कोरोना का कहर : लॉकडाउन नहीं,सरकार विफल रही

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लॉकडाउन !
कोरोना महामारी से पहले शायद ही किसी ने यह शब्द को सुना हो !
इस लॉकडाउन के दौरान ना जाने कितनों ने अपने प्रियजनों को खोया !
एक पल में सैकड़ों मज़दूर अपनी जान से हाथ धो बैठे !
महामारी के कारण कईयों की जान चली गई तो कई भुखमरी की वजह से आत्महत्या कर बैठे !

क्या देश की व्यवस्था इतनी कमज़ोर हो गई है ?

आइए कोरोना के शुरुआती दिनों पर एक नज़र डालें । भारत में कोरोना की कहानी कुछ यूं शुरू होती है, २ जनवरी २०२० को केरल राज्य के एक छात्र कोरोना संक्रमित पाया गया जो भारत में कोरोना का पहला केस साबित हुआ । जानकारी के अनुसार छात्र चीन के वूहान शहर से भारत लौटा था । अब सरकार की यह महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी बनती थी के पुरी सतर्कता से क़दम उठाए ।

22 मार्च को, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने देश भर में जनता कर्फ्यू की घोषणा की और फिर 24 मार्च को, पहली बार 21 दिनों के लिए एक राष्ट्रव्यापी तालाबंदी की गई । यह भारत के इतिहास की एक विचित्र घटना थी । 23 मार्च की रात, जब प्रधानमंत्री ने तालाबंदी की घोषणा की… तो लोगों में अराजकता का माहौल पैदा हो गया । और जैसे ही जनता के कानों में लाॅकडाउन की घोषणा होने की ख़बर पहुंची उन, लोग जीवन की आवश्यक वस्तुओं को खरीदने के लिए उल्टे पाँव बाजारों को दौड़े । एक तरफ यह था कि हम राशन इत्यादि प्राप्त नहीं कर पाएंगे, दूसरी तरफ, यह झटका लगा था कि अब सब कुछ बंद हो गया है, पैसा कहाँ से आएगा ? अर्थात् प्रजा का कोई कल्याण नहीं है ! गरीबों, मजदूर वर्ग और मध्यम वर्ग का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया था ।
यानी जनता हर तरफ़ से परेशान । सरकार का गैरजिम्मेदाराना बयान भी था कि जब तालाबंदी की घोषणा की जा रही थी, तो सब कुछ विस्तार से बताया जाना चाहिए था ताकि लोग भी संतुष्ट हों । आखिरकार, कुछ समय बाद, सरकार ने मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से लॉकडाउन का विवरण जारी किया । लेकिन शायद देर हो चुकी थी… उस समय बाज़ारों में पैर रखने की जगह नहीं थी । सरकार का बयान कुछ ऐसा जैसे ‘ बहुत देर की मेहरबां आते आते ‘

हालांकि, यह लॉकडाउन का शुरुआती दौर था । बाद में जब पूरा देश लॉकडाउन का शिकार हो गया, तो लोगों को अधिक चिंताजनक स्थितियों का सामना करना पड़ा । नियोजित लोगों, प्रवासी कामगारों आदि की आर्थिक स्थिति लगातार बिगड़ती गई । बड़े वित्तीय संस्थानों, कंपनियों को एक रोक सी लग गई । और लोग उदास हो गए जैसे उनके पैरों से ज़मीन खिसक गई हो । यहाँ तक ​​कि ऐसी घटनाएं भी हुईं जिनमें लोग कई दिनों तक भूखे रहे और आखिरकार पूरा परिवार एक साथ आत्महत्या करने पर मजबूर हो गया । इसलिए कहीं न कहीं मजदूरों को अपनी मातृभूमि की ओर कई सौ हज़ार किलोमीटर चलना पड़ा । क्योंकि उनके पास न पैसा था, न नौकरी थी और न ही हमारी सरकार की ओर से कोई प्रभावी व्यवस्था, यहाँ तक कि भोजन और पानी भी नहीं । यह मोदी सरकार के लिए बहुत शर्म की बात थी कि जो मज़दूर देश के विकास के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, वे सैंकड़ों किलोमीटर पैदल चलने और आत्महत्या करने पर मजबूर हैं । सरकार सख्त निर्णय लेने में असमर्थ थी और इसे ठीक से लागू करने में विफल रही ।

वास्तव में, सरकार को परीक्षण की प्रभावी व्यवस्था करनी चाहिए थी । यात्रियों के लिए स्क्रीनिंग की व्यवस्था होनी चाहिए थी । लोगों के लिए और श्रमिकों के लिए जीवन की आवश्यक वस्तु, राशन, अनाज आदि प्रदान की जानी चाहिए थी । लेकिन हमारी सरकार और प्रधानमंत्री तो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की खातिर में काफ़ी व्यस्त थे । यहाँ ग़ौर करने वाली बात यह है कि डोनाल्ड ट्रम्प ने फरवरी में भारत का दौरा किया था जबकि भारत में कोरोना का पहला मामला जनवरी के अंत में ही पाया गया था ।

भारत चीन का पड़ोसी है…. और कोरोना का प्रकोप चीन में लगभग नवंबर से चल रहा था, और यह स्पष्ट था कि कोरोना का भारत पर प्रभाव कभी भी पड़ सकता है ।

क्या हमारी सरकार इससे अनभिज्ञ थी ?

खैर, हम ताइवान का उदाहरण ले सकते हैं… ताइवान भी चीन का पड़ोसी है । लेकिन उन्होंने कोरोना संकट को सबसे अच्छे तरीके से प्रबंधित किया । इसके अलावा, हमारे देश की स्थिति… केरल राज्य ने भी देश भर में कोरोना महामारी के लिए एक मज़बूत रणनीति पर काम किया और सफल रहा । केरल ने शुरू से ही परीक्षण को आगे बढ़ाया और फिर यात्रियों की सामूहिक जांच की । और आपने संगरोध केंद्रों पर भी अच्छी व्यवस्था की । श्रमिकों को राशन आदि प्रदान किया और बहुत कुछ । दूसरे देशों को देखना तो दूर की बात है । यह हमारे देश का एक सफल उदाहरण है ।

क्या प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार को केरल से कुछ सीखना नहीं चाहिए था ?

अब पूरे देश में कोरोना मामलों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है ! इसके बावजूद अब तालाबंदी में ढील दी जा रही है । लोगों के बीच अभी भी कई समस्याएं हैं और हर दिन नई समस्याएं जन्म ले रहीं हैं । स्कूल और कॉलेज, फीस की मांग कर रहे हैं । लोगों के बिजली के बिल अतिरंजित हो रहे हैं… लोगों की तनख़्वाहें कट रही हैं… तो कहीं लोगों को नौकरी से निकाल दिया जा रहा है… देश की अर्थव्यवस्था अपनी अंतिम सांस ले रही है और सरकार को अपनी राजनीति से फुर्सत नहीं है !

सरकार ने बंद के दौरान लोगों के लिए कुछ नहीं किया । जब देश में महामारी का प्रकोप बढ़ रहा था, तब सरकार लोगों को एक दूसरे से सामाजिक दूरी या Social Distance बनाए रखने का निर्देश दे रही थी । लेकिन मध्य प्रदेश में, भाजपा के अपने ही प्रतिनिधि एवं कई नामवर वरिष्ठ नेता खुले तौर पर Social Distancing की धज्जियां उड़ाते हुए दिखाई दिए । और शिवराज चौहान कई सौ लोगों को आमंत्रित करके मुख्यमंत्री की शपथ लेते हुए पाए गए ! ऐसे समय में जब महामारी तेजी से फैल रही थी और दुनिया भर के देश अपने कैदियों को रिहा कर रहे थे, तब हमारी सरकार को निर्दोष छात्रों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने में रूचि थी ! इन सभी समस्याओं से लोगों की प्रवृत्ति को दूर करने के लिए, उन्होंने थाली ताली और दिया का खेल खेला ! हालांकि, डॉक्टरों और स्वास्थ्य विभाग के लिए कोई विशेष व्यवस्था नहीं की गई । कोरोना काल की शुरुआत में, ऐसी खबरें कानों से गुजरी की कई जगहों पर डॉक्टरों के पास PPE पी पी ई कीट्स नहीं थी तो कहीं मास्क और दस्ताने तक मुहैया नहीं थे । हाल ही में, ख़बर ऐसी भी सुनने मिली की दिल्ली के एक अस्पताल के डॉक्टर, नर्स और अन्य कर्मचारी सड़कों पर विरोध में उतर आए । जानकारी के अनुसार, इन डॉक्टरों और कर्मचारियों को अप्रैल महीने से तनख़्वाहें नहीं दि गयी थीं । यह है हमारे कोरोना वारियर्स Corona Warriors का हाल ! इसके अलावा, जब पूरे विश्व में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें कम हुई हैं, तब हमारे देश, भारत में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें आसमान छू रही हैं । पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें लगभग एक महीना तक लगातार बढ़ती रही । सरकार के पास कोई जवाब नहीं है ।

सौ बात की एक बात….
_” लॉकडाउन नहीं हमारी सरकार विफल रही ! “_

अब परेशान हाल जनता सरकार से नाराज़ है । जिसका परिणाम भाजपा सरकार को चुनाव में भुगतना पड़ सकता है । मोदी सरकार ने लोगों का भरोसा तोड़ा और संकट की आड़ में अपना उल्लू सीधा किया !

_” यह सरकार भाजपा की सरकार बन कर रह गई, न कि जनता की ! “_

विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना संकट और लॉकडाउन के बाद, देश को अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा । कारोबार में तेज गिरावट आएगी….. हम एक वैश्विक आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ेगा….. और भी बहुत कुछ । अब सरकार के लिए कई चुनौतियां होंगी । सरकार को स्थिति की समीक्षा करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी समीक्षा समिति का गठन करना चाहिए जो सरकार को एक रिपोर्ट सौंपे ताकि इस रिपोर्ट के अनुसार आगे की रणनीति तैयार की जा सके ।

हमें इन समस्याओं और परिस्थितियों से हतोत्साहित नहीं होना चाहिए । हमें हिम्मत से काम लेना होगा । धैर्य और दृढ़ता दिखानी होगी । और अल्लाह पर पूरा भरोसा रखना होगा ।

” और अल्लाह पर भरोसा रखो। और अल्लाह भरोसे के लिए काफी है । ” ( अल क़ुरआन 33 : 3 )

अच्छे और बुरे हालात अल्लाह की ओर से होते हैं और अल्लाह ही हमारे पालनहार हैं । इंशा अल्लाह, यह समय भी जल्द ही बीत जाएगा ।

लेखक
सिद्दीक़ी मुहम्मद उवैस
( छात्र, समाजिक ज्ञान, मुम्बई

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