चिकित्सकों के एक ह्वाट्सऐप-ग्रुप में एक चिकित्सक अपने रोग के लक्षणों की चर्चा करते हुए लिखते हैं कि उन्हें 101 डिग्री बुख़ार और मांसपेशियों में दर्द रहा करता है। थोड़ी देर आराम करने पर उन्हें तबियत बेहतर मालूम देती है। यद्यपि ये लक्षण फ़्लू की तरह हैं, पर वे फिर भी वर्तमान परिस्थितियों में अपना कोविड-19 के लिए नाक के भीतर से नमूना लेकर आवश्यक टेस्ट आरटी-पीसीआर कराते हैं, जो नेगेटिव आता है। वे उल्लास के साथ अपने ग्रुप में इसकी घोषणा करते हैं। उनकी भावनाओं से भरी इस घोषणा को मैं तर्कपूर्ण ढंग से काट कर उनके उत्सव के मूड में खलल डाल देता हूँ। मैं उनसे कहता हूँ कि यद्यपि उनका टेस्ट नेगेटिव है, किन्तु वे दो सप्ताह यह मानकर कि उन्हें कोविड-19 संक्रमण है, क्वारंटाइन का पूरा पालन करें।
संक्रमणों में जाँचों का महत्त्व ज़बरदस्त है। जिस तरह कार चलाते समय जीपीएस का महत्त्व है, उसी तरह रोग की समझ में जाँचों का। पर टेस्ट एक बड़ा प्रश्न उत्पन्न करते हैं। क्या अगर लक्षणों के बाद आपका टेस्ट नेगेटिव आता है, तब आप अपने सामाजिक बर्ताव में कोई अन्तर ले आएँगे? यह सच है कि वर्तमान सार्स सीओवी 2 लोगों के फेफड़ों को संक्रमित करके उन्हें गम्भीर रूप से बीमार कर रहा है, पर यह एक विचित्र रूप से शर्मीला वायरस है। कई मरीज़ों में पॉज़िटिव घोषणा से पहले आरटी-पीसीआर के तीन-चार नमूने लेने पड़ रहे हैं। चीनी ऑफ़्थैल्मोलॉजिस्ट जिन्होंने दुनिया-भर में कोरोना-महामारी के प्रति जागरूक किया था, उनके अनेक बार टेस्ट नेगेटिव आये थे। बाद में किन्तु संक्रमण से ही उनकी मृत्यु हुई।
एक चीनी शोध में आरटीपीसीआर की संवेदनशीलता (सेंस्टिविटी) 70% के आसपास पायी गयी है। यानी एक हज़ार कोरोना-संक्रमित लोगों में सात-सौ पॉज़िटिव आ रहे हैं, किन्तु तीन सौ की यह जाँच नेगेटिव है। अब ये तीन-सौ लोग ये सोचेंगे कि उन्हें कोरोना-संक्रमण है नहीं। उन्हें जाँच के बाद क्लीन चिट मिल गयी है और वे सोशल डिस्टेंसिंग, आयसोलेशन और लॉकडाउन को कम गम्भीरता से लेंगे, जिसके नतीजे बुरे होंगे।
टेस्ट न कराने से कमियों वाला (ही सही) टेस्ट कराना बेहतर है। चूँकि कोरोना विषाणु जल्दी मानव-प्रजाति को छोड़ने वाला नहीं है और दीर्घकालिक लॉकडाउन के बड़े आर्थिक दुष्प्रभाव हैं, इसलिए जाँचों का लोगों, मुहल्लों, शहरों के सटीक क्वारंटाइन के लिए महत्त्व बढ़ जाता है। पूरे देश को एक-जैसी परिस्थति में देर तक बन्द करने की बजाय टेस्टिंग हमें बता सकती है कि कौन काम करने बाहर निकले और कौन बन्द रहे। टेस्टिंग हमें वैश्विक ढंग से सोचवाती है, पर फ़ैसला स्थानीय ढंग से लेने को प्रेरित करती है। इस महामारी को फैलाने में बड़ी भूमिका लक्षणहीन लोगों की है। वे जिन्हें न बुख़ार है और न जो खाँस रहे हैं। वे ठीक महसूस कर रहे है और उन्हें नहीं पता कि उनके भीतर यह विषाणु है भी कि नहीं। अगर हम किसी बड़े समूह का टेस्ट करें तो हम लक्षणहीन लोगों को पकड़ सकते हैं। फिर उन्हीं को केवल क्वारंटाइन किया जाए, जो पॉज़िटिव हैं। शेष लोग काम पर जा सकते हैं। क्या यह तरीक़ा काम करेगा?
आरटीपीसीआर-जाँच की संवेदनशीलता (सेंसिटिविटी) शुरुआती बीमारी में कम है, पर लक्षणहीन रोगियों में यह और भी कम है। कदाचित् वायरल लोड कम होने के कारण इन लक्षणहीन लोगों में यह जाँच नेगेटिव आ रही होती है। अब जिसमें जाँच नेगेटिव आती है, वह भ्रामक ढंग से यह मान लेता है कि उसे कोरोना-संक्रमण है ही नहीं। शायद हमें दूसरे किसी टेस्ट की भी मदद लेनी चाहिए। छाती का कैटस्कैन (सीटी) ऐसी ही एक जाँच है। इसमें घण्टे-भर में निष्कर्ष मिलता है, जबकि आरटीपीसीआर में एक दिन तक भी लग जाता है। पर सीटी-जाँच की अपनी सीमाएँ और समस्याएँ हैं।
कोई जाँच परफ़ेक्ट नहीं होती। पर यह प्रश्न हमें स्वयं से पूछना चाहिए कि क्या जाँच के पॉज़िटिव की जगह नेगेटिव आने पर हमारे व्यवहार में कोई अन्तर होगा? किसी को बुख़ार है, खाँसी और बदनदर्द भी है किन्तु टेस्ट नेगेटिव आया है, तब क्या वह सेल्फ़-आयसोलेशन में नहीं जाएगा? क्या जाँच की रिपोर्ट फ़ाल्स नेगेटिव नहीं आ सकती? मान लीजिए अगर उसकी रिपोर्ट फ़ाल्स नेगेटिव आयी है, किन्तु वह कोरोना-संक्रमण से ग्रस्त है? तब? लेकिन फिर लोग सवाल करेंगे कि अगर जाँच के पॉज़िटिव और नेगेटिव आने पर एक-जैसा व्यवहार करना है, तब जाँच का महत्त्व ही क्या!
जाँच का महत्त्व बिलकुल है। जाँच जनसंख्या के स्तर पर रोग को मैनेज करने में मदद देती है। लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर जाँच के महत्त्व को विवेकपूर्ण ढंग से समझने की ज़रूरत है। लोगों को समझना है कि जाँच के पॉज़िटिव आने पर ‘वे संक्रमित हैं’ और जाँच के नेगेटिव आने पर भी ‘वे संक्रमित हो सकते हैं’। ‘अपने-अपने घरों में रहिए’ और ‘अपनी-अपनी जाँचें करवाइए’ दो विरोधाभासी मेसेज हैं, किन्तु इन-दोनों में से चुनाव विवेकपूर्ण ढंग से किया जाना है।
लक्षणों के आधार पर किसी डॉक्टर में कोविड-19 के आशंका है, किन्तु उसका आरटीपीसीआर-टेस्ट नेगेटिव आया है। ऐसा डॉक्टर अगर तुरन्त अस्पताल या अपने वृद्ध माँ-बाप के घर पहुँचे और वह वहाँ लोगों को संक्रमित न करे, ऐसा कितने विश्वास से हम कह सकते हैं? एक संक्रमण फैलाता डॉक्टर अन्य डॉक्टरों को यह विषाणु देकर कोविड-19 के खिलाफ़ हमारी जंग को कितना कमज़ोर कर सकता है!
इसलिए लक्षणों के आधार पर कोविड-19 की आशंका वाले किन्तु जाँच में नेगेटिव पाये गये लोगों को (विशेषकर) चिकित्सकों को भी आयसोलेशन नहीं तोड़ना है। दो सप्ताह तक स्वयं को घर में बन्द रखना और लोगों से न मिलना इतना भी मुश्किल काम नहीं। ऐसा करने से न जाने कितने ही लोगों को हम संक्रमण की गिरफ़्त में आने से बचा सकते हैं।
-Dr. Skund Shukla
(मेडस्केप पर विदेश में स्थापित डॉ.सौरभ झा के सूझबूझपूर्ण विचार पढ़ते हुए।)