नई दिल्ली : कश्मीर घाटी से प्रतिबंध हटाने और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता की बहाली के लिए 5 अक्टूबर को गांधी शान्ति प्रतिष्ठान में एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया । इस अधिवेशन में वक्ताओं ने NRC के मुद्दे पर गृह मंत्री के सांप्रदायिक बयान द्वारा भय पैदा किए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई ।
सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि नागरिकता हमारा मौलिक अधिकार है, चुनावी मुद्दे में घसीट कर इसकी महत्ता को कम नहीं कर सकते हैं।
आगे उन्होंने कहा कि असम में 19 लाख से अधिक लोगों को अंतिम एनआरसी सूची से बाहर किया गया है। इन मामलों के समाधान के लिए इस बात पर जोर दिया गया कि किसी भी व्यक्ति को सरकार की लापरवाही या गलतियों के परिणामस्वरूप स्टेटलेस नहीं किया जाना चाहिए।
आगे उन्होंने कहा कि असम में 19 लाख से अधिक लोगों को अंतिम एनआरसी सूची से बाहर किया गया है। इन मामलों के समाधान के लिए इस बात पर जोर दिया गया कि किसी भी व्यक्ति को सरकार की लापरवाही या गलतियों के परिणामस्वरूप स्टेटलेस नहीं किया जाना चाहिए।
सम्मेलन में वक्ताओं ने कहा कि नागरिकता हमारा मौलिक अधिकार है, चुनावी मुद्दे में घसीट कर इसकी महत्ता को कम नहीं कर सकते हैं।
आगे उन्होंने कहा कि असम में 19 लाख से अधिक लोगों को अंतिम एनआरसी सूची से बाहर किया गया है। इन मामलों के समाधान के लिए इस बात पर जोर दिया गया कि किसी भी व्यक्ति को सरकार की लापरवाही या गलतियों के परिणामस्वरूप स्टेटलेस नहीं किया जाना चाहिए।
स्वतंत्रता और सम्मान जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर आधारित राष्ट्रीय सम्मेलन एसआईओ, UAH, एपीसीआर, बिरादरी आंदोलन, ICLU, PVCHR और Samvidhan Bachao Sangharsh Samiti द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था।
पहले सत्र में, “स्टेटलेस -एन” नामक शीर्षक से असम में NRC की प्रक्रिया पर आधारित एक डाक्यूमेंट्री का प्रदर्शन किया गया। डॉक्युमेंट्री उन लोगों पर केंद्रित थी, जिन्होंने एनआरसी के समक्ष नागरिकता के साथ साथ पूरी कानूनी प्रक्रिया की समस्याओं और दोषों के बारे में भी दावा दायर किया था । इसमें बताया गया था कि एनआरसी को अपडेट करने की पूरी प्रक्रिया को किस तरह एक आम नौकरशाहों के हाथों में सौंप दिया गया, और जिसपर कई अनुचित और दोषपूर्ण प्रक्रियाओं की शिकायतों से ग्रस्त था।
ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ है कि किसी राज्य ने अपने नौकरशाहों के लापरवाही के कारण 1.9 मिलियन लोगों के अधिकारों को एक सरल नौकरशाही प्रक्रिया के माध्यम से खतरे में डाल दिया है।
इतिहास में इस दिन को स्वतंत्र भारत के नागरिक अधिकारों के लिए सबसे काले दिन के रूप में याद किया जाएगा।
प्रथम सत्र को असम के एडवोकेट एचआर चौधरी, नदीम खान (यूनाइटेड अगेंस्ट हेट), लबीद शाफी (अध्यक्ष, एसआईओ) और अन्य ने संबोधित किया।
दूसरे सत्र में, मोदी सरकार (बजट सत्र 2019-20) के दूसरे संसद सत्र के पहले “पार्लियामेंट वॉच” शीर्षक पर आधारित एक रिपोर्ट जारी की गई। जिसमें संसद के अंतिम सत्र में पारित किए गए सभी विधेयकों के साथ ही शिक्षा, मौलिक अधिकारों, राष्ट्रीय सुरक्षा और अर्थव्यवस्था से संबंधित महत्वपूर्ण बिलों पर आधरित विश्लेषण शामिल था।
इन विधेयकों पर आधारित रिपोर्ट संसद सदस्य डॉ. मनोज झा ने जारी की। इस सत्र को जेएनयू की डॉ. ग़ज़ाला जमील, क्विल फाउंडेशन के सुहैल केके, अब्दुल्लाह अज़्ज़ाम (पूर्व अध्यक्ष, एएमयू छात्र
संघ) और वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया ने सम्बोधित किया।
समापन सत्र में शारिक़ अंसर (फ्रटर्निटी मूवमेंट), अनस तनवीर (आईसीएलयू) तथा सय्यद अज़हरुद्दीन (जनरल सेक्रेटरी,एसआईओ) आदि के साथ विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी संबोधित किया।
राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा कश्मीर में जारी प्रतिबंध को हटाने का आह्वान, गृहमंत्री के एनआरसी पर दिए बयान पर जताई गहरी आपत्ति
स्वतंत्रता और सम्मान जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर आधारित राष्ट्रीय सम्मेलन एसआईओ, UAH, एपीसीआर, बिरादरी आंदोलन, ICLU, PVCHR और Samvidhan Bachao Sangharsh Samiti द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था। पहले सत्र में, "स्टेटलेस -एन" नामक शीर्षक से असम में NRC की प्रक्रिया पर आधारित एक डाक्यूमेंट्री का प्रदर्शन किया गया। डॉक्युमेंट्री उन लोगों पर केंद्रित थी, जिन्होंने एनआरसी के समक्ष नागरिकता के साथ साथ पूरी कानूनी प्रक्रिया की समस्याओं और दोषों के बारे में भी दावा दायर किया था ।