ब्यानबाजी से ईतर सभी अपनी जिम्मेदारी निभाएं: तभी बदलेगी बिहार में शिक्षा की तस्वीर

0
511

माननीय शिक्षा मंत्री बिहार सरकार के स्टेटमेंट से हम सब अक्सर आहत हो जाते हैं कभी उनके वर्ग संचालन और आउटपुट देने के औचित्य पर सवाल खड़े होते हैं तो कभी कक्षा में खड़े होकर अध्यापन के ब्यान पर ! नि :संदेह माननीय शिक्षा मंत्री जी को शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे परंतु सिर्फ ब्यान दे देने भर से यह कदापि संभव नहीं है! निश्चय ही उनके ब्यान में कुछ न कुछ सच्चाई तो है, आखिरकार वे हमारे बीच से ही उठकर आज उस सम्मानित पद पर आसीन हुए हैं इसलिए उन्हें जमीनी हकीकत तो पता है ही, तो फिर ठोस पहल करने में हिचक किस बात की? माननीय शिक्षा मंत्री प्रो०चन्द्रशेखर सर को यह भी पता होगा कि आखिर क्या वजह है कि प्राथमिक विद्यालयों से लेकर विश्वविद्यालय स्तर पर नियमित कक्षा संचालन क्यों नहीं हो रहा है?
यह कौन नहीं जानता है कि आज भी शिक्षकों से गैर शैक्षणिक कार्य लिए जा रहे हैं, शिक्षकों की कमी, विभागीय अधिकारियों की लापरवाही सरकारी स्कूलों के प्रति आमजनों की उदासीनता जैसे कई मुद्दे जस के तस बने हुए हैं! प्रारंभिक विद्यालयों में तो कुछ हद तक रूटीन के मुताबिक कक्षाओं का संचालन हो भी जाता है परन्तु कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में क्या हो रहा है यह किसी से छुपा हुआ नहीं है!कुछ कालेज और यूनिवर्सिटी को छोड़ दें तो अधिकांशतः महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में सिर्फ एडमिशन, फार्म भरने और परीक्षा आयोजित करने के अलावा शायद ही कभी वर्ग संचालन होता हो! यही कारण है कि हमारे बच्चों में कैम्पस की कोई अवधारणा है ही नहीं!
हम शिक्षकों को भी आत्मविश्लेषण की आवश्यकता है कब तक हम सिर्फ सरकार को कोसते रहेंगे? क्या यह सच नहीं है कि हमारे अधिकांशतः विद्यालयों में रूटिन के मुताबिक कक्षाएं संचालित नहीं होती, विद्यालय की गतिविधियों से हमारा लगाव उस तरह का नहीं होता जैसा कि होना चाहिए! आरोप प्रत्यारोप से ईतर आवश्यकता है कि इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सजगता के साथ गहन चिंतन कर त्वरित कार्यवाही किया जाए,अन्यथा सरकारें आएंगी, सरकारें जाएंगी परंतु मुद्दे यथावत रहेंगे वास्तविकता तो यह है कि किसी भी राजनीतिक दलों की मंशा यह नहीं है कि शिक्षा व्यवस्था में व्यापक बदलाव हो और आमजन के बच्चे शिक्षित हों, महज डिग्रियाँ जमा कर लेना शिक्षित हो जाने की दलील नहीं है यह हमें याद रखनी चाहिए!
कक्षा में बैठे बच्चे जब हमारा मूल्यांकन कर सकते हैं तो भला हम शिक्षक सरकारों की नीतियों का विश्लेषण क्यों नहीं कर सकते!

✍️ मंजर आलम

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here