महत्वकांक्षाओं के आधार पर मोदी-शी की शिखर वार्ता !

भारत के विभिन्न शहरों और चायना के बीच सिल्क व्यापार रोड के माध्यम से 2वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 18वीं शताब्दी के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और धार्मिक विनिमेय का मजबूत केंद्र रहा है । इस तरह से देखा जाय तो इस शिखर सम्मेलन के लिए एक तमिल शहर का चुनाव करने के पीछे एक राजनीतिक मकसद भी है ।

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फोटो गूगल से साभार

इसमें कोई संदेह नहीं है कि महाबलीपुरम का चीन के साथ एक पुराना संबंध है, फिर भी भारत में कई अन्य जगहें हैं जिनका चीन के साथ ऐतिहासिक संबंध हैं। लेकिन उनमें से किसी को भी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मेजबानी के लिए नहीं चुना गया था।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महाबलीपुरम की यात्रा एक राजनयिक अभ्यास था जिसका उद्देश्य चीन-भारत के संबंधों को बेहतर बनाना था । इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु में अपनी पार्टी, भाजपा के प्रभाव को और मजबूत करने के लिए इस अवसर का भरपूर उपयोग किया । जबकि वर्तमान में सत्तारूढ़ अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के साथ गठबंधन में सरकार चला रही है, साथ ही 2019 लोकसभा चुनाव भी इन दोनों पार्टियों ने मिलकर लड़ा ।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि महाबलीपुरम का चीन के साथ एक एतिहासिक संबंध है, इसके अलावा एक तथ्य यह भी है कि भारत में कई अन्य जगहें हैं, जिनके ऐतिहासिक संबंध उत्तरी पड़ोसी मुल्कों में विशेष तौर पर चीन के साथ रहे हैं । उदाहरण के लिए, 5वीं शताब्दी में Fa-Hien जो एक चीनी यात्री थे । वे अपने यात्रा क्रम में भारत के कई शहरों में विशेषकर पाटलिपुत्र (जो अब पटना), बोधगया, बनारस का तीर्थयात्रा के दौरान भ्रमण किया । इसी तरह 7वीं शताब्दी में ह्वेन त्सांग ने बनारस, बोध गया, कन्नौज, कुशीनगर आदि का दौरा किया । लेकिन राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मेजबानी के लिए इनमें से किसी भी स्थान का चयन विरसा दृष्टिकोण से नहीं किया गया था ।
भारत के विभिन्न शहरों और चायना के बीच सिल्क व्यापार रोड के माध्यम से 2वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 18वीं शताब्दी के बीच आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और धार्मिक विनिमेय का मजबूत केंद्र रहा है ।
इस तरह से देखा जाय तो इस शिखर सम्मेलन के लिए एक तमिल शहर का चुनाव करने के पीछे एक राजनीतिक मकसद भी है ।
बड़ी सफलता हासिल करने के लिए लोकसभा चुनाव से पहले ही बीजेपी ने अपनी पूरी ऊर्जा को पश्चिम बंगाल और ओड़ीसा में लगा दिया । 2019 की बड़ी जीत के बाद पार्टी ने केरला के पड़ोसी राज्य तमिलनाडू पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित कर दिया । इन इलाकों में अबतक बीजेपी का सबसे कमजोर परफ़ोर्मेंस रहा है । 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सहयोगी क्षेत्रीय पार्टी एआईएडीएमके को एक सीट पर संतोष करना पड़ा जबकि बीजेपी यहां खाता भी नहीं खोल पाई ।
दूसरे कार्यकाल की शुरुआत मोदी सरकार ने अपने मंत्रिमंडल में दो तमिल लीडर निर्मला सितारमन और एस जयशंकर को अहम मंत्रालय में बड़ी ज़िम्मेदारी दी । मोदी सरकार द्वारा लिया गया यह एक आश्चर्यजनक फैसला था क्योंकि बिना किसी विशेष राजनीतिक अनुभव के देश के अहम मंत्रालय की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी । वास्तव में ये दोनों तमिल मूल के मंत्री वहां के लोगों की भाषा, संस्कृति और उसके मनोस्थिति के काबिल माने जाते हैं । सीतारमन अर्थशात्र के मामले में अनुभवहीन होते हुए भी इस बड़ी ज़िम्मेदारी को उस समय संभाल रही हैं, जबकि इस वक़्त भारतीय इकॉनमी अर्थिकमंदी के सबसे ख़तरनाक दौर से गुज़र रहा है ।
हाल के महीने में कई बहाने से मोदी तमिलनाडू का दौरा कर रहे हैं । तमिलों के बीच अपनी राजनीतिक पैठ जमाने के लिए मोदी भाषण के दौरान भीड़ का अभिवादन तमिल भाषा में करते हैं । इसका जीता जागता सबूत हाल में हुए यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका के दौरे से समझा जा सकता है । जहां भारतीय मूल के अमीरीकी लोगों को रिझाने के लिए हयूस्ट्न के पब्लिक ग्राउंड में 8 भारतीय भाषाओं में लोगों का अभिवादन किया ।
कुछ विश्लेषक मानते हैं कि जिस तरह से पिछले महीने चंद्रयान 2 के चंद्रमा पर उतरने के बाद ISRO के चेयरमेन के सिवम जो कि एक तमिलियन है, को गले लगाया । इससे एक भावनात्मक राजनीतिक संदेश तमिलों के बीच भेजा गया है ।
उनकी सरकार पिछले दिनों 13 सितंबर हिन्दी दिवस के मौके पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा हिन्दी भाषा पर दिए ब्यान की छतिपूर्ति की भरपाई में जुट गई है । जे जयललिता के निधन के बाद तमिल पार्टी एआईडीएमके बहुत कमजोर हो गई है, जो तमिलनाडू की एक बड़ी समस्या है । जबकि महीने बाद प्रतिद्वंदी पार्टी डीएमके का खास नेता के करुणानिधि का भी निधन हो गया लेकिन उसकी पार्टी ने हुए नुकसान की भरपाई कर ली ।
यहाँ की क्षेत्रीय पार्टीयां कभी भी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल नहीं कर सकती है । पिछले लोकसभा चुनाव में कॉंग्रेस, डीएमके और वाम पार्टियों से गठबंधन करके अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया ।
जैसा के 2012 में विधानसभा चुनाव के दौरान एआईएडीएमके से सौदेबाजी के जरिए गठबंधन कर हर स्थिति में चुनाव जितना चाहती थी ।
इस दौरान यूपीए की मदद से स्टालिन डीएमके के नेता के रूप में उभरने में कामयाब हो गए । जबकि लोकसभा चुनाव में देशभर में एनडीए का प्रदर्शन भी अच्छा रहा, लेकिन मुख्यमंत्री Planasami के नेतृत्व एआईएडीएमके का चुनावी प्रदर्शन बहुत खराब रहा ।
जयललिता के निधन के बाद उत्पन्न राजनैतिक शून्यता को बीजेपी भरने का प्रयास कर रही है । लेकिन समस्या यह है कि पांच दशक पूर्व कॉंग्रेस को हराने के बाद कोई दूसरी राष्ट्रीय पार्टी अबतक नहीं उभर पाई है ।

सुरूर अहमद

साभार, नेशनल हेराल्ड

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