पिछले छह दिनों से कानपुर के चमनगंज स्थित मुहम्मद ज़ौहर अली पार्क शाहीन बाग में तब्दील हो चुका है। यूं तो यह एक साधारण सा दिखने वाला पार्क था जिसे स्वतंत्रता की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मौलाना मुहम्मद अली ज़ौहर की याद में बनाया गया था। लेकिन एक सप्ताह से चल रहे नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में आंदोलन ने इसे एक क्रांतिकारी पार्क में तब्दील कर के रख दिया है। अब यहां पर आपको वह पहले की तरह लड़कों का झुंड सिगरेट का धुआं उड़ाते और हंसी मज़ाक करते नज़र नहीं आएगा बल्कि अब यही युवा आपको गंभीर मुद्रा में एनआरसी, सीएए पर बात करते और संविधान बचाने की चिंता करते हुए दिखाई देंगे। प्रतिदिन आपको पिछले दिन से दोगुनी भीड़ और चार गुना अधिक जोश उत्साह देखने को मिलेगा।
गेट से एंट्री करते ही मुझे आज दो लोग बात करते सुनाई दिए। जो कि अपने डॉक्यूमेंट्स को लेकर बहुत चिंतित थे। उन्हें यह नहीं पता था कि उन्हें नागिरकता साबित करने के लिए कौन कौन से कागज़ दिखाने पड़ेंगे और इसी के लिए वह जनाब जानकारी जुटाने की कोशिश कर रहे थे। तभी बगल में खड़े एक युवा ने तपाक से जवाब दिया ‘अरे चचा क्यूं परेशान होते हो, हम यह नौबत ही नहीं आने देंगे, इसीलिए तो यहां रोज़ आते हैं, हमारी मेहनत और हमारा आंदोलन बेकार नहीं जाएगा।‘ बेहद साधारण से रोज़गार के ज़रिए अपने घर को चलाने वाले उस युवक के मुंह से ऐसे आत्मविश्वास भरी बात सुनकर निसंदेह चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। कुछ दिनों पहले तक वह युवक उसी पार्क में देश दुनिया के मुद्दों से बेखबर गपशप में व्यस्त दिख जाता था लेकिन आज उसे इस कानून ने उसके अंदर संघर्ष करने और अपने संघर्ष के सफल होने की उम्मीद और नई दिशा थमा दी।
धरना स्थल पर पहुंचकर अभी हम बैठे इधर उधर नज़रें दौड़ा ही रहे थे कि भीड़ में से एक लड़की उठी और स्टेज पर जा पहुंची। एक मिनट के लिए मेरे दिमाग में विचार आया कि यह क्या बोलेगी लेकिन दिखने में साधारण सी उस लड़की ने जैसे ही माइक थामकर बोलना शुरु किया तो मेरा अनुमान एकदम गलत साबित हो गया। लगभग 10 हज़ार की भीड़ एकदम खामोश हो गई। और वह लड़की जिसने शायद ज़िंदगी में पहली बार माइक थामा था कहना शुरु किया, यह पुलिस जब लड़कियों का रेप होता है, उनका घर से बाहर निकलना मुश्किल होता है तब क्यों नहीं दिखाई देती? क्यों वह केवल सरकार का विरोध करने वाले लोगों को ही रोकने आती है? क्यों वह इंसाफ़ की मांग करने वालों पर ही लाठियां बरसाने आती हैं?’ पूरी भीड़ खामोश हो गई शायद किसी के पास उसके सवालों का जवाब नहीं था। फिर उसने खुद ही जवाब दिया, ‘क्योंकि पुलिस केवल सरकार का ऑर्डर फॉलो करती है और सरकार को लड़िकयों की सुरक्षा से अधिक चिंता उन लोगों से है जो संविधान बचाने की लड़ाई में उतरे हैं।’ पूरा पार्क तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। स्टेज से नीचे उतरने पर मैने उससे पूछा क्या उसने इससे पहले कभी भीड़ को संबोधित किया? जवाब मिला नहीं। मैंने पूछा, स्कूल या कॉलेज में कभी स्टेज पर परफार्म किया? जवाब मिला नहीं। वह एक साधारण सी लड़की थी और ऑर्किटेक्चर से बैचलर कर रही थी। लेकिन उसके शब्द, आत्मविश्वास और हौसले साधारण बिल्कुल नहीं थे।
उसके बाद फिर एक लड़की खड़ी हुई। उसने बोलना शुरु किया, “मैंने जब नागरिकता संशोधन कानून का विरोध और संसद से प्रस्ताव पास होते हुए देखा तो मैं बहुत उदास और निराश हो चुकी थी। मुझे लगा था कि अब पता नहीं इस देश का क्या होगा। हालांकि उस समय तक मुझे देश और दुनिया के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। फिर मैंने इस कानून की जानकारी जुटानी शुरु की और दुनिया की वर्तमान स्थिति को पढ़ना शुरु किया। तो मुझे पता चला कि हांगकांग के शांतिपूर्वक आंदोलन ने सरकार को घुटने टेकने पर मज़बूर कर दिया। फिर मैंने दूसरे आंदोलनों के बारे मे जानकारी हासिल की। और मैं इस नतीजे पर पहुंची कि आंदोलन की सफलता की ज़िम्मेदारी अवाम पर होती है।” उस लड़की से भी मेरा यही सवाल था कि क्या आपने कभी स्टेज पर बोला है? तो उसका जवाब था स्टेज पर बोलना तो दूर मैं न्यूज़ पेपर भी पहले नहीं पढ़ती थी।
यह केवल चंद उदाहरण हैं ऐसी ढेरों मिसालें, मज़बूत हौसले, इरादे और आत्मविश्वास आपको यहां देखने को मिल जाएंगे। इन्हें देखकर लगता है कि यही हौसला रहा होगा उस समय जब देश ने स्वंतत्रता आंदोलन की लड़ाई लड़ी होगी। तभी ब्रिटिश हुकुमत देश छोड़ने पर मजबूर हो गई थी, और यह उम्मीद भी जगती है कि एक ना एक दिन यह आंदोलन ज़रुर सफल होगा क्योंकि देश की जनता जाग उठी है। वह मुस्लिम महिलाएं जाग उठी हैं जिन्होंने कभी किसी आंदोलन का नेतृत्व नहीं किया। और उनके हौसलों को अब सरकार पस्त नहीं कर सकती। कभी नहीं कर सकती।