आरएनए-वैक्सीन से लड़ सकेंगे कोविड-19 से?

आरएनए-वैक्सीन का कॉन्सेप्ट अपेक्षाकृत नया है, किन्तु इससे उमीदें बहुत हैं। इस वैक्सीन-विकास-विधि में व्यक्ति के भीतर एंटीजन नहीं डाला जाता, आरएनए की कुछ मात्रा प्रविष्ट करायी जाती है।

0
405

आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान ने किस शोध द्वारा सबसे अधिक जानें बचायी हैं? निश्चय ही इसका उत्तर ‘टीकाकरण’ है। हालांकि प्राचीन चिकित्सा-ग्रन्थों में भी टीकाकरण के उदाहरण वर्णित हैं, लेकिन जिस व्यापक पैमाने पर मॉडर्न मेडिसिन ने अलग-अलग बीमारियों के टीके बनाकर इंसानों की रक्षा की है, वह बेमिसाल है। चेचक का पहला टीका बनाने वाले डॉक्टर एडवर्ड जेनर से बड़ा पुण्यात्मा कदाचित् इस पृथ्वी पर कोई नहीं हुआ। जितने लोग स्मॉलपॉक्स से बचकर उनके कारण जिये, उससे बड़े पैमाने पर प्राणरक्षण शायद संसार में कोई नहीं कर पाया।

टीकाकरण या वैक्सीनेशन कितना आवश्यक है, यह कोविड-19 के आपात्-काल में हमें स्पष्ट दीख रहा है। ज़माना बड़ी तेज़ी से पोस्ट-ट्रुथ द्वारा नयी-नयी व्याख्याएँ कर रहा था, विकसित देशों में लोग टीकों को ‘पूँजीवादी षड्यन्त्र’ बताकर जनता को टीके न लगवाने के लिए प्रेरित कर रहे थे। अब वे ही लोग कोविड-19 के टीके के लिए बेसब्री से इंतज़ार में हैं: कब सफल-सुरक्षित वैक्सीन बने और कब यह पैंडेमिक-प्रसार रुके।

वैक्सीन का काम मनुष्य के प्रतिरक्षा-तन्त्र को प्रशिक्षण देकर शत्रु (जैसे कीटाणु अथवा कैंसर) से युद्ध के लिए तैयार करना है। संक्रमणों में दी जाने वाली वैक्सीनें शरीर में प्रवेश करते ही संक्रामक रोगों की नकल करते हुए प्रतिरक्षा-तन्त्र को नये अस्त्रों से लैस करती हैं। ये नये अस्त्र नयी ख़ास रक्षक प्रोटीनों के रूप में हो सकते हैं, जिन्हें एंटीबॉडी कहते हैं; अथवा नवीन रक्षक कोशिकाओं के रूप में भी। यानी टीकाकरण का उद्देश्य नवीन रसायनों और कोशिकाओं को भीतर जन्म देकर शरीर को आगे आक्रमण से बचने के लिए तैयार करना है।

कोविड-19 के लिए अनेकानेक वैक्सीनों के निर्माण के प्रयास में वैज्ञानिक लगे हुए हैं। इनमें से एक वैक्सीन-प्रकार आरएनए-वैक्सीन है। शायद आपने आरएनए-वैक्सीन का नाम न सुना हो। आरएनए का तो सुना होगा? डीएनए की तरह आरएनए भी हमारी कोशिकाओं में पाया जाता है। डीएनए का उद्देश्य शरीर की तमाम प्रोटीनों का निर्माण है: इस निर्माण-प्रक्रिया में पहले डीएनए से आरएनए बनाया जाता है और फिर आरएनए से प्रोटीन।

पारम्परिक वैक्सीन बनाने के लिए वैज्ञानिक संक्रामक कीटाणु के शरीर के कुछ हिस्से को जानवर या मनुष्य में प्रवेश कराते हैं। ऊष्मा या रसायन से कीटाणु का कुछ हिस्सा निष्क्रिय किया (इस तरह से कि वह भीतर जाकर रोग न पैदा करे) अथवा उसका शुद्धीकरण कर लिया। कीटाणुओं के इन हिस्सों को एंटीजन कहा जाता है और इन्हें जब शरीर में प्रवेश कराते हैं, तब शरीर की प्रतिरक्षक कोशिकाएँ इनके खिलाफ़ ख़ास प्रोटीन बनाती है जिन्हें एंटीबॉडी कहते हैं। यानी बाहर से आये कीटाणु-अंश एंटीजन को भीतर बनी ख़ास प्रोटीनें नष्ट करने का प्रयास करती हैं: एंटीजन को एंटीबॉडी द्वारा नष्ट किया जाता है।

टीका लगा, उसमें ख़ास कीटाणु के एंटीजन मौजूद थे। शरीर की प्रतिरक्षक कोशिकाओं ने ट्रेनिंग के बाद एंटीबॉडी बना लीं और एंटीजन को नष्ट कर दिया। साथ में शरीर की प्रतिरक्षक कोशिकाओं में पैदा हुई मेमोरी यानी याददाश्त। ऐसी स्मृति जिसके आधार पर शरीर अगली बार शरीर में प्रवेश करने पर इस टीके वाले संक्रमण को आसानी से पहचान लेगा और उसे नष्ट कर देगा। उदाहरण के तौर पर किसी बच्चे को हेपेटाइटिस-बी का टीका लगाया गया। इस टीके में हेपेटाइटिस-बी विषाणु का कुछ ख़ास अंश ( यानी एंटीजन ) था। शरीर की प्रतिरक्षक कोशिकाओं ने इस अंश के खिलाफ़ ख़ास क़िस्म की प्रोटीन यानी एंटीबॉडी बनायीं। और साथ में स्मृति के रूप में हेपेटाइटिस-बी की पहचान को सम्हाल कर रख लिया। अब मान लीजिए , इस बच्चे को कुछ महीनों बाद कोई सुई चुभी, जो हेपेटाइटिस बी-संक्रमित थी। जैसे ही हेपेटाइटिस-बी विषाणु भीतर दाखिल होंगे, बच्चे में मौजूद पूर्वनिर्मित एंटीबॉडी उन्हें नष्ट कर देंगी। इस तरह से पहले लगायी गयी वैक्सीन से बच्चे की हेपेटाइटिस-बी से रक्षा हो जाएगी।

वैक्सीन न बनी होतीं, तो चेचक से आज हर साल करोड़ों मृत्यु हो रही होतीं। टीके की अनुपस्थिति में हर साल पोलियो से लाखों विकलांग हो रहे होते। किन्तु वैक्सीन का निर्माण एक दिन या एक महीने में नहीं होता: यह लम्बे और अथक शोध के बाद ही सम्भव किया जाता है। आरएनए-वैक्सीन का कॉन्सेप्ट अपेक्षाकृत नया है, किन्तु इससे उमीदें बहुत हैं। इस वैक्सीन-विकास-विधि में व्यक्ति के भीतर एंटीजन नहीं डाला जाता, आरएनए की कुछ मात्रा प्रविष्ट करायी जाती है। इसकी अनेक विधियाँ हैं। शरीर में प्रवेश के बाद आरएनए कोशिकाओं में प्रवेश कर जाता है और वहाँ कीटाणुओं के प्रोटीनों यानी एन्टीजनों का निर्माण करता है। फिर भीतर बने इन एन्टीजनों के खिलाफ़ शरीर प्रतिरक्षक एंटीबॉडी बनाता है।

(पारम्परिक वैक्सीन और आरएनए-वैक्सीन में अन्तर एक बार फिर। पारम्परिक वैक्सीन में कीटाणु का कुछ अंश (जिसे एंटीजन कहते हैं) शरीर के भीतर प्रविष्ट कराया जाता है और उसके खिलाफ़ शरीर का प्रतिरक्षा-तन्त्र अपने असलहे तैयार करता है। जबकि आरएनए-वैक्सीन में कीटाणु का आरएनए शरीर के भीतर प्रविष्ट कराया जाता है और एंटीजन का निर्माण इस आरएनए से शरीर की कोशिकाओं के भीतर ही होता है।)

प्रश्न उठता है कि आरएनए को प्रवेश कराकर वैज्ञानिक टीके बना सकते हैं, तब डीएनए को प्रवेश कराकर क्यों नहीं? आरएनए-वैक्सीनें डीएनए-वैक्सीनों की तुलना में बेहतर काम करती पायी गयी हैं। फिर आरएनए को शरीर में डालना डीएनए को डालने से कहीं सुरक्षित भी है। पारम्परिक प्रोटीन-वैक्सीनों की तुलना में आरएनए-वैक्सीनों को बनाना सस्ता भी है। ढेरों पारम्परिक वैक्सीनें अण्डों में कीटाणुओं का कल्चर करने बनायी जाती रही हैं; अण्डे के कारण ढेरों लोगों को एलर्जी की समस्या होती है, और वे इन वैक्सीनों को नहीं ले पाते। बड़े पैमाने पर आरएनए-वैक्सीन बनाना सम्भव है और यही वह कारण है जिसकी वजह से ये वैक्सीनें पैंडेमिक में उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं। पैंडेमिक के समय अगर कीटाणु अपना प्रारूप बदल रहा है, तब आरएनए वैक्सीन को भी बदला जा सकता है। उदाहरण के लिए साधारण फ़्लू वैक्सीन बनाने में पाँच-छह महीने लगते हैं, जबकि फ़्लू की आरएनए-वैक्सीन दो महीनों से भी कम में कम क़ीमत पर बनायी जा सकती है।

जहाँ आरएनए-वैक्सीनों के बारे में इतनी सकारात्मकता है, वहीं अनेक समस्याएँ भी हैं। बहुत कम या अधिक तापमान पर आरएनए-वैक्सीन नष्ट हो जाती हैं। आरएनए तापमान के प्रति बेहद संवेदनशील होता है। ऐसे में व्यापक स्तर पर वैक्सीन को जन-जन तक कोल्ड-चेन बनाये हुए पहुँचाना चुनौतीपूर्ण है। हालाँकि वैज्ञानिकों ने आरएनए में आवश्यक परिवर्तन करके उसे तापमान के प्रति प्रतिरोधी और मज़बूत बनाया है। इसके बाद इन आरएनए-वैक्सीनों को सामान्य तापमान पर डेढ़ साल तक भी सुरक्षित रखा जा सकता है, जिसके कारण विकासशील देशों में इन्हें बख़ूबी इस्तेमाल किया जा सकता है।

कोविड-19 से लड़ाई में भी वैज्ञानिक सार्स-सीओवी-2 का आरएनए शरीर में प्रवेश कराकर प्रतिरक्षा विकसित करने में लगे हैं। देखते हैं, सफलता कब और कितनी मिलती है।

Dr. Skund Shukla

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here