इसराईल का चुनाव: ज़ायोनी लोकतंत्र बेनक़ाब

इसराईल के इतिहास में पहली बार दो महीने से भी कम समय में, नई सरकार ध्वस्त हो गई, लेकिन फिर भी शासन की विफलता के बाद, नेतन्याहू ने घोषणा की, कि हम पूरी सक्रियता से अभियान चलाएंगे जो हमारी जीत सुनिश्चित करे । हम जीतेंगे, हम जीतेंगे और जनता जीतेगी। इस घोषणा के बाद 6 महीने तक, इसराईल के लोगों ने, बल्कि पूरी दुनिया ने, एक बहुत ही शर्मनाक और घृणित चुनाव अभियान देखा, जिसने इसराईल के राजनेताओं के नैतिक दिवालियापन को उजागर कर दिया। याहू में विश्वासघात की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए 5 साल तक शासन में मदद करने वाले अपने पूर्व रक्षा मंत्री, इवगुडवर लेबरमैन पर मतदाताओं को धोखा देने और वादों को धता बताने का आरोप लगाया ।

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अप्रैल 2019 के मध्य में इसराईल के संसदीय चुनाव की प्रक्रिया पूरी हुई। उसमें इसराईल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की पार्टी लिकुड ने अपने प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त बनायी। लिकुड ने हाउस ऑफ कॉमन्स में 120 सीटों में से 35 सीटें जीतीं, और संभावनाएं स्पष्ट थीं कि वह दक्षिणपंथी धार्मिक दलों के साथ संसद में बहुमत साबित करेगी। इस प्रकार, यह संभव था कि उन्हें अगली मिश्रित सरकार में प्रधान मंत्री का पद मिल जाता। अगर ऐसा पांच महीने पहले हुआ होता, तो वह पांचवीं बार इसराईल के प्रधानमंत्री बन कर सबसे लम्बे समय तक शासन करने वाले नेता बन जाते। लेकिन वह सपना साकार नहीं हो सका। यह भी हो सकता है कि वर्तमान चुनाव परिणामों के बाद, वे फिर से वंचित रह जाएं और सरकार बनाने में असफल हो जाएं। विपक्षी नेता बेनी गैंट्ज को प्रधानमंत्री बनने का मौका मिल सकता है क्योंकि उनकी पार्टी को एक सीट की बढ़त प्राप्त है। इस अनिश्चित स्थिति में कुछ भी हो सकता है जहां अवसरवादी दल किंग मेकर बनी हुई हैं। नेतन्याहू अप्रैल में भ्रष्टाचार के तीन आरोपों में घिरे होने के बावजूद प्रधानमंत्री के लिए नामांकन पाने में सफल हो गये। 28 दिनों में नई सरकार का गठन कर नेतन्याहू को अपना बहुमत साबित करना था। वे विफल रहे, तो वे अतिरिक्त दो सप्ताह तक हेरफेर की रणनीति का उपयोग करते रहे। वे अपने सभी प्रयासों में विफल रहे, तो संसद भंग करवादी। इस प्रकार, इसराईल की नई सरकार की कली बिना खिले मुरझा गयी और 17 सितंबर को फिर से चुनाव की घोषणा हो गई। यदि याहू ने संसद को भंग नहीं किया होता, तो राष्ट्रपति विपक्ष को सरकार बनाने का अवसर देते, लेकिन सत्ता और की लालसा अतिआत्मविश्वास ने नेतन्याहू से यह अविवेकपूर्ण निर्णय करवाया, जिससे दुनिया में बदनामी हुई और संसाधनों की बर्बादी का कोई लाभ नहीं हुआ।

इसराईल के इतिहास में पहली बार दो महीने से भी कम समय में, नई सरकार ध्वस्त हो गई, लेकिन फिर भी शासन की विफलता के बाद, नेतन्याहू ने घोषणा की, कि हम पूरी सक्रियता से अभियान चलाएंगे जो हमारी जीत सुनिश्चित करे । हम जीतेंगे, हम जीतेंगे और जनता जीतेगी। इस घोषणा के बाद 6 महीने तक, इसराईल के लोगों ने, बल्कि पूरी दुनिया ने, एक बहुत ही शर्मनाक और घृणित चुनाव अभियान देखा, जिसने इसराईल के राजनेताओं के नैतिक दिवालियापन को उजागर कर दिया। याहू में विश्वासघात की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए 5 साल तक शासन में मदद करने वाले अपने पूर्व रक्षा मंत्री, इवगुडवर लेबरमैन पर मतदाताओं को धोखा देने और वादों को धता बताने का आरोप लगाया ।

इसराईल के राजनीतिक दलों को चाहिए था इन चुनाव परिणामों से सबक सीखकर अस्थिरता को खत्म करने के लिए एक दूसरे के साथ बनाते, लेकिन सत्ता के लिए लालच बढ़ गया और पार्टियों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ गई, 32 दलों ने इस छोटे से देश में चुनाव के लिए पंजीकरण कराया। इससे खिन्न होकर, इसराईली चुनाव आयोग ने दो दिन पहले पार्टियों का पंजीकरण बंद कर दिया। चुनाव परिणामों से  लापरवाह दक्षिणपंथी धार्मिक अतिवादी दल, आपस मेे सरफुटव्वल करते रहे और राजनीतिक गठबंधन बनाने में असफल रहे। इस अवसर पर, यूनाइटेड राइट-विंग फ्रंट और ओटोजिमा जुडिज्म ने लिकुड पार्टी को चेतावनी दी कि गठबंधन के विघटन से धार्मिक पार्टियों के वोट बैंक पर असर पड़ सकता है, जिससे वामपंथी धर्मनिरपेक्ष नेता यायर लुबीड को फायदा होगा।

इस बार चुनाव प्रचार के दौरान कई उल्लेखनीय घटनाएं हुईं। उनमें पहला सांप्रदायिक दंगा था। इसराईल के भीतर, जहां यहूदियों को यूरोप, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका से लाकर बसाया गया था, वहीं कुछ लोगों को इथियोपिया से भी लाया गया था, जो कुल आबादी का सिर्फ 1.5 प्रतिशत हैं। उन लोगों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक माना जाता है। उनकी शैक्षिक पृष्ठभूमि के कारण उनमें बेरोजगारी बहुत अधिक है। जातिवादी सरकार उनका शोषण करती है और उन्हें मूल अधिकारों से भी वंचित रखती है, इसलिए वे  घुटन का जीवन जी रहे हैं। एक पुलिस अधिकारी ने उनमें से एक युवक की गोली मारकर हत्या कर दी, जिसने आग में घी डालने का काम किया। इस हत्या के बाद, दशकों से, नस्लीय भेदभाव का शिकार अश्वेत यहूदियों ने बड़ी संख्या में इसराईल सरकार के खिलाफ विरोध करना शुरू कर दिया, और बात घेराव तक पहुंच गई। विरोध प्रदर्शन में सैकड़ों लोगों को गिरफ्तार किया गया, कई पुलिसकर्मी घायल हुए और एंबुलेंस में भी आग लगा दी गई। यह नेतन्याहू के लिए अच्छा शगुन नहीं था। नेतन्याहू ने अपने चुनाव अभियान में, मोदी के एयर स्ट्राइक से प्रेरणा लेते हुए  पहले लेबनान की सीमा पर अतिरिक्त सैनिकों को भेजा, और बाद में बैरूत के दक्षिणी क्षेत्र में ड्रोन  गिराए, जिसे हिज़्बुल्लाह का गढ़ माना जाता है। उनमें से एक जमीन पर गिर गया लेकिन दूसरा मीडिया कार्यालय की छत पर गिर गया और वह बुरी तरह प्रभावित हुआ। जवाब में, हिज़्बुल्लाह ने उत्तरी इसराईल में इसराईली सैन्य अड्डे पर टैंक तोड़ने वाले मिसाइल दाग़ दिए। हिजबुल्लाह ने इसराईली टैंकों को नष्ट करने और अपने मिसाइल हमलों में इसराईली सैनिकों को मारने का दावा किया। इसराईल ने इस बात से इनकार किया कि हमले से कोई हताहत हुआ है, लेकिन हमलों की पुष्टि की।

अपनी खीज मिटाने के लिए, इसराईल ने लेबनान के दक्षिणी क्षेत्र पर बमबारी की और कई गोले दागे, लेकिन वहां चुनाव में उससे बालाकोट जैसी सफलता नहीं मिली। चुनाव अभियान के दौरान, याहू को एक झटका तब लगा, जब सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक ने अरब और फिलिस्तीनियों के खिलाफ घृणित सामग्री पोस्ट करने का आरोप लगाकर उनके फेसबुक पेज को ब्लॉक कर दिया। किसी देश के प्रमुख के फेसबुक पेज को निलंबित किया जाना बड़े शर्म की बात है। पूरी दुनिया को आश्चर्य हुआ कि एक यहूदी समझी जाने वाली कंपनी को अपने ही समुदाय के राजनीतिक नेता के खिलाफ यह कदम उठाने के लिए क्यों मजबूर होना पड़ा? इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि नेतन्याहू का चुनाव अभियान कितनी गिरी हुई थी कि कथित उदारवादी अमेरिकी समाज भी उसे पचा नहीं सका। फेसबुक पर अपने अनुयायियों को भेजे गए एक निजी संदेश में, याहू ने अरब नागरिकों और संसद सदस्य ऐमन औदा के खिलाफ लिखा था कि  अरब हमारे अस्तित्व को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। वे सरकार का हिस्सा बनकर ईरान के लिए परमाणु बम बनाने का मार्ग प्रशस्त करेंगे। हिंदू बहुमत में ऐसा ही भय पैदा करके, भाजपा भी चुनाव जीतती है।

पूर्व चीफ आफ स्टाफ बेनी गैंट्ज और उनका गठबंधन ब्ल्यू एंड वाइट के सामने नेतन्याहू फिर से वही अस्तित्व की लड़ाई लड़ते दिखाई पड़े । 10 वषों से चल रहा उनके वर्चस्व पर खतरे की तलवार लटकती दिखाई पड़ी। पूर्व रक्षा मंत्री एक बार फिर किंगमेकर बन गये। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, जब जायोनी राज्य के अच्छे दिन आए, तो यहूदी विभाजित हो गए। आजकल, मिस्र ने इसराईल के साथ गहरे संबंध बना रखे हैं। इसकी मदद से, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात भी इसराईल से पेंगें बढ़ा रहे हैं। डोनाल्ड ट्रम्प और नरेंद्र मोदी ने नेतन्याहू को अपना सबसे अच्छा दोस्त घोषित किया है, लेकिन इसराईल के बाद के चुनाव परिणामों ने साबित कर दिया है कि दुनिया में सबसे अस्थिर राजनीतिक व्यवस्था लोकतंत्र है और यहूदी सबसे कम राजनीतिक चेतना वाले लोग हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो कम से कम दूसरे चुनाव के बाद किसी एक पार्टी को न सही गठबंधन को तो स्पष्ट बहुमत मिल जाता और एक स्थिर सरकार की स्थापना हो जाती।

-डाॅ सलीम ख़ान

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