-वाचस्पति शर्मा
हंगरी में कोरोना संकट के समय वहां की सरकार के मुखिया विक्टर ओरबान ने आपातकाल लागू करवा दिया है।
विक्टर ओरबान अकेला और पहला ऐसा राजनीतिज्ञ है जिसने इस महामारी का फायदा अपनी सत्ता के लिए उठा लिया है। हंगरी का संकट क्या है? इसपर थोड़ी देर में आतें है, लेकिन पहले कुछ बेसिक बातें याद कर लेते है। कुछ एक अपवादों को छोड़ दिया जाए तो दुनिया का हर राजनीतिज्ञ देश में आपदा आने की स्तिथि में सबसे पहले ये सोचता है की उससे कैसे फायदा उठाया जाए।
फिलहाल भारत में कोरोना के बहाने लाखो करोड़ के घोटाले अंजाम दिए जा रहें हैं, धन्ना सेठ शेयर बाजार को कैसे लूटा जाए ये सोच रहें हैं, तो दूसरी तरफ तेल की कीमतें धड़ाम होने की स्तिथि में भी तेल कंपनियों ने लूट मचा रखी है आप मुसलमान सब्ज़ी वालो को प्रताड़ित कर रहे हो, और उधर सरकार ने आपकी तमाम बचत योजनाओ में ब्याज दर में कटौती कर डाली है। रिजर्व बैंक से पैसा उड़ाने और जनता पर नए सेस टैक्स लगाने की जुगत भिड़ायीं जा रहीं है और इस पूरे ईको सिस्टम को हांकने के लिए पूंजीपति लॉबी ने जिस सरकार को चुन रखा है वो भी इस महामारी से “राजनितिक” फायदा उठाने के फिराक में नित नए हथकंडे अपना रही है, या माहौल बनाने की कोशिश में है। पूरी दुनिया में राष्ट्रवाद और देशभक्ति का काल चल रहा है। हंगरी में में जो हुआ उससे हम पूरी तरह अंदाजा लगा सकतें है की कल को ये हमारे देश और दुनिया के कई देशो में आराम से हो सकता है।
अब हंगरी पर आतें है। हंगरी में सत्तासीन पार्टी के मुखिया विक्टर ओरबान ने कोरोना सकंट के चलते एक नया कानून पास करके वर्तमान सत्तासीन पार्टी (यानी खुद को) को अविश्वसनीय राजनितिक और कानूनी अधिकार दे दिए हैं। ये अधिकार किसी भी डिक्टेटरशिप शाशन के समकक्ष ही नहीं बल्कि उससे भी कहीं अधिक हैं। विक्टर ओरबान 2010 से हंगरी का प्रधानमंत्री है, ये 1998 से 2002 तक भी सत्ता में थे, और आठ साल बाद दोबारा राष्ट्रवाद की लहर पर सवार होकर वापिस सत्ता में आये और अब तक टिके हुए हैं। आज संसद में ये अपनी पार्टी के साथ पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में हैं। कोरोना संकट के आते ही हंगरी सबसे पहले देशो में था जिसने लॉक डाउन किया था, जो आज की तारीख तक जारी है। स्पष्ट है की बिजनेस, स्कूल और सरकारी कामकाज सब ठप्प है। कोरोना प्रभाव हंगरी में आज लगभग स्थिर हैं, लेकिन विक्टर ओरबान ने लगभग एक महीने पहले ही इस महामारी की वजह से देश में आपातकाल लागू करवा दिया।
आपात काल के साथ साथ उन्होंने विशेष कानून भी पास करवा दिया, जिसे हम “रूल बाय डिक्री” कहतें हैं (अधिक जानकारी के लिए Rule By Decree गूगल कीजिये) संक्षेप में समझे तो ये कानून ऐसा है की जिसमे कोई भी नया ऐक्ट, कानून, या नया राजनितिक फैसला लेने के लिए संसद, न्याययालय या किसी भी संस्था की इज़ाज़त लेने, बहस चर्चा करने की कोई जरुरत नहीं है। मतलब जो प्रधानमंत्री चाहेंगे वही कानून नियम लागू करवा देंगे। दूसरी बात जो इस कानून को और खतरनाक बनाने का इशारा देती है वो ये की इस कानून की पास करते समय इसमें इसका कोई भी समयकाल निर्धारित नहीं किया है। मतलब ये आपातकाल अब तभी ख़तम होगा जब विक्टर ओरबान चाहेंगे। ये लगभग एक प्रकार का अप्रत्यक्ष एकतरफा राजनितिक तख्ता पलट है।
विक्टर ओरबान ने ये काण्ड एक दिन या एक साल में ही नहीं किया। इन्होने सत्ता पाने और उसे एक तानाशाही में परिवर्तित करने के लिए जो रास्ता अपनाया वो कुछ यूँ था। सबसे पहले ये तत्कालीन सरकारों को कोस कोस कर और राष्ट्रवाद का झंडा बुलंद करके पूर्ण बहुमत से सत्ता में आये। इनका काम करने का तरीका सॉफ्ट तानाशाही वाला है। कोई भी व्यक्ति या संस्था को ये अपना विरोध करने पर हाशिये पर धकेल देतें हैं। इन्होने कई ऐसे कानून बनाये जो दिखने में तो साधारण लगते हैं लेकिन धरातल पर लागू करने में बहुत खतरनाक हो जातें है। (नागरिकता कानून याद कीजिये लगभग वैसे ही) इन्होने सत्ता सम्हाले बाद पूरा संविधान ही बदल डाला और अब तक सात सालों में तमाम बार अपने हिसाब से उसमे अमेंडमेंट कर चुकें है। फिर इन्होने धीरे धीरे सारी संस्थाओ ( न्यायपालिका, पुलिस फ़ौज, नौकरशाही आदि) में अपने पप्पेट बिठाने शुरू कर दिए। फिर इन्होने धीरे धीरे सारे मीडिया हाउस को अपने या अपने निकटवर्ती व्यावसायिक घरानो को खरीदवा दिए। फिर इन्होने सीरिया और मध्य पूर्व के देशो में युद्ध के बाद शरणार्थी संकट का सबसे पहले विरोध किया, और बहुत ही उत्तेजक भाषणों से शरणार्थियों के घुसने का विरोध किया। इन्होने देश के कई बॉर्डर्स में फेंसिंग तक करवा डाली। गलत इन्फॉर्मेशन फैलाने पर सख्त सजाओ का क़ानून बनाया, लेकिन इसका इस्तेमाल इन्होने अपनी आलोचना करने वाले नागरिको, बुद्धिजीवियों और मीडिया के लोगो के खिलाफ करना शुरू कर दिया। जो आज भी जारी है।
स्पष्ट है की इन्हे जर्मनी फ्रांस और अमेरिका के धुर दक्षिणपंथी पार्टियों का समर्थन किया है, जो की खुद राष्ट्रवाद के नाम पर शरणार्थियों के विरोध और देशी-विदेशी पूंजीपतियों के इशारों पर सत्ता में आने के लिए बैचैन रहतें हैं। यही हाल विक्टर ओरबान का है जो की हंगरी, पश्चिमी यूरोप और अमेरिकी पूंजीपतियों के नाम पर खेलते हुए एक अप्रत्यक्ष तानाशाही शाशन स्थापित करके और देशो के लिए भी एक नज़ीर स्थापित कर चुकें हैं।
इस प्रकार कोरोना संकट में आपातकाल लागू करने के पश्चात ओरबान पूरी सत्ता का इस्तेमाल किस किस शोषण और जनता को लूटने की कैसी कैसी आर्थिक नीतियां बनवाने में करेंगे कोई नहीं जानता। अगर ये चालु रहा तो हमें तानाशाही स्टेट का वो पूरा चक्र देखने को मिलेगा जिसमे कई सालों तक हंगरी में इनका रूल होगा, फिर विरोधियों को दबाया कुचला जाएंगे – खून खराबा होगा। कई साल गृहयुद्ध और अंततः हंगरी एक हताश बीमार गरीब और अपने अस्तित्व जूझता देश बन जाएगा। सब अमीर और सत्ता से सम्बंधित लोग देश छोड़ भाग जाएंगे, और अंत में आंसू बहाने और रोने को रह जाएगा हंगरी का गरीब मध्यमवर्ग।
व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है की भारत जैसे विशाल देश में ऐसा संभव नहीं है, मैं ये नहीं बोलूंगा की भारत में कोरोना संकट की आड़ में क्या क्या राजनितिक गुल खिलाएं जाएंगे।
लेकिन उपरोक्त हंगरी के संकट को समझ कर यदि आप अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकें तो सोचियेगा जरूर की इस संकट को किस किस दुर्दांत राजनितिक दुर्र-महत्वाकांक्षाओं और जनता की लूट के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।