हमें मिलकर ही लड़ना होगी कोरोना से जंग, नहीं तो….?

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भोपाल में आज से 35 साल पहले अचानक एक विपत्ति आई। मिथाइल आइसोसाइनाइड गैस लीक हुई यूनियन कार्बाइड से 3 दिसंबर की रात और उसने शहर को कुछ ही घण्टों में कब्रिस्तान बना दिया। सब कुछ अचानक था इसलिए किसी को पता नहीं था कैसे बचें। किसी को लगा घर के अंदर ही रहें तो वे भी नहीं बचे और किसी को लगा कि बाहर भागें तो वे भी नहीं बचे। मुझे कई लोग जो उस दिन बच गए थे, ने बताया कि उन्होंने रुमाल या जो कपड़ा मिला उसे पानी मे भिगोकर मुंह और नाक पर लपेटा और खुली हवा की तरफ यूनियन कार्बाइड से दूर दौड़ लगा दी… जिससे वे बच गए। अगर ऐसा पहले पता होता तो गीले रुमाल का यह आसान सा नुस्खा सैकड़ो जानें बचा लेता।

इसी तरह अचानक एक वैश्विक समस्या कोरोना आ धमकी है। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा कि इसका ठोस समाधान आखिर क्या है? सब अपने अनुसार या किसी कामयाब मॉडल को अपनी हैसियत के अनुसार लागू कर रहे हैं। इस अचानक और अनोखी बीमारी से लड़ते हुए कई लोगों से कई ग़लतियां हो रही हैं जैसे WHO से हुई कि उसने 11 मार्च तक इसे पेनडेमिक घोषित नहीं किया जबकि यह कई देशों में पहुंच चुकी थी। फिर WHO ने कहा कि लॉक डाउन से ही इलाज हो जाएगा। फिर कुछ दिनों बाद कहा कि सिर्फ लॉक डाउन से नहीं होगा, टेस्ट बहुत सारे करने होंगे तब होगा। ब्रिटेन के पीएम बोरिस जॉनसन ने मज़ाक उड़ाते हुए कोरोनो के मरीज़ से हाथ मिलाकर दिखाया और उन्हें और प्रिंस चार्ल्स को कोरोना हो गया। महाशक्ति और सबसे ज्यादा संसाधनों वाले देश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे हल्का फुल्का फ्लू कहकर नज़र अंदाज़ कर दिया था और आज आप देखिए कि अमेरिका का क्या हाल हो गया है। इज़राइल के एक शहर में वहां के रब्बी द्वारा की गई धार्मिक सभा से वहाँ कोरोना फैल गया। ब्रिटेन के इस्कॉन मंदिर में फंसे 20 लोग कोरोना पॉज़िटिव पाए गए। मध्य प्रदेश में ही कोरोनो से लड़ रही टीम के बेहतरीन दिमागों वाले अफसरों से गलतियां हुईं और एक उच्चस्तरीय टीम पूरी ही कोरोनो से ग्रसित हो गई। ऐसी ग़लतियां बहुत लोगों से हो रही हैं। इसमें नेता शामिल हैं, सरकारें शामिल हैं, सेलेब्रिटीज़ शामिल हैं, संस्थाएं-अफसर शामिल हैं, धर्मगुरु शामिल हैं, मीडिया, पत्रकार, लेखक और चिकित्सकों से भी ग़लतियां हो रही हैं।

अब देखिए लापरवाही और अज्ञानता के चलते एक अमन और इंसानियत का पैगाम देने वाली तब्लीग़ जमात से कोरोनो का कई शहरों की मुस्लिम बस्तियों में प्रसार हो गया। यह लापरवाही और कमइल्मी के कारण हुआ लेकिन मीडिया ने इसे हिन्दू-मुस्लिम का मुद्दा बनाकर पेश किया और कोरोना से लड़ाई को एक घातक मोड़ दे दिया जो केवल और केवल नुक़सान ही पहुंचाएगा। मुझे नहीं समझ आया कि इस नाज़ुक मोड़ पर मीडिया को क्या फ़ायदा दिखा मुस्लिमों को कोरोना बम और कोरोना जिहादी कहने से? अजीबोगरीब ख़बरों (25 रोटी, नाच रहे हैं, गिलास में चाय माँग रहे हैं, चार्जर के लिए लड़ रहे हैं आदि) के द्वारा पूर्वाग्रहों से समाज को ग्रसित करके हम समाज को बेहद नाज़ुक वक़्त में बाँट रहे हैं। जो लोग गलत कर रहें हैं उन्हें सज़ा दो और दफा करो। जो ख़बर आम लोगों के लिए किसी काम की नहीं है उसे बार बार चलाने और हर जगह छापने का क्या तुक है सिवाय ज़हर घोलने के। इससे कोरोना कैसे हारेगा कोई समझाए तो भला। क्योंकि हम दुनिया की कितनी ही अच्छी से अच्छी थ्योरी ले आएं नतीजा यही निकलेगा कि हम भारतीय कोरोनो वायरस से जंग हिन्दू-मुस्लिम एकता के बिना नहीं जीत सकते। इसे हम जितनी जल्दी समझ लें बेहतर होगा नहीं तो कई मासूम लोगों की जान जाने के बाद हमें यह समझ आएगा। क्योंकि एक भी कोरोना वायरस का कहीं पर भी बच जाना मतलब कोरोना की विजय कहलाएगी। चीन में भी तो बस एक ही कोरोना वायरस था और आज पूरी दुनिया उसकी गिरफ़्त में है। मीडिया वह दिखाए जो लोगों को देखना ज़रूरी है ना कि वह जो वे चाव से देखना चाहते हैं। शब्दों की कलाबाज़िया फिर किसी वक़्त कर लेना। फँसे की जगह छिपे और घर पहुंच गए की जगह देश में फैल गए जैसे शब्दों ने वाक़ई नफ़रतों को गाँव-देहातों तक फैला दिया।

तब्लीग़ जमात के अमीर साहब का भूमिगत होना भी इस मुद्दे को और बुरा बना गया क्योंकि वे यदि उनके स्तर पर हुई ग़लती क़ुबूल कर लेते और अपने साथियों से अपील कर लेते वीडियो या ऑडियो के माध्यम से कि जो जहाँ है वह अपने को क्वारर्ण्टाइन कर ले और सरकार को इत्तला कर दे तो उसी वक़्त उनके कहने पर सब के सब तब्लीग़ जमात से जुड़े लोग एक घंटे में ही नियंत्रित हो जाते। क्योंकि यह 100% सत्य है कि एक धर्मगुरु लोगों को नियंत्रित करने में हजारों सैनिकों से ज़्यादा प्रभावी होता है। आप यह देख सकते हैं तब्लीग़ जमात के इज्तिमा में कि कैसे कई कई लाख लोग अनुशासित रहते हैं, बिना किसी पुलिस या किसी और बल के और यहाँ तो नियंत्रित 2 से 3 हज़ार लोगों को ही करना था।

फ़िलहाल दोनों ही धर्मों के लोगों को समझना होगा कि इस वक़्त एकता, भाईचारा और प्रेम कितना ज़रूरी है। दोनों को ही प्रयास करने होंगे क्योंकि जान पर हम आम लोगों की ही बनी हुई है। सोशल मीडिया पर जैसे मुसलमानों के बायकॉट के वीडियो चल रहे हैं वे एक भयानक कल की तस्वीर पेश करते हैं। यदि नफरत ऐसे ही फैलती रही तो शायद हम कोरोना से जंग हार जाएंगे। कई निर्दोष अपनी जान गंवा देंगे। कोरोना को नष्ट करने के लिए सोशल डिस्टेंसिग ज़रूरी है लेकिन सोशल डिस्क्रिमिनेशन बेहद घातक है। हमें कोरोना से संघर्ष करना है लेकिन संगठित और सहयोग के द्वारा क्योंकि चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम, कोरोना का कोई भी कैरियर रहा, सबको संक्रमित करेगा ही, तो डर या नफ़रत फैलाकर नहीं, सूझबूझ और भ्रामक प्रचारों की काट करके ही इस पर विजय पाई जा सकती है।

डॉ अबरार मुल्तानी
लेखक और चिकित्सक

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