ओडिशा ट्रेन हादसा: एक राहतकर्मी से बातचीत

मुमताज़ ने छात्र विमर्श को बताया कि अब ज़्यादातर लोग, जो घायल थे, वे अपने-अपने स्थानों पर लौट गए हैं, जिनमें अधिकतर पश्चिम बंगाल से थे लेकिन मृतकों की जो तादाद सरकार बता रही है, वह बिल्कुल विपरीत है। ग्राउंड पर ये आंकड़े तक़रीबन एक हज़ार के क़रीब पहुंचते दिखाई दे रहे हैं।

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ओडिशा ट्रेन हादसा: एक राहतकर्मी से बातचीत

रिपोर्ट: उवैस सिद्दीक़ी

ओडिशा के बालासोर में बहानगा बाज़ार स्टेशन के पास 2 जून को ये ट्रेन हादसा पेश आया। चेन्नई से हावड़ा जा रही कोरोमंडल एक्सप्रेस लूप लाइन में खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई थी। इसके बाद कोरोमंडल एक्सप्रेस के कई डिब्बे पटरी से उतर गए और पास वाली लाइन से गुज़र रही यशवंतपुर हावड़ा एक्सप्रेस से टकरा गए। रिपोर्ट लिखे जाने तक इस हादसे में 275 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। जबकि हज़ार से अधिक लोग घायल हैं और अब कई लोगों को डिस्चार्ज भी किया जा चुका है।

इस हादसे के बाद देश भर में दुःख की लहर दौड़ गई और इसे देश के इतिहास के ख़ौफनाक हादसों में से एक हादसा माना गया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार दुर्घटना में जान गवाने वालों की तादाद 288 है जबकि लगभग 900 लोग बुरी तरह घायल हैं। दुर्घटना के फ़ौरन बाद स्थानीय निवासियों और कई सामाजिक संगठनों ने सक्रियता दिखाते हुए राहत कार्य शुरू किया और प्रशासन का साथ दिया। इस दौरान वहां राहत कार्य करने वाले स्थानीय नागरिकों को किन परेशानियों का सामना करना पड़ा और उन्होंने किस तरह से पूरी स्थिति को नियंत्रण करने में भूमिका निभाई, ये जानने के छात्र विमर्श ने वहां राहत कार्य करने वाले एडवोकेट मुमताज़ से बात की। मुमताज़ ने छात्र विमर्श को बताया कि अब ज़्यादातर लोग, जो घायल थे, वे अपने-अपने स्थानों पर लौट गए हैं, जिनमें अधिकतर पश्चिम बंगाल से थे। उन्हें ममता सरकार ने बहुत सी एम्बुलेंसों का इंतज़ाम करते हुए राज्य बुलवा लिया है।

बता दें कि मुमताज़ बालासोर के रहने वाले हैं और दुर्घटना की ख़बर मिलते ही वे अपने कुछ साथियों के साथ दुर्घटना स्थल पर पहुंच गए। मुमताज़ बताते हैं कि जब वे राहत कार्य के लिए वहां पहुंचे तो सबसे पहली स्थिति जो राहत कार्य करने वालों के सामने थी, वह ये थी कि मृतकों को उनके परिजनों तक पहुंचाना, दुसरी कि जो गम्भीर रूप से घायल हैं उनको समय रहते अस्पताल पहुंचाना। ये सब बहुत चुनौतीपूर्ण था। मुमताज़ के अनुसार उनके साथियों ने पूरे राहत कार्य को बिल्कुल सुप्रबंधित रखा। राहत कार्य करने वालों में आस-पास के कई सामाजिक संगठन भी मौजूद थे। उन्होंने कामों को आपस में बांट लिया, जैसे कुछ ने सिर्फ़ शवों को निकालने और उनके परिजनों तक पहुंचाने का काम किया तो कुछ लोगों ने घायलों को आस-पास के अस्पतालों में पहुंचाने का काम किया और कुछ लोगों ने सिर्फ़ आवश्यक वस्तुओं जैसे खाना, पानी व प्राथमिक चिकित्सा आदि को समय-समय पर लोगों तक पहुंचाया।

मुमताज़ का कहना है कि कुछ शव जो सड़ने लगे थे उन्हें भुवनेश्वर भेज दिया गया था इसके बावजूद भी परिजनों को शव ढूंढने में परेशानियों का सामना करना पड़ा यहां तक कि कई लोग अब तक शव ढूंढ रहे हैं। वे आगे बताते हैं कि दुर्घटना स्थल से लगभग 15-20 किलोमीटर दूर बालासोर ज़िला अस्पताल था। ज़्यादातर शवों और घायलों को उसी अस्पताल में भर्ती किया गया और उसी से कुछ दूरी पर स्थित सोरव अस्पताल और बहानगा अस्पताल में भी कुछ शवों को ले जाया गया, उनमें जिनकी हालत ज़्यादा गंभीर थी उन्हें कटक भेज दिया गया था। 

मुमताज़ कहते हैं कि मृतकों की जो तादाद सरकार बता रही है, वह बिल्कुल विपरीत है। ग्राउंड पर ये आंकड़े तक़रीबन एक हज़ार के क़रीब पहुंचते दिखाई दे रहे हैं। इस दौरान एक आश्चर्यजनक तथ्य यह भी रहा कि पूरी स्थिति पर नियंत्रण पाने में स्थानीय लोगों ने कंधे से कंधा मिलाकर सरकार व प्रशासन का साथ दिया। दुर्घटना के फ़ौरन बाद स्थानीय निवासियों द्वारा तक़रीबन 900 युनिट्स ख़ून जमा करा दिया गया जो कि एक बड़ा आंकड़ा है और इससे लोगों के इलाज में काफ़ी सहायता मिली।

अंत में मुमताज़ कहते हैं कि इस पूरे हादसे के दौरान बहुत कुछ अनुभव हुआ। इंसान की ज़िंदगी और मौत को बहुत क़रीब से महसूस करने का मौक़ा मिला। नज़रों के सामने कई लोगों ने जान गंवाई तो कईयों को नई ज़िंदगी मिली। बस प्रार्थना यही है कि ऊपर वाला हम सबको इस तरह के हादसों का शिकार होने से बचाए।

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