पुलवामा हमले के बाद सोशल मीडिया पर तमाम तरह की प्रतिक्रियाऐं देखने को मिल रही हैं। एक महाशय एक पोस्टर जारी करके सवाल कर रहे है कि ‘आमिर खान और हामिद अंसारी अब डर तो नहीं लग रहा है, सच में आपसे अब हमें डर लग रहा है’। एक महाशय ने लिख रहे हैं कि ‘हे उलेमाओं,इस्लाम को बदनाम कर रहे इन मुस्लिम आतंकवादियों को इस्लाम का दुश्मन कब घोषित करोगे ?’ इस तरह के दर्जनों स्टेटस मेरी नज़र से गुजरे हैं, यानी देशभक्ति का दायरा सिर्फ इतना भर है कि ‘सेना के जवान से शुरू मुसलमान पर खत्म’। इसके अलावा काट डालो, मार डालो, चालीस के बदले चार सौ यह तो कल से ही चला आ रहा है।
बाकी कुछ ‘देशभक्त’ अभी भी अपने ही देश के मुसलमान के चक्रव्यूह को तोड़ ही नहीं पा रहे हैं और ‘बहाने’ से गालियां देकर ‘देशभक्ति’ का सबूत दे रह हैं। दिमाग़ में जब गौबर भर दिया जाता है तो देशभक्ती का दायरा भी सीमित होकर अपने ही हमवतनों को गालियां देने तक रह जाता है। सवाल पूछना चाहिये सरकार से, लेकिन सरकार से क्यों पूछें यह सरकार तो भक्ति के लिये है, इसलिये साफ्ट टार्गेट पकड़ लिया मुसलमान, और लग गए देशभक्ति दिखाने के लिये। अभी राष्ट्रवादी चैनल ‘आज तक’ दिखा रहा है कि ‘जिस पाकिस्तान की परस्ती में जैश-ए-मोहम्मद ने CRPF जवानों पर कायराना आतंकी हमला किया आज वही बहादुर सीआरपीएफ जवान दिल्ली में पाकिस्तान दूतावास की हिफाजत कर रहे हैं.’ अब इस कूड़मगज को कौन बताए कि पाकिस्तान दूतावास कराची या इस्लामाबाद में नही है बल्कि भारत की राजधानी दिल्ली में है, अगर उस पर कोई हमला करता है तो अपने दूतावास को बचाने के लिये पाकिस्तान की सेना नहीं आएगी, और न इससे पाकिस्तान का लॉ एंड आर्डर डिस्टर्ब होगा, बल्कि भारत का लॉ एंड ऑर्डर डिस्टर्ब होगा और उसकी रक्षा करना भारत सरकार का ही फर्ज है पाकिस्तान का नही। उस दूतावास में काम करने वाले भी अक्सर भारतीय ही होंगे।
लेकिन क्या इलाज करें उन दिमागों का जिन्होंने गौबर को च्वनप्राश समझकर खा लिया है। राष्ट्रवाद का चश्मा पहनकर सरकार से सवाल ही करना भूल गए हैं। कौन पूछेगा कि भारत के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को तुरंत इस्तीफा देकर मानना चाहिए कि वो अपनी ज़िम्मेदारी बार-बार निभाने में विफल रहे ? भारत के गृहमंत्री से कौन सवाल कहे कि उन्हें देश की जनता से वादा करना चाहिए कि पुलवामा के दोषियों को सात दिन के भीतर उस जन्नत में पहुंचवाएंगे जहां का वादा करके वो कश्मीरी नौजवानों को बहलाते रहे हैं। कौन मांग करे कि प्रधानमंत्री मोदी हर शहीद के परिवार को नौकरी दें, पेट्रोल पंप जैसी आजीविका का साधन दें, परिवार के सदस्य को नौकरी दें और वादा करें कि इस हमले को चुनावों में भुनाएंगे नहीं। कौन मांग करे कि खुफिया एजेंसियों के कर्ता- धर्ताओं को पद से हटाया जाए क्योंकि जवानों पर सीधे हमले जितने पिछले साढ़े चार सालों में हुए उतने कभी नहीं हुए और ये लोग कुछ भी पता लगा पाने में नाकाम रहे। आज भी श्रीनगर से बीस किमी दूर हमला होने का मतलब है इंटेलिजेंस की बड़ी नाकामी है।
प्रधानमंत्री से कौन कहे कि आपने सर्जिकल स्ट्राईक का श्रेय बहुत जल्दी लिया था अब इस हमले के लिये भी खुद को दोषी मानिये? कौन पूछे कि सेना के साथ फोटो खिंचाना ही आपका फर्ज नही बल्कि सेना जो देश की रक्षा कर रही है उसकी रक्षा करने की जिम्मेदारी भी आपकी है? लेकिन खामोश सवाल कोई नहीं, सिर्फ लगे रहे मुसलमान, पाकिस्तान, जवान यही है आज की देशभक्ति की पहचान।
लेखक:वसीम अकरम त्यागी
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