लालू यादव की ज़िंदगी का एक शानदार दृश्य जो उनकी आत्मकथा में भी नहीं है

‘हुजूर आपकी प्लेट में कैसे खाऊं। मैं तो गरीब आदमी हूं, ऑटोरिक्शा चलाता हूं। आपसे मिल लिया, मुझे सब कुछ मिल गया।’ लालू यादव ने उसे झड़पते हुए कहा-

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-नलिन वर्मा (मूल आलेख अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ से साभार । अनुवाद Md Umar Ashraf ने किया है)

मैं उस दिन बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स के एशियन हार्ट इंस्टीट्यूट जा रहा था। वहां आरजेडी के मुखिया लालू प्रसाद यादव एडमिट थे। मैं उनसे ‘गोपालगंज टू रायसीना’ किताब के सिलसिले में ही मिलने में जा रहा था। मैं एयरपोर्ट पहुंचा और एक रिक्शा लिया। रिक्शे में कुछ देर होने के बाद मैंने रास्ते में ऑटो वाले से पूछा- क्या तुम लालू प्रसाद यादव को जानते हो? उसने हां में जवाब देते हुए कहा, इस समय वो बीमार हैं और अस्पताल में भर्ती हैं।

थोड़े सोचने के बाद मैंने उस ऑटो ड्राइवर से कहा, मैं अभी उनसे ही मिलने जा रहा हूं। इतना सुनते ही उस ऑटो वाले ने अपनी ऑटो सड़क किनारे रोक दी और बोला- क्या आप मुझे लालूजी से मिलवा सकते हैं? अगर आप मुझे उनसे मिलवाने में मदद करेंगे तो मैं आपके लिए उपर वाले से दुआ करूंगा। मैं सोचने लगा कि मैंने ऑटो ड्राइवर को बताकर गलती तो नहीं कर दी। उससे भी बड़ी बात मैं इस ऑटो वाले को लालूजी से मिलवा पाउंगा या नहीं, पता नहीं था। मैंने ड्राइवर को तसल्ली देने के लिए उसे एक कागज पर अपना नाम और फोन नंबर लिखकर देने को कहा और वादा किया कि मिलवाने की कोशिश करूंगा।

उस ऑटो ड्राइवर ने अपना नाम अंसारी लिखा और उसके आगे अपना फोन नंबर लिख दिया। मैंने उस कागज को अपनी जेब में रख लिया। ऑटो ड्राइवर ने खुश होते हुए बताया- अगर मुझे लालूजी और अभिताभ बच्चन से एक ही टाइम में मिलने का मौका मिले तो मैं लालूजी से मिलूंगा। अस्पताल के गेट पर छोड़ते हुए उसने एक बार फिर से लालूजी से मिलने के लिए आखिरी जोर लगाया और मैं भी हां कहते हुए अस्पताल में घुस गया। लालूजी के सहयोगी लाॅबी में मेरा इंतजार कर रहे थे। मैं उनके साथ चौथी मंजिल के कमरे में पहुंच गया, जहां लालूजी एडमिट थे।

लालू यादव की तबीयत बहुत खराब थी। हाल ही में उनके दिल की सर्जरी हुई थी। बीपी और शुगर अस्थिर थे। डाॅक्टर और नर्स उनको समझा रहे थे कि क्या खाएं और क्या नहीं? लालूजी को देखकर अब तक मैं ऑटो ड्राइवर से किया हुआ वादा भी भूल गया था। बीमार होने के बावजूद लालूजी ने अपनी ही स्टाइल में गर्मजोशी से हमसे मुलाकात की और बातें की। किताब के सिलसिले में उनसे लगभग दो घंटे तक बात करता रहा। बीच-बीच में डाॅक्टर और नर्स उनका बीपी चेक करके चली जातीं।

लालू यादव हमेशा से खुशमिजाज थे। वे नर्स से भी उसी अंदाज में बात कर रहे थे। लालू यादव ने नर्स से कहा- तुम्हें शादी कर लेनी चाहिए, शादी में अब देर मत करो। तुम्हें अपने माता-पिता और परिवार के दूसरे बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए। नर्स कुछ बोली नहीं, बस मुस्कुरा दी। बात खत्म करते-करते लगभग 6 बज गये थे। मैं वहां से निकलने ही वाला था कि मुझे ऑटो ड्राइवर का वायदा याद आ गया। मैंने पूरा किस्सा लालूजी को सुना दिया। मेरी मुलाकात के बाद लालूजी को बिहार और महाराष्ट के कुछ नेताओं से मिलना था। जो बाहर ही बुलावे का इंतजार कर रहे थे।

मेरी बात सुनकर लालूजी बैचेन हो उठे और मुझसे बोले, आपने उसका नंबर लिया था, वो मुझे दीजिए। मैंने जेब में हाथ डाला और वो तुड़ा-मुड़ा कागज पकड़ा दिया जिस पर उस ऑटो ड्राइवर ने अपना नाम और फोन नंबर लिखकर दिया था। लालू यादव ने पार्टी विधायक भोला यादव से उस ड्राईवर को फोन मिलाने को कहा। फोन मिलते ही लालूजी उस डाइवर से बोले- आपका नाम क्या है? आप जल्दी हमसे मिलने आ जाओ और ढाई सौ ग्राम कच्चा कलेजी भी साथ लेते आना। आज बकरीद का दिन है, कुर्बानी वाला कलेजी लाना।

फोन पर बात होने के बाद लालूजी ने विधायक भोला यादव से कहा, बाहर बैठे विधायकों से कह दो कि वे किसी और दिन मिलने आएं। करीब आधे घंटे बाद सफेद पाॅलीथन में मीट लपेटकर ऑटो ड्राइवर कमरे में आया। लालू यादव को देखकर ऑटो ड्राइवर वाला रोने लगा। लालू यादव ने अंसारी से कहा, रोईए मत। लालू यादव ने अपने एक और सहयोगी लक्ष्मण से कहा जाइए, इनको साथ ले जाइए और मटन को पका कर लाइए फिर साथ में खाते हैं। कमरे के बगल में किचन बनी थी, जिसे अस्पताल ने लालू प्रसाद यादव के लिए ही बनवाई थी।

कुछ देर बाद प्लेट में पका हुआ मीट आया। लालू यादव बिस्तर पर ही खाने को बैठ गये। लालू यादव ने अंसारी को साथ में खाने के लिए कहा। अंसारी ने हाथ जोड़कर कहा,

‘हुजूर आपकी प्लेट में कैसे खाऊं। मैं तो गरीब आदमी हूं, ऑटोरिक्शा चलाता हूं। आपसे मिल लिया, मुझे सब कुछ मिल गया।’
लालू यादव ने उसे झड़पते हुए कहा-

‘चुपचाप आकर साथ में खाओ नहीं तो दो थप्पड़ मारूंगा’।
अंसारी चुपचाप लालूजी की प्लेट में ही खाने लगा। तभी एक नर्स आई और लालू यादव को बोली, आपको डाॅक्टर ने मीट खाने का मना किया है, आप मीट क्यों खा रहे हैं? लालू यादव मुस्कुराकर बोले- ‘डॉक्टर साहब तो भोले हैं। उनको पता नहीं है कि अंसारी के मीट में जितना फायदा है उतना फायदा पूरे अस्पताल की दवाई में नहीं है, ये कुर्बानी का मीट है’।

लालू यादव ने आगे कहा- ‘मुझे गरीबों से बहुत प्यार मिला है। मुझे इससे ज्यादा क्या चाहिए? मैं मौत और बीमारी की नहीं सोचता, जिंदगी तो भगवान के हाथ में है’। फिर उन्होंने ऑटो ड्राइवर से कहा- ‘अंसारी अब जाओ। कोई तकलीफ होगी तो बताना’। अंसारी ने रोते हुए लालू यादव से विदा लेते हुए कहा, ‘या अल्लाह, लालूजी को आबाद रख’। अंसारी के जाने के बाद लालू यादव हमसे बोले, ‘आठ बज गए हैं। मैं आप लोगों के साथ मीट इसलिए नहीं खा सका क्योंकि ये 4-5 लोगों के लिए कम पड़ता। आप लोग होटल जाइए और अच्छा खाना और शराब लीजिए। बिहार में तो शराबबंदी है’।

Note : लालू प्रसाद यादव की आत्मकथा ‘गोपालगंज टू रायसीना’ के लेखक नलिन वर्मा ने ये क़िस्सा अंग्रेज़ी अख़बार टेलीग्राफ़ में 8 मई 2019 में लिखा था. पर ये किस्सा लालू प्रसाद यादव की आत्मकथा ‘गोपालगंज टू रायसीना’ में नहीं है! दरअसल जब ये वाक़्या हुआ तब तक किताब की पांडुलिपि छपने के लिए जा चुकी थी और नलिन वर्मा किताब के बारे में और उसकी पुष्टि करने के लिए लालू प्रसाद यादव से मिलने गये थे।

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