मैं तुम्हारी भाषा से प्यार करता हूँ!

वास्तव में अक्षर ज्ञान से रहित समूह ही बोली या भाषा बचाए रखते हैं। वे इसे रचते हैं। जब यह प्रक्रिया एक स्पष्ट आकार ग्रहण कर लेती है और इसमें तमाम सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ रची जा चुकी होती हैं तो व्याकरण और मानकों के द्वारा पढ़ा-लिखा समूह इस पर अधिकार जमाने का प्रयास करता है और फिर शुरू हो जाता है यह बताना कि क्या व्याकरण सम्मत है और क्या नहीं है। व्याकरण सम्मत भाषा तो वही बोल सकते हैं जिनकी पाठशाला तक पहुँच रही है। पाठशाला के बाहर के लोग इस विमर्श से सीमांतीकृत कर दिए जाते हैं।

0
660
पेंटिंग गुलाम मोहम्मद शेख की है

आज 21 फरवरी है। आज विश्व मातृभाषा दिवस है। इस दिन हमें अपनी भाषा से प्यार का इज़हार करना चाहिए, इस दिन हमें दुनिया की सभी भाषाओँ से प्यार का इजहार करना चाहिए। और यह बात इजहार तक ही क्यों, उन्हें सीखने और स्वीकारने के दिन के रूप में भी याद करना चाहिए।

दूसरी भाषा के प्रति हिक़ारत का भाव रखना ठीक बात नहीं है। पूरी दुनिया में यह देखा गया है कि शासक वर्ग की भाषाओं ने गैर शासक वर्ग की भाषाओं के प्रति उपेक्षा भाव दिखाया है। जिन लोगों पर शासन किया गया उनकी भाषाओं को प्रतिस्थपित कर शासक वर्ग की भाषाओं को उन पर लाद दिया गया। भारत में अंग्रेजी शासन ने और अल्जीरिया में फ्रांस के शासन ने यही किया।

भारत में अंग्रेजी शासन के समय प्रिंट कल्चर का विस्तार हुआ। मानव विज्ञानी बर्नार्ड कोह्न का एक निबंध है : The Command of Language and the Language of Command । इसे आप सबाल्टर्न स्टडीज के भाग- 4 में पढ़ सकते हैं। इसमें वे लिखते हैं कि व्याकरणों, शब्दकोषों, निबंधों, पुस्तकों एवं अनुवादों का निर्माण कर अंग्रेजों ने एक नये प्रकार के तंत्र का निर्माण किया जिससे शासन करना आसान हो गया।

जब भारत आजाद हुआ तो भाषा का सवाल आ खड़ा हुआ। अनुसूचित भाषाओं की एक श्रेणी के द्वारा भारत की कुछ भाषाओं को कानूनी दर्जा मिला। शेष को उपेक्षित होने के लिए छोड़ दिया गया। इसके बाद जिन भाषाओं के पास ज्यादा लोग थे उन्होंने भी कानूनी दर्जा प्राप्त कर लिया। कानून से मान्यता प्राप्त भाषाओं में नौकरी मिलने लगी। अंग्रेजी के साथ-साथ कई भारतीय भाषाएं नौकरी करने की भाषा बनीं। इसमें हिंदी भी नौकरी की एक भाषा है।

अब उत्तर प्रदेश पर आते हैं। हिंदी भाषा इस राज्य में सबसे ज्यादा बोली जाती है। प्रोफेसर गणेश देवी के निर्देशन में जो भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण हुआ उसमें प्रोफेसर बद्री नारायण के साथ में उत्तर प्रदेश की भाषाओं को इकट्ठा करने का मौका मुझे भी मिला।

उत्तर प्रदेश के गांवों में भाषा के नमूने इकट्ठे करते समय मैंने देखा है कि किस प्रकार पढ़े-लिखे हिंदी भाषी समूह ने सीमांत भाषा-भाषी समूहों के साथ वही व्यवहार किया है जो अंग्रेजों ने भारतीय भाषाओं के साथ उन्नीसवीं शताब्दी में किया था।

सार्वजनिक जगहों, बसों और रेलों में सीमांत भाषा-भाषी समूह आपस में या तो बात नहीं करते या बहुत धीमे स्वर में बात करते हैं। एक लोकतांत्रिक देश में कोई पूरी आवाज के साथ बात क्यों नहीं कर सकता?

आज हालात यह है कि उत्तर प्रदेश के हिंदी भाषी जन मातृभाषा के नाम पर अवधी और भोजपुरी पर थोड़ा बहुत काम हो रहा है। भोजपुरी को सम्मान दिलाने ने काशी हिंदी विश्वविद्यालय के आचार्यो के साथ विदेशों में बसे भारतीय एवं भारतवंशी प्रयासरत हैं लेकिन ब्रज, बुंदेली और बघेली में ज्यादा प्रगति नहीं हुई है। मध्यप्रदेश में बुंदेली भाषा पर कुछ चेतना आयी है और लोग काम कर रहे हैं। जिन क्षेत्रों में यह भाषाएं बोली जाती हैं, उनमें इन भाषाओं की सास्ंकृतिक समिद्ध का सोता कभी सूखा ही नहीं है। जरूरत उसे सम्मान देने की है।

इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में नेपाली और सिंधी जनों की एक बड़ी संख्या रहती है। सिंधी भाषा को बढ़ावा देने के लिए तो कुछ काम दिल्ली की नेशनल काउंसिल फार प्रमोशन आफ सिंधी लैंगवेजेज कर रही है, नेपाली को अपनी राह बनानी है। 1989 से प्रदेश सरकार ने उर्दू को दूसरी शासकीय भाषा का दर्जा दे रखा है लेकिन इसके बहुत कम नामलेवा बचे हैं।

इन भाषाओं का निर्माण सैकड़ों-हजारों साल में हुआ है। यह काम किसी भी भाषा के किसी प्रोफेसर ने नहीं किया बल्कि जन सामान्य ने किया है।

वास्तव में अक्षर ज्ञान से रहित समूह ही बोली या भाषा बचाए रखते हैं। वे इसे रचते हैं। जब यह प्रक्रिया एक स्पष्ट आकार ग्रहण कर लेती है और इसमें तमाम सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ रची जा चुकी होती हैं तो व्याकरण और मानकों के द्वारा पढ़ा-लिखा समूह इस पर अधिकार जमाने का प्रयास करता है और फिर शुरू हो जाता है यह बताना कि क्या व्याकरण सम्मत है और क्या नहीं है। व्याकरण सम्मत भाषा तो वही बोल सकते हैं जिनकी पाठशाला तक पहुँच रही है। पाठशाला के बाहर के लोग इस विमर्श से सीमांतीकृत कर दिए जाते हैं।

उत्तर प्रदेश में कई सीमांत समूह हैं जो भोजपुरी, अवधी की दुनिया के बीच में कई भाषाओं को बचाए हुए हैं। इन पर उत्तर प्रदेश के विद्वत्जगत ने ध्यान नहीं दिया है। ऐसा इन भाषाओं में नौकरियों के अवसर न होने के कारण है। गंगा-यमुना नदी के किनारे के मल्लाहों की एक भाषा और संख्या पद्धति है जिसे हमने दर्ज किया है।

इसी प्रकार उत्तर प्रदेश के घुमंतू समुदायों की विशिष्ट भाषाएं और संख्या पद्धतियां हैं। इन घुमंतू समुदायों का एक समृद्ध मौखिक साहित्य है। जिसे इन समुदायों ने अपनी अंदरूनी दुनिया के भाषाई परिसरों में बचाए रखा है। पढे लिखे और स्थायी जीवन जीने वाले लोग प्रिंट कल्चर में मुद्रित ज्ञान और भाषा को न केवल अपना ज्ञान और भाषा मान लेते हैं बल्कि इसके द्वारा वे एक संरचनात्मक श्रेष्ठता बोध भी स्थापित करने का प्रयास करते हैं। दूसरी ओर घुमंतू समुदाय अपना ज्ञान और अपनी भाषा अपने गीतों, कथाओं और किंवदंतियों में सुरक्षित रखते हैं। इसमें समुदाय की महिलाएं और वृद्ध एक सांस्कृतिक क्यूरेटर की भूमिका निभाते हैं।

उत्तर प्रदेश के महावतों, नटों, बहेलियों, संपेरों, कंजरो और पारधी समुदाय के लोगों ने अपनी भाषाओं को इसी प्रकार बचाए रखा है। उनकी भाषा में भी वही सब बाते हैं जो दुनिया की अन्य भाषओं में होती है, जैसे यह दुनिया कैसे बनी? इस दुनिया को कौन लोग चलाते हैं? वे जिस स्थान पर इस समय बसे हुए हैं, वहाँ पर कैसे आये? इन बातों पर इन समुदायों में कथाएं सुनायी जाती हैं। इन कथाओं में एक विश्वदृष्टि होती है जिसमें परिवार, समुदाय या दुनिया को बचाने, उसे अधिक समतापूर्ण बनाने, संपत्ति के न्यायपूर्ण वितरण, मित्रता और आपसी भाईचारे की अविभाज्यता के संकेत छिपे होते हैं। इन कथाओं के अंदर इन घुमंतू समदायों के अस्तित्व में बने रहने की जुगत भी छिपी होती है।

आज जब हम मातृभाषाओं के बारे में बात कर रहे हैं तो हमें केवल उन भाषाओं या बोलियों के बारे में बात नहीं करनी है जो दृश्यमान हैं या जो दृश्यमान समूहों द्वारा बोली जाती हैं।

इसे हमारी भाषायी चेतना की अल्प दृष्टि कहें या असहिष्णुता कि हमारा मानस यह मानने को प्रस्तुत नहीं हो पाता कि ठीक हमारे इर्द-गिर्द एक बोली या भाषा सांस ले रही है। उसे सुनने की जरूरत है। उस दुनिया के नागरिकों से परिचय की जरूरत है। हम अपने देश को प्यार करने का दावा करते रहते हैं। जब तक हम उसकी सभी भाषाओं को प्यार नहीं कर पाएंगे तब तक उससे प्यार का दावा कैसे कर सकते हैं?

-रमाशंकर सिंह

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here