चे ग्वेरा के बहाने सलाहुद्दीन अय्यूबी की याद

जो काम आधुनिक युग में चे ग्वेरा ने अमेरिकी साम्राज्यवाद को चुनौती देकर किया था, उससे बड़ा कारनामा सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी क़रीब आठ सदी पहले ज़बरदस्त ढंग से कर चुके थे, जिसकी कसक सदियों तक यूरोपीय देशों को रही।

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चे ग्वेरा के बहाने सलाहुद्दीन अय्यूबी की याद

इस्लाम हुसैन

इस फ़ोटो में चे ग्वेरा एक मज़ार पर खड़े दिखाई दे रहे हैं। अगर मैं इस फ़ोटो का परिचय न देकर फ़ोटो पोस्ट करूं तो दोस्त इसकी पृष्ठभूमि नहीं जान पाएंगे। इस फ़ोटो में चे ग्वेरा दमिश्क में सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी की मज़ार पर दिख रहे हैं। यह तब की फ़ोटो है जब वह क्यूबा की क्रांति के बाद वहां की सरकार में ज़िम्मेदार मंत्री थे। (इसकी फ़िल्म भी इंटरनेट पर मौजूद है।)

बहुत दिनों से मैं यह पोस्ट करने के बारे में सोच रहा था। आज चे ग्वेरा के जन्मदिन के बहाने यह पोस्ट करने का मन बना लिया। मेरे बहुत से दोस्त और मैं ख़ुद चे ग्वेरा को अपना हीरो मानता हूं, लेकिन मेरे लिए यह और भी बड़ी बात है कि मेरे एक और हीरो सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी को, चे ग्वेरा ने अपना हीरो माना था, जिसे मेरे ज़्यादातर दोस्त न जानते हैं और जानना चाहते हैं। इसीलिए अमेरिकी साम्राज्यवाद को कड़ी चुनौती देने वाले चे ग्वेरा के जन्म दिन पर आज चे ग्वेरा के हीरो सलाहुद्दीन अय्यूबी को भी याद करना ज़रूरी है।

जैसे बीसवीं सदी में चे ग्वेरा अमेरिकी साम्राज्यवाद के विरोध के प्रतीक थे, वैसे ही सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी 12वीं सदी में यूरोपीय साम्राज्यवाद के सफल प्रतिरोध के प्रतीक थे। जो काम आधुनिक युग में चे ग्वेरा ने अमेरिकी साम्राज्यवाद को चुनौती देकर किया था, उससे बड़ा कारनामा सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी क़रीब आठ सदी पहले ज़बरदस्त ढंग से कर चुके थे, जिसकी कसक सदियों तक यूरोपीय देशों को रही।

चे ग्वेरा सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी की मज़ार पर क्यों गए? इस पर चे ग्वेरा के प्रशंसकों ने न तो ज़्यादा तवज्जोह दी और न ही इस पर कुछ लिखा। यह उनकी समस्या है।

यहां यह बताना ज़रूरी है कि इस्लाम से पहले सदियों तक अरब की जनता (दूसरी तरह से, इसे इस्लाम से जोड़ते हुए इस्लामिक राष्ट्रवाद या मुसलमानों की चेतना के रूप में) यूरोपीय और फ़ारसी (प्रतीकात्मक रूप से रोमन साम्राज्य और फ़ारस या ईरानी साम्राज्य ) शक्तियों से पीड़ित रही थी। दोनों विश्व शक्तियों का रण क्षेत्र अरब का क्षेत्र ही रहा था।

अरब के पूर्व में फ़ारस या ईरानी साम्राज्य और पश्चिम-उत्तर में रोमन, दोनों शक्तियां अपने-अपने देशों से निकल कर अरब प्रायद्वीप में लड़ती, मरती और लूटती थीं। यही उस दौर में होता था। इसमें ज़्यादातर अरब लुटते-पिटते रहते थे। लेकिन छठी सदी में इस्लाम के बाद स्थिति बदली और यूरोपीय और फ़ारसी साम्राज्यों के ढहने से उनका दबदबा ख़त्म हुआ।

सन् 637 में जब यरुशलम में इस्लामी शक्ति के सामने रोमन साम्राज्य ख़त्म हुआ तब से यूरोपीय देशों की ईसाई हुकूमतों के लिए यरुशलम पर फिर क़ब्ज़ा करना सपना हो गया। धर्म सत्ता के बहाने संसाधनों पर क़ब्ज़े की इसी मुहिम को पूरा करने के लिए ग्यारहवीं सदी में यूरोपीय मुल्कों ने संयुक्त रूप से क्रूसेड/धर्म युद्ध शुरू किया और यरुशलम पर इस्लामी शासन के 462 साल बाद 1099 में यूरोपीय मुल्कों की संयुक्त फ़ौज ने सल्जूक़ फ़ौज से यरुशलम को जीत लिया।

यह इतिहास में दर्ज है कि यरुशलम पर क़ब्ज़े के बाद क्रूसेडर्स ने महिलाओं, बच्चों और बूढ़ों सहित पूरी 5 लाख मुस्लिम आबादी का बेरहमी से क़त्ल किया था और यरुशलम की गलियों में बहने वाले ख़ून में यूरोपीय फ़ौज के घोड़ों के खुर डूब गए थे।

यरुशलम पर यूरोपीय क़ब्ज़े के दौर में कुर्दिस्तान में 1137 में सलाहुद्दीन अय्यूबी पैदा हुए। उन्होंने अपनी ज़िंदगी में यूरोपीय साम्राज्यवाद का दौर देखा और उसे परास्त करने का संकल्प लिया और उसके लिए कोशिशें कीं। आख़िरकार उन्हें 1187 में परास्त कर अरब से बेदख़ल कर दिया।

सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी ने 2 अक्टूबर 1187 को यरुशलम जीतने से पहले यूरोप के आधा दर्जन से ज़्यादा देशों की डेढ़ लाख से ज़्यादा संयुक्त फ़ौज को सिर्फ़ 30 हज़ार की सेना के साथ हत्तीन की जंग में न केवल परास्त किया बल्कि फ़ौज का नेतृत्व कर रहे यूरोपीय देशों के शासकों/कमाण्डरों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया। वे सुल्तान के क़ैदियों की तरह महीनों तक रहे। यह बताना भी ज़रूरी है कि यरुशलम जीतने के बाद शहर में एक बूंद भी ख़ून नहीं बहाया गया और पूरी ईसाई आबादी को जान-माल की ज़मानत देकर यरुशलम से बाहर किया। यरुशलम की हार से यूरोपीय मुल्कों में मातम मच गया। हारने के सदमे से तत्कालीन पोप की मौत हो गई। तब इसी क्रूसेड में इंग्लैंड के रिचर्ड के नेतृत्व में यूरोपीय देशों की फ़ौजों ने यरुशलम को वापस लेने की मुहिम में बहुत कोशिशें कीं लेकिन कामयाब नहीं हो सके। बाद में सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी की पहल पर एक शांति समझौता हुआ जिसमें यरुशलम में यूरोप के लोगों को धार्मिक यात्रा की अनुमति दी गई। यह माना जाता है कि शान्ति का यह समझौता तीनों सभ्यताओं में इस तरह का पहला समझौता था। आज के संयुक्त राष्ट्र के दौर में ऐसे समझौते होते रहते हैं, लेकिन सात-आठ सदी पहले ऐसा समझौता शांति की दिशा में बहुत बड़ा क्रांतिकारी क़दम था।

चे ग्वेरा जैसे क्रांतिकारियों के लिए सुल्तान सलाहुद्दीन अय्यूबी यूं ही हीरो नहीं हुए थे। वह बहुत बड़े प्रतिरोध के प्रतीक थे और इसीलिए चे सुल्तान की मज़ार पर सैल्यूट करने पहुंचे थे।

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