मीडिया द्वारा मुसलमानों के खिलाफ छेड़े गए प्रोपेगेंडा युद्ध के दुष्परिणाम सामने आने शुरू हो गए हैं। 2 दिन पहले दिल्ली में जमात में से लौटे दिलशाद नामक युवक को बेरहमी से ‘स्वस्थ’ लोगों ने पीटा, इनका आरोप था कि मुसलमान इस देश में कोरोना काला रहे हैं। उत्तर प्रदेश के सीतापुर में एक बाइक सवार मुस्लिम युवक को कोरोना फैलाने के आरोप में बेरहमी से पीटा गया। कर्नाटक के बागलकोट में तीन मुसलमान मछुआरों को 10-15 लोग घेर लेते हैं. तीनों मछुआरे हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हैं. स्थानीय भाषा में लोग चिल्लाते हैं- ‘छूना मत इन्हें, ये लोग ही कोरोना फैला रहे हैं. उत्तराखंड के हल्द्वानी में भी ‘स्वस्थ’ लोग जावेद नाम के दुकानदार को घेर लेते हैं और कहते हैं कि भाई आप अपनी दुकान उठा लो और यहां दुकान मत लगाओ. बड़ी दिक्क़त हो रही है आप लोगों से. इन्हीं लोगों से बीमारी फैल रही है। उत्तर प्रदेश के मेरठ जपनद के भावनपुर में दो ऐसे मुस्लिम युवकों पर भी मुकदमा दर्ज हुआ है जिन्होंने तब्लीगी जमात के अध्यक्ष मौलाना साद की फोटो को अपने ह्वाटसप की प्रोफाईल पर लगाया था। इस डीपी को देखकर सत्ता संरक्षण में पलने वाले संगठनों ने हंगामा किया, जिसके बाद पुलिस ने डीपी लगाने वाले दोनों युवकों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया।
ये घटनाएं बता रहीं हैं कि भारतीय मीडिया द्वारा मुसलमानों के खिलाफ छोड़े गए प्रोपेगेंडा युद्ध ने एक वर्ग विशेष को मुसलमानों की लिंचिंग करने के लिए तैयार किया है। जिसके नतीजे में ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं। कैसी अजीब विडंबना है कि मौलाना साद की फोटो को डीपी बनाने पर तथाकथित हिन्दूवादी संगठनों के लोग हंगामा काटते हैं और पुलिस भी उनके सामने नतमस्तक होकर मुकदमा दर्ज कर लेती है? क्या ऐसे लोगों का कोरोना कुछ बिगाड़ सकता है? जो लोग पहले से ही सांप्रदायिकता जैसी बीमारी से ग्रस्त हों फिर कोरोना जैसी महामारी उनका क्या बिगाड़ पाएगी? पूरी दुनिया में कोरोना एक महामारी है जो इंसान के फेफड़ों को खत्म कर देती है। लेकिन भारत में इस बीमारी ने लोगों के दिमागो को संक्रमित किया है। हालांकि ये लोग पहले से ही सांप्रदायिकता रूपी कोढ़ से ग्रस्त थे लेकिन कोरोना के नाम पर फैलाए गए इस्लामोफोबिया ने इन्हें और अधिक संक्रमित कर दिया है। कोरोना फैलने के ‘डर’ से मुसलमानों को निशाना बनाने वाले लोग तो खुद बीमार हैं, क्या ये लोग समाज के हितैषी हो सकते हैं। यह सब मीडिया द्वारा मुसलमानों के खिलाफ छेड़े गए प्रोपेगेंडा युद्ध का नतीजा है। युद्ध सिर्फ सरहदों पर या मैदान में ही नहीं लड़े जाते बल्कि ज़हनों में भी लड़े जाते हैं। भारतीय मीडिया ने इस्लामोफोबिया के बहाने एक ऐसे बहुत बड़े वर्ग को ज़हनी बीमार बना दिया है जो किसी भी सूरत में देश में आने वाली हर आपदा अथवा संकट का ठीकरा मुसलमानों के सर पर फोड़ने के लिए उतावला रहता है।
मीडिया लगातार फर्जी ख़बरें चलाकर मुसलमानों को बदनाम करने और उनके खिलाफ सैन्यकरण में लगा हुआ है। पुलिस इन फर्जी ख़बरों का खंडन करती है, लेकिन तब तक बहुत देर हो जाती है फर्जी खबरें सोशल मीडिया पर वायरल होनी शुरू हो जाती हैं और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से इन खबरों को जन जन तक पहुंचा दिया जाता है। जैसे पहले कहा गया कि जमातियो ने डॉक्टरों की टीम पर थूका है। लेकिन जैसे ही यह ख़बर फर्जी साबित हुई, उसके बाद एक और शिगूफा छोड़ा गया कि जमात के लोग अस्पताल में नंगे घूम रहे थे अब यह खबर भी झूठी निकली। ऑल्ट न्यूज़ ने फैक्ट चेक किया है। इस तरह से अभी तक जमात के खिलाफ लाई गई एक भी खबर सच साबित नहीं हुईं हैं। बावजूद इसके भारतीय मीडिया ने मुसलमानों को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। कोई भी मुसलमान इस नफरत का शिकार हो सकता है, फिर चाहे वह हल्द्वानी का जावेद हो या भारतीय क्रिकेटर इरफान पठान, हाल ही में इरफान पठान ने उन टिप्पणियों के स्क्रीन शाॅट्स फेसबुक पर पोस्ट किए जिनमे उनकी धार्मिक पहचान को निशाना बनाकर उन्हें भद्दी गालियां दी गईं हैं। इन गालियों पर इरफान पठान का दर्द छलका, उन्होंने लिखा कि ‘मैंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर भारत की नुमाईंदगी की है जब मेरे साथ यह हो रहा है तो आम इंसान के साथ कैसा सलूक होता होगा’। यहां से मीडिया में बैठे बौद्धिक आतंकवाद के मास्टरमाईंड और मुसलमानों से नफरत करने वाले जाॅम्बी को कटहरे में खड़ा करके पूछा जाए कि क्या आप इरफान पठान के सवालों का जवाब दे सकते हैं? क्या इरफान पठान के दर्द को समझ सकते हैं? इस नफरत के लिए मीडिया के आतंकी ही जिम्मेदार हैं, जिनके द्वारा फैलाई गई नफरत हर खास ओ आम मुसलमान को भुगतनी पड़ रही है। यह वक़्त इस देश के लिए, और मुसलमानों के लिए बहुत भयानक है। आज न कल कोरोना तो हार जाएगा लेकिन उन नफरतों को कैसे हराया जाएगा जिन्होंने कोरोना के नाम पर लोगों के दिमाग़ों को संक्रमित कर दिया है?
वसीम अकरम त्यागी