वेबिनार : नई शिक्षा नीति गरीब, दलित, आदिवासी, ओबीसी व अल्पसंख्यक विरोधी है

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नई दिल्ली, 8 अक्तूबर | ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ विषय पर मंगलवार को आयोजित एक वेबिनर में विचार व्यक्त करते हुए बुद्धजीवियों ने कहा कि नई शिक्षा नीति गरीब, दलित, आदिवासी, ओबीसी व अल्पसंख्यक विरोधी है. देश भर के विभिन्न वक्ताओं और शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत लोगों ने इस वेबिनार में हिस्सा लिया.

ये वेबिनार जमाअत इस्लामी हिन्द के केंद्रीय शिक्षा बोर्ड द्वारा मंगलवार को “राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020” विषय पर आयोजित किया गया जिसमें विभिन्न विद्वानों ने अपनी बातें साझा कीं.

इस वेबिनार में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का अवलोकन एवं सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों की नई शिक्षा नीति में भागीदारी को लेकर विस्तारपूर्वक चर्चा की गई. वेबिनार में विद्वान वक्ताओं  के अलावा देश-भर के विभिन्न समाजिक कार्यकर्ताओं व छात्रों ने हिस्सा लिया.

वेबिनार में अखिल भारतीय कैथोलिक संघ के पूर्व राष्ट्रीय अध्य्क्ष व लेखक एवं सामाजिक कार्यकर्ता जॉन दयाल, राइट टू एजुकेशन फोरम के राष्ट्रीय संयोजक अम्बरीष राय, हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जी नगराजु, अम्बेडक्राइट एवं लेखक श्री गोपीनाथ आदि शामिल थे. वेबिनार की अध्यक्षता केंद्रीय शिक्षा बोर्ड, जमाअत इस्लामी हिन्द के चेयरमैन नुसरत अली द्वारा की गई.

जॉन दयाल ने भारत सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के ड्राफ्ट को लॉकडाउन के दौरान थोपा गया एक बोझ बताया. उन्होंने कहा, “सरकार को अपना एजेंडा स्पष्ट करना चाहिए. यह नीति दलित, आदिवासी, गरीब, पिछड़े वर्ग एवं अल्पसंख्यक विरोधी है. इस नीति में ना ही कोई रूपरेखा है और ना शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए धन जमा करने का कोई प्रस्ताव है. नई शिक्षा नीति भारत की संघीय-व्यवस्था को खत्म करती है, निर्णय लेने की क्षमता को नियंत्रित करती है और यह ड्राफ्ट सीमित चर्चा के साथ बहुत जल्दबाज़ी में बनाया हुआ महसूस होता है.”

जॉन दयाल ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में सामाजिक सामंजस्य बौद्धिक और स्वयंसेवी गतिविधियों को बढ़ावा देने और स्कूल के समुचित इस्तेमाल के लिए गैर-शिक्षण /स्कूली अवधि के दौरान स्कूलों का “समाजिक चेतना केंद्र” के रूप में उपयोग करने की सिफारिश को उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) की विचारधारा को समर्पित एक कार्यक्रम बताया है जहां आरएसएस अपनी गतिविधियां करने के लिए स्वतंत्र होगा.”

जॉन दयाल इस नीति को सविंधान के लिए हानिकारक बताते हुए एअल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारों और नई शिक्षा नीति में इस वर्ग के साथ हुई अनदेखी, धर्मनिरपेक्षता, मनुवादी नीति, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की अनदेखी, उच्च शिक्षा से दूरी एवं मौलिक अधिकारों से जनता को वंचित किए जाने का एक मसौदा बताते हैं.

वेबिनार को सम्बोधित करते हुए अम्बरीष राय ने पॉलिसी में आरटीई की अनदेखी पर चर्चा करते हुए कहा, “नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में आरटीई को पूरी तरह नज़रंदाज़ किया गया है. शिक्षा एक कानूनी हक है. इस नीति को बनाते वक्त ये ध्यान रखा जाना चाहिए था कि इसे कैसे ज़मीन पर अमल में लाना चाहिए? लेकिन पॉलिसी में ऐसा नही किया गया है. वह इस बात को भी दोहराते हैं कि स्कूली शिक्षा और उच्च शिक्षा से सम्बंधित जो वायदे पॉलिसी में किए गए हैं उन्हें लागू करने के लिए कोई रूपरेखा तैयार नही की गयी है एवं नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति अंतर्विरोधों से भरी हुई एक पॉलिसी है.”

अम्बरीष राय ने कहा कि, “ये पॉलिसी सार्वभौमिकता की बात करती है लेकिन इसे कैसे लागू करेंगे इस विषय पर कोई खाका प्रस्तुत नही करती है.”

उन्होंने कस्तूरीरंगन द्वारा पहले पेश किए गए ड्राफ्ट का ज़िक्र करते हुए कहा कि, “उसमें आरटीई के विस्तार की बात कही गयी थी जिसमें प्राइमरी और सेकंडरी शिक्षा को जोड़ने का प्रवाधान था लेकिन केबिनेट द्वारा पास की गई इस पॉलिसी से इसे हटा दिया गया है.”

उनका कहना था कि प्रारंभिक शिक्षा पर बहुत बात की गई है और वह इसे अच्छा कदम भी मानते हैं लेकिन वह ये भी बताते हैं कि प्रारंभिक शिक्षा व्यवस्था के लिए पांच वर्ष का बुनियादी चरण- में ग्रेड-1 ग्रेड-2 को भी 3 से 6 के साथ शामिल कर दिया गया है.

अम्बरीष राय कहते हैं, इससे आरटीई का ढांचा टूट जाता है क्योंकि आरटीई के तहत ये प्रवाधान था कि 1 से 8 यानी 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के बच्चों की शिक्षा को कानूनी दायरे में लाया जाएगा लेकिन  ग्रेड -1 ग्रेड-2 को निकाल दिए जाने और बुनियादी चरण में डाले जाने से ये हिस्सा कमज़ोर होगा. इसके लिए सरकार ने पॉलिसी में  अतिरिक्त व्यवस्था का ज़िक्र तक ना करते हुए इसे आंगनबाड़ी के भरोसे डाल दिया है. इसके ज़रिए ग्रेड-1 ग्रेड-2 को स्कूल और टीचर की व्यवस्था से वंचित कर दिया गया जिससे ये हिस्सा कमज़ोर हो जाता है. आंगनबाड़ी के ज़रिए बुनियादी शिक्षा को चला पाना कैसे मुमकिन है जबकि वो इसमें सक्षम ही नही है.

उन्होंने सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों (SEDGs) के सम्बंध में चर्चा करते हुए कहा कि इन समूहों के 75 प्रतिशत से ज़्यादा बच्चों को पॉलिसी एक ही बास्केट में डाल देती है जबकि सामाजिक रूप से दबे-कुचले, दलित, अल्पसंख्यक आदि समूहों की अलग-अलग समस्याएं हैं.

अम्बरीष राय का कहना है कि, “पॉलिसी का ये हिस्सा सार्वभौमिकता और शिक्षा में बराबरी, सभी तक समान शिक्षा पहुंचाने की सोच के विरोध में खड़ा दिखाई देता है. पॉलिसी गैरबराबरी को बढ़ाने की व्यवस्था कर रही है जबकि समानता सबसे आवश्यक बिंदु है. यदि समानता नही होगी तो गुणवत्ता भी नही होगी. पॉलिसी राष्ट्रवादी भावना को विकसित करने की बात करती है और हम संवैधानिक सोच को बढ़ाने की बात करते हैं, हम धर्मनिरपेक्षता की बात करते हैं, संघीय ढांचे को बनाए रखने की बात करते हैं और यही सबसे ज़्यादा आवश्यक है.”

उन्होंने पॉलिसी में भाषा के हिस्से पर बोलते हुए कहा कि, “पॉलिसी में उर्दू का कहीं ज़िक्र नही है ना ही दूसरे धार्मिक समूहों के शिक्षा में योगदान का कोई जिक्र है. ये समाजिक भेदभाव को बढ़ाता है.”

वेबिनार के समापन पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के चैयरमेन नुसरत अली ने वेबिनार के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारी इस चर्चा का उद्देश्य समाजिक न्याय और शैक्षिक समानता हासिल करना है.

उन्होंने कहा कि, “हमें ये समझना चाहिए कि सरकार चाहती क्या है? हर पॉलिसी का एक एजेंडा होता है जिसे समझना हमारे लिए बहुत आवश्यक है. हमें सरकार द्वारा परोसी जा रही शिक्षा पॉलिसी को परखना चाहिए और जमाअत इस्लामी हिन्द द्वारा संचालित शिक्षा बोर्ड यही काम कर रहा है.”

उन्होंने नई शिक्षा नीति पर बात करते हुए कहा कि, “यह देश की संघीय व्यवस्था को तोड़ने का एक प्रयास है क्योंकि नीति के प्रवधानों द्वारा निर्णय शक्ति को केन्द्रित करने का प्रयास किया जा रहा है.”

उन्होंने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिए जाने की ओर इशारा करते हुए इसे समानता विरोधी बताया और आरटीई (RTE) को पॉलिसी से नज़रंदाज़ किए पर चिंता जताई और इसके लिए एकजुट होकर प्रयास करने की बात कही.

अंत में उन्होंने नई शिक्षा नीति को सदन में बिना चर्चा पास किए जाने को अलोकतांत्रिक बताया और इस पर पुनः विचार करने की बात भी कही.

अन्य वक्ताओं ने भी वेबिनार में अपने विचार प्रस्तुत किए और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार साझा किए.

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