2019 का नोबेल शांति पुरस्कार गृहयुद्ध, हिंसा, सीमा-विवाद और साम्प्रदायिकता के गढ़ अफ्रीका हॉर्न के देश इथोपिया के प्रधानमंत्री अबी अहमद अली ने हासिल किया है । पुरस्कार मिलने के बाद अबी अहमद के अनुसार “ये पुरस्कार सिर्फ उनको नहीं बल्कि संपूर्ण अफ्रीका और इथोपिया को मिला है, और आशा है कि ये पुरस्कार पूरे महाद्वीप में शांति स्थापित करने का एक माध्यम बनेगा ।” नोबेल शांति पुरस्कार देने वाली नॉर्वियन कमेटी ने कहा कि “अबी अहमद की शांति के लिये प्रयास करने, पड़ोसी देशों में विवाद सुलझाने और युद्ध जैसी विषमता को समाप्त करने में भूमिका अद्धितीय है ।”
क्या है नोबेल शांति पुरस्कार ?
नोबेल शांति पुरस्कार हर साल उन संस्थाओं , संगठनों और व्यक्तियों को दिया जाता है जिन्होने युद्धों को समाप्त करने और उनकी संभावनाओं को कम करने का प्रयास किया हो या जिन्होनें मानवीय संकट से बचने के लिये सैन्य क्षमता को हानि के रुप में विद्दमान करने में संघर्ष किया हो । ये पुरस्कार एल्फ्रेड नॉबेल की याद में हर साल नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में दिया जाता है । पुरस्कार देने की प्रक्रिया को नॉर्वियन कमेटी द्वारा पूरा किया जाता है । जिसको नॉर्वे की संसद द्वारा गठित किया जाता है । हालांकि, विश्वभर में प्रतिष्ठित इस पुरस्कार पर अक्सर सवाल भी उठते रहे हैं । इसके अलोचकों का मानना है कि ये पुरस्कार अब नॉर्वे सरकार का कुटनीतिक हथियार बन चुका है । जिसे वो राष्ट्र हित के तौर पर प्रयोग करते हैं । लेकिन इन सब आरोपों के बावजूद भी इसकी प्रतिष्ठा में कोई कमी नहीं आई है । हर साल विश्वभर के सैकड़ों लोग और संस्थाऐं इस पुरस्कार को पाने की अभिलाषा करते हैं । यहां ज्ञात रहे कि सिर्फ नॉबेल शांति पुरस्कार ही नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में दिया जाता है, अन्य पुरस्कार स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में दिये जाते हैं ।
इथोपिया और इरेट्रिया का इतिहास व सीमाई विवाद –
इथोपिया और इरेट्रिया के अलग-२ राष्ट्रों के अस्तित्व में आने से पूर्व दोनों का इतिहास रक्तरंजित और युद्धग्रस्त रहा है । ठीक उसी प्रकार की स्थिति जैसी दुर्भाग्यवश अफ्रीका महाद्वीप के अन्य क्षेत्रों की रही है । जब शेष दुनिया आपके प्राकृतिक संसाधनों के साथ मानवीय हितों और भावनाओं का भी व्यापार करने लगे तो स्थिति की भयावता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है । अफ्रीका महाद्वीप के सभी क्षेत्र पूंजीवादी व्यवस्था के लिये दोहन का केन्द्र अब तक इसीलिये बने रहे क्योंकि वहां पूर्व योजना के तहत मानव निर्मित समस्याओं को पैदा किया गया । यही कारण है कि इथोपिया का इतिहास भी इन सब समस्याओं के चंगुल में हजारो सालों तक कैद रहा।
इथोपिया लगभग 1000 ई. तक यूरोप के साम्राज्यवाद का अंश रहा । जब विश्व के अन्य भागों की तरह यूरोपीय ताकतों ने भी इसपर निरंकुशता के साथ शासन किया और हर तरह के मानवीय अधिकारों की अवहेलना की । लेकिन 1890 ई० में इटली का उस समय इथोपिया से प्रभाव समाप्त हो गया, जब इथोपिया की सेना ने इटली को पराजित कर दिया । इस दौरान द्वितीय विश्वयुद्ध के उभार के बाद इथोपिया और इरेट्रिया दो स्वायत्त देश सन 1962 में वजूद में आये । अभी दोनों के बीच मूलभूत सुविधाओं और संसाधनों को लेकर विवाद उपजा ही था कि इथोपिया में साल 1974 में सरकार का तख्तापलट हो गया । ज्ञात रहे कि ये तानाशाही सरकार का अंत था जो पिछले 12 सालों से सत्तासीन थी । इस सरकार के जाने के साथ ही राष्ट्रपति हेली सेलेसी को अपदस्थ होना पड़ा । इस समय एक वामपंथी धड़ा सरकार चलाने के लिये आगे आया । जिसको जनता का अधिक समर्थन नहीं था, इसलिए थोड़े ही सालों मे जनविरोधी नीतियों के प्रेरता के रुप में जाना जाने लगा । स्वाभाविक रुप से जनविद्रोह और सेना ने सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया और इरेट्रिया व इथोपिया की सेना ने दोनों देशों में उपस्थित वामपंथि धड़ों का समाप्त कर नई सरकार बनाने के लिये आह्वान किया । 1974-1989 ई० तक चले इस शासन में दोनों देशों की सरकार ने जनता पर विभिन्न अत्याचार किये । इसके पश्चात इथोपिया में नई सरकार का गठन हुआ और पहली बार देश के इतिहास में लोकतंत्र की हवा का आगमन हुआ । हालांकि, ये भी पूरी तरह लोकतांत्रिक सरकार नहीं थी, क्योंकि विभिन्न राजनीतिक दलों ने एक समझौते के तहत एक ही संयुक्त राजनीतिक मंच का गठन किया था । इस मंच का नाम इथोपिया में ईपीआरडीएफ (इथोपियन पिपूल्स रिवोल्युशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट) जबकि इरेट्रिया में इसका नाम इएलएफ (इरेट्रिया लिब्रेशन फ्रंट) रखा गया । सन 1991 ई० में जब दोनों देशों में नई सरकार सत्ता में आई तो इरेट्रिया ने मांग कि, वो एक राष्ट्र के तौर पर अपनी नई और स्पष्ट पहचान चाहते हैं । ताकि सीमा का निर्धारण करने में आसानी हो और नागरिकों के बीच में किसी अविश्वास का मत ना रहे । 1993 ई० में इथोपिया और इरेट्रिया पूर्ण रुप से अस्तित्व में आये और ना सिर्फ स्वायत्त देश बने बल्कि संयुक्त राष्ट्र महासंघ के दो नये सदस्यों के रुप में भी स्थापित हुए ।
इस बीच दोनों देशों के बीच विवाद की स्थिति उस समय उत्पन्न हो गयी जब बदामे शहर पर दोनों ने अपना अधिकार जमाना शुरु कर दिया । ऐसे में दो नये देशों के उदय के समय से ही युद्ध आरंभ हो गया और ये युद्ध लगभग पांच साल 1998 तक चला, बाद में शांति समझौते के तहत ये निर्णय किया कि बदामे शहर इरेट्रिया का भाग बनेगा । इस युद्ध में लाखों लोग की मौत हुए हुई । 1998 के बाद से ही दोनो देशों में अक्सर झड़पें हुई और कई बार युद्ध की स्थिति भी पैदा होती रही । जिसका अंत लगभग 20 साल बाद ईबी अहमद के प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद संभव हुआ ।
कौन है ऐबी अहमद अली ?
ज्ञात रहे कि इथोपिया में साझा संस्कृति है । यही कारण है कि बाहरी ताकतों ने इस कारक को इथोपिया में सांप्रदायिकता फैलाने का एक उत्प्रेरक के रुप में इस्तेमाल किया । आज इथोपिया कि जनसंख्या का 64% भाग ईसाई जबकि 34% भाग इस्लाम धर्म पर आधारित है ।
युद्ध का दंश भला अबी अहमद को कहां छोड़ने वाला था, वो एक बार वो जीवन के उस मोड़ पर पहुंच गये जहां उन्होनें सेना में जाने का कठोर निर्णय किया । शायद इस अनुभव और पीड़ा ने ही अबी अहमद को युद्ध के मानसिक और शारिरिक हानि की वास्तविकता से रुबरु करवाया होगा । अबी अहमद ने 1998-2000 ई० तक चले इथोपिया-इरेट्रिया युद्ध में बतौर सैनिक भी भाग लिया । युद्ध की समाप्ति के पश्चात अबी अहमद ने फैसला किया कि उनको राजनीति के सहारे से इस समस्या का समाधान ढूंढ़ना चाहिये । इसलिये उन्होनें इस पूरे विवाद के पक्षों और इतिहास को जानने के लिये इसी विषय पर पीएचडी कर डाली । ताकि इस समस्या को जड़ से समाप्त किया जा सके । अबी अहमद ने अपना राजनीति कैरियर 2005 में शुरु किया, जब वो ईपीआरडीएफ में एक सदस्य के रुप में शामिल हुए । उनकी नेतृत्व क्षमता और अध्ययन की रुचि ने उन्हें बहुत जल्द पार्टी के विभिन्न कर्त्तव्यों पर विराजमान कर दिया । इस काल में पूरे इथोपिया में वो जन नायक की हैसियत से जाने लगे । वो 2015 में उस समय सुर्खियों में आये जब उन्होनें भू माफियाओं के शोषण के विरुद्ध और मजदूर हितों की रक्षा के लिए आवाज़ बुलंद किए । इस समय वे इथोपिया के निम्न सदन ‘हाऊस ऑफ रिप्रेजंटेटिव’ के सदस्य भी थे । इसके बाद देश में चुनाव हुए और उन्होने सरकार में सूचना मंत्री के रुप में कार्य किया । हालांकि वे उस समय पार्टी की परंपराओं और नियमों से इतने बंधे थे कि चाहते हुए भी मीडिया की स्वतंत्रता बहाल नहीं कर पाये ।
साल 2018 इथोपिया के इतिहास का सबसे स्वर्णिम और भाग्यशाली साल रहा । जब 15 फरवरी 2018 को तत्कालीन प्रधानमंत्री हेलीरयम डेसलगन ने विरोध प्रदर्शनों के कारण इस्तीफा दे दिया और उसके कुछ महीने बाद ही इथोपिया को नये शासक के रुप मे अबी अहमद का उदय हुआ । ये सिर्फ एक शासक का बदलाव नहीं बल्कि इथोपिया के समाजिक और भौगोलिक सुधारों का नया अध्याय था ।
अबी अहमद के कुछ सुधार एंव उपलब्धियां –
अबी अहमद ने 2 अप्रेल 2018 को सत्ता संभालते ही बड़े पैमाने पर परिवर्तन करना प्रारंभ कर दिया । सर्वप्रथम देश में चल रहे अपातकाल का अंत किया, नागरिकों के बीच में संवाद का माहौल बनाया । देश के सबसे अमानवीय कानून ‘आतंक रोधी कानून’ में संसोधन करते हुए हज़ारों जैल मे बंद कैदियों को रिहा करने के आदेश दिये । बल्कि कई राजनीतिक और विपक्ष के नेताओं से सरकारी अत्याचार के लिये क्षमा मांगी । अफ्रीका की हिंसामय दुनिया में ऐसी करुणा और दया का भाव देखकर लोगों को विश्वास नहीं हुआ । अबी अहमद यहीं नहीं रुके बल्कि पड़ोसी देशों से बेहतर संबंध बनाने के लिये प्रयास शुरु कर दिये । सबसे पहले इरेट्रिया से सीमाई विवाद सुलझाया और बदामे शहर को शांति और सौहार्द के लिये इरेट्रिया को बिना शर्त सहर्ष सौंप दिया । यही नहीं बल्कि अपने राष्ट्र हित में इरेट्रिया से दो बंदरगाहों मेलास व एसेडी को इस्तेमाल करने के लिये समझौता किया । इरेट्रिया में अपना दूतावास खोल हमेशा के लिये युद्ध की संभावनाओं को भी समाप्त कर किया । अबी अहमद ने ऐसे समझौते सिर्फ इरेट्रिया से ही नहीं किये बल्कि अन्य पड़ोसी देशों सोमालिया, जीबूति से भी किये । अबी अहमद ने इससे बढ़कर देश की अर्थव्यवस्था पर ध्यान केन्द्रित किया और कई प्रकार के उधमिता पर आधारित कार्यक्रमों का संचालन किया । अहमद की इस प्रकार की सकारात्मक सोच और दिशा से लगता है कि अब अन्य अफ्रीकी राज्य के लोग भी उन जैसे शासक के मिलने की प्रार्थना आवश्य करेंगे ।
लेखक : Ashfaaq Khan