बलात्कार शब्द एक महिला के लिए कितना दर्दनाक और उत्पीड़ित से भरा हुआ होता है। एक महिला की शारिरिक अखंडता और सम्मान का उल्लंघन करने का सबसे ख़ौफ़नाक कर्म है जो उसको मानसिक और शारिरिक दोनों रूप से बीमार कर देता है। बलात्कार महिलाओं के खिलाफ चौथा सबसे आम अपराध है।
आकड़ो के अनुसार देश मे 2014-18 के बीच 1.75 लाख मामले दर्ज किए गए। लेकिन बड़े अफसोस और दुख की बात है कि कई बलात्कार के मामलों को प्रशासन द्वारा पीड़िता से समझौता करवा कर बन्द कर दिया जाता है तो कई बार बेचारी पीड़िता को कभी इंसाफ नही मिल पाता।
हाल ही में 15 अगस्त को जबकि पूरा देश आज़ादी का अमृत महाउत्सव मना रहा था तब एक पीड़िता को पता चलता है कि उसके साथ जो बीस साल पहले सामुहिक बलात्कार हुआ, उसके सामने उसके परिवार की हत्या की गई उसके सभी आरोपियों को रिहा कर दिया गया है।
एक पीड़िता का दिल कैसे ख़ौला होगा ये ख़बर सुनकर ? यही नही बल्कि एक आम महिला का गुस्सा भी जायज़ है।
सवाल समाज और देश के सभ्य नागरिको से भी है कि बिलक़ीस बानो के लिए क्या वो सड़को पर नही उतर सकते ? क्या ये ऐसा अपराध नही है जिसको हर कोई नापसन्द करता है?
सवाल उस कमिटी से भी है जिन्होंने इन बलात्कारियों को रिहा करवाया, उससे नही ज़्यादा आश्चर्यजनक बात ये है कि उस कमिटी में महिलाओं की भी भागीदारी थी, महिला मोर्चा की अध्यक्ष थी लेकिन उन्हें शर्म महसूस नही हुई इन अपराधियों के पक्ष होने पर। एक महिला होने का फर्ज़ आपने क्यों नही निभाया ?
सरकार ख़ामोश है, प्रशासन ख़ामोश है जिनका कर्तव्य देश की हर महिला को सुरक्षा प्रदान करना है वो इस फैसले पर क्यों अपनी चुप्पी नही तोड़ रहे ? उनका ऐसा करना देश में घूम रहे बाकी बलात्कारियों को कुकर्म करने पर उत्साहित करेगा और ये अपराध बन्द होने के बजाए बढ़ता चला जायेगा।
हर पल, हर महिना, हर साल गुज़रता जाता है और हम माज़ी में हुए अपराधों पर चर्चा करते नज़र आते है।
इन अपराधों पर अंकुश लगना जितना नामुमकिन लगता है उतना ही ज़रूरी भी है। शिक्षित समाज के लिए ये बड़ी शर्म की बात है कि बिलक़ीस बानो के बलात्कारियों को रिहा करके उनका स्वागत किया गया और उन्हें माला पहनाई गयी। अगर देश का हर शिक्षित और सभ्य व्यक्ति बिलक़ीस बानो के पक्ष में खड़ा हो जाए तो शायद उन बलात्कारियों को फिर सज़ा मिल सकती है लेकिन हमारी कमी है कि हम पीड़िता के पक्ष में अपनी बात रखने से भी पीछे हटते है।
ऐसे कानून की ज़रूरत है जहाँ दिल ऐसी दरिंदगी अंजाम देने से पहले दहल उठे।
खान शाहीन जाटू