – इतना लंबा समय कि हम यह भूल सकें कि बाहर की दुनिया कैसी थी। मुझे याद है कि मेरी एक मुलाक़ात के दौरान उमर ने मुझसे कहा था, “तुम जानती हो, मैं जेल के अंदर जितना अधिक समय बिताता हूं, मुझे अपने पेशी के दिनों में अदालतों के अंदर की अराजकता और अनगिनत लोगों के हंगामे से निपटना और भी अधिक कठिन लगता है। एक बार जब मैं अदालत से वापस आया और तिहाड़ के अंदर पुलिस वैन से उतरा, तो मैंने ख़ुद को अनायास ही ‘चलो, घर आ गए’ कहते हुए पाया।“

एक हज़ार दिन काफ़ी हैं यह भूलने के लिए कि इतने सालों में अंदर दिन और रात कैसे गुज़रे हैं। “जब कुछ क़ैदियों ने, जिन्हें कोविड के दौरान जेलों में भीड़ कम करने के लिए ज़मानत पर बाहर भेजा गया था, वापस लौटे और मुझसे कहा, ‘तुम अभी भी यहीं हो!’, मुझे एहसास हुआ कि मैं कितने अरसे से अंदर हूँ।”

एक हज़ार दिन का समय इतना लंबा है कि आप मान लेते हैं कि अब आप वो इंसान नहीं रह गए जो हर छोटी-छोटी बात पर क़ैद होने की भावना से लड़ पड़ता था। वो मुझसे कहता है, “इससे पहले, जब मैं अभी-अभी जेल आया था, और जेलर सूर्यास्त के बाद कोठरियों को बंद करने के लिए आता था, तो मैं हमेशा कुछ अतिरिक्त मिनट के लिए अहाते में टहलने के लिए बहस किया करता था। अब, मैं बिना किसी विरोध के अंदर चला जाता हूँ।”

अतीत के दार्शनिकों और विचारकों के अनगिनत जेल नोटों के माध्यम से, इतिहास इस तथ्य का गवाह रहा है कि कारावास सत्ता द्वारा उपयोग किया जाने वाला केवल वह साधन नहीं है, जो संघर्षरत निडर नेताओं को अलग-थलग करता है जिससे उनकी क्रांति नेतृत्वविहीन हो जाए, बल्कि यह भी कि इन युवा मस्तिष्कों की इच्छाशक्ति टूटे ताकि कोई और उनके चारों ओर खींची गई सीमा रेखाओं से आगे जाने की हिम्मत न करे। इस शासन का गेम प्लान दो-तरफ़ा है – हमारे समाज में दशकों से मौजूद विभाजन को मज़बूती प्रदान करना, और साथ ही उन एकजुटताओं के पुल को मिटाना जो उमर जैसे कई लोगों ने इन दीवारों के पार बनाने का प्रयास किया है।

अगर शाहीन बाग़ की मुस्लिम महिलाओं के प्रति किसानों की एकजुटता ने उन्हें सरकार के सामने अपनी मांगों को उठाने के लिए विरोध के इस तरीक़े का अनुकरण करने के लिए प्रेरित किया, तो शासन ने यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम किया कि विरोध करने का यह तरीक़ा ही आपराधिक साबित हो जाए। अगर आज किसान, महिला पहलवानों के साथ बड़े पैमाने पर हो रहे यौन उत्पीड़न का विरोध कर रहे हैं और कुश्ती महासंघ के प्रमुख के इस्तीफ़े की मांग कर रहे हैं, तो सरकार की रणनीति इस विरोध को तोड़ने के लिए यह है कि इन नेताओं को ख़ुद ही अपराधी घोषित कर दिया जाए।

और इसके बावजूद भी उमर जैसे लोग, जिन्होंने अपनी जवानी के कितने ही क़ीमती साल सलाख़ों के पीछे बिता दिए हैं, जो नफ़रत की आज़माई और परखी हुई इस राजनीति से अच्छी तरह वाकिफ़ हैं जिसका भरपूर इस्तेमाल प्रशासन कर रहा है, उनके लिए भी यह ज्ञान शायद ही कभी क़ैद के जुड़े अमानवीय व्यवहारों से जूझने को आसान करता है। कुछ भी नहीं तो हमारे देश में मुसलमानों जैसे हाशिए पर पड़े समुदायों को बदनाम करने वाली फ़र्ज़ी ख़बरों और व्हाट्सएप फ़ॉरवर्ड के आग की तरह तेज़ी से फैलने की वजह से जेल के अंदर अपने व्यापक राजनीतिक उद्देश्यों को ध्यान में रखना और भी मुश्किल हो जाता है। मेरी एक मुलाक़ात के दौरान, उमर ने मुझे बताया कि द कश्मीर फ़ाइल्स जैसे प्रॉपगैंडा कृतियों का जेल के अंदर के माहौल पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है। “अचानक अब तक जो लोग आपको सिर्फ़ दूर से शक की निगाह से देखते थे, उनमें आपके पास आने और यह कहने की हिम्मत आ जाती है कि सभी आतंकवादी तुम्हारे धर्म के हैं।”

अदालत की पेशियों और तिहाड़ में उमर से मिलना रियलिटी चेक की एक श्रृंखला से कम नहीं है। हर बार जब इस शासन के सांप्रदायिक और अन्यायपूर्ण एजेंडे के ख़िलाफ़ लड़ाई बाहर थकाने लगती है, तो मुझे याद आता है कि मेरे साथी कॉमरेड अंदर किस चीज़ से लड़ रहे हैं। और हमें ज़रूर याद रखना चाहिए। क्योंकि याद रखना गवाही देने के बराबर है, और अगर हमारे बोलने पर की जाने वाली सेंसरशिप हमें घुटन महसूस कराती है, तो हमें याद रखना चाहिए कि अपने संघर्षों की स्मृति को जीवित रखने के साथ-साथ हम इन संघर्षों को भी जीवित रख सकते हैं। हम याद करते हैं, सिर्फ़ इसलिए नहीं कि हमें लड़ने की ताक़त मिलती रहे, बल्कि इसलिए भी कि अल्पकालिक समाचार चक्रों के युग में याद रखना अपने आप में भी संघर्ष है। हमें याद रखना चाहिए, जैसा कि उमर कहते हैं, कि दुनिया भर में सबसे बुरी तानाशाही सत्ताओं का अंत हुआ है, और अपराधियों को न्याय के कटघरे में खड़ा होना पड़ा है, केवल इसलिए कि जो लोग उनके ज़ुल्म से बच गए, उन्होंने याद रखा कि उन्होंने क्या-क्या किया था। ऐसे समय में जब यह सत्ता मिथकों को तथ्यों में बदलने के लिए इतनी मेहनत कर रही है, हमारी लौकिक और स्थानिक वास्तविकताओं को बदलने के लिए शहरों और सड़कों का नाम बदल रही है और कायरों को स्वतंत्रता सेनानियों की तरह मना रही है, हमारा प्रतिरोध हमारे याद रखने में निहित है।

जब मैं अपने उन दोस्तों से मिलती हूं जो समय-समय पर जेल में बंद रहे हैं, तो मैं उनके द्वारा कहे गए हर शब्द, उनके द्वारा व्यक्त की जाने वाली हर भावना, और उनके द्वारा बताए गए हर अनुभव को आत्मसात करने और उनके साथ-साथ याद रखने के लिए तैयार हो जाती हूँ। मैं सब लिखती हूँ जो भी उन्हें अंदर से कहना है ताकि हममें से जो बाहर हैं वो उस एकजुटता को क़ायम करना जारी रखें जिसे इन युवा नेताओं ने सत्ता द्वारा खड़ी की गई दीवारों के पार बनाने का साहस किया है। और प्रेम के हर संदेश में, आशा के, स्मरण के, प्रार्थनाओं के, प्रतीक्षा के, जो बाहर का कोई भी व्यक्ति, जाने-अनजाने, मुझसे इन क़ैदियों के लिए भेजता है – मैं इन दीवारों को टुकड़े-टुकड़े होते देखती हूँ।

(अंग्रेज़ी से अनुवाद: उज़्मा सरवत)

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