[व्यंग्य] हम आज तक टमाटर की ग़ुलामी से बंधे हुए हैं!

देश फिर से 2014 में आज़ाद हो गया है मगर हम आज तक टमाटर की ग़ुलामी से बंधे हुए हैं! शर्म आनी चाहिए हमें कि हम आज तक इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं हुए हैं, जबकि पिछले नौ साल से प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं कि मेरी और मत देखो, आत्मनिर्भर बनो! हम शर्म तक के मामले में उनकी ओर देख रहे हैं कि पहले उन्हें किसी एक बात पर तो शर्म आए, तब हमें भी आने लगेगी!

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हम आज तक टमाटर की ग़ुलामी से बंधे हुए हैं!

विष्णु नागर

भारत के लोगों की यही समस्या है। जब देखो, तब महंगाई और बेरोज़गारी का रोना रोते रहते हैं। आजकल इनकी सबसे बड़ी राष्ट्रीय समस्या महंगा टमाटर है। कुछ अख़बार ‘देशविरोधी’ गतिविधियों को बढ़ावा देते हुए छाप रहे हैं कि टमाटर 100 रुपये से लेकर 140 रुपये तक बिक रहा है। लोग कैसे खाएं? कुछ तो कह रहे हैं कैसे जियें? ये ‘राष्ट्र विरोधी’ पाकिस्तान की ओर नहीं देखते, जहां टमाटर ही नहीं, सब कुछ महंगा है। चीन का पता नहीं मगर हम भारतीयों की बद्दुआओं से वहां भी जल्दी ही टमाटर 200 रुपये किलो हो जाएगा। हमारी एक आंख फूटी है तो उनकी दो आंखें तो फूटेंगी ही फूटेंगी।

टमाटर का हल्ला दरअसल इसलिए भी है कि पिछले साठ साल से कांग्रेस ने भारत के हिंदुओं को अंधेरे में रखा, उन्हें नहीं बताया कि यह विदेशी मूल का है। जैसे मुग़ल बाहर से आए थे, टमाटर भी बाहर से आया था। बाद में आया था। इसीलिए राम, कृष्ण, सीता जी, राधा जी, हनुमान जी सब टमाटर खाने से बच गए और उनका नाम अमर हो गया। इनकी कीर्ति वाल्मीकि, तुलसी, सूर, कबीर, मीरा आदि ने गाई। बड़े-बड़े सम्राटों तक ने टमाटर नहीं खाया। बाबर से लेकर अकबर जैसे बादशाहों तक ने टमाटर नहीं खाया! टमाटर खाए बिना इन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार किया और 2022 तक ये सब आराम से पाठ्यक्रमों में भी जमे रहे! 2023 इनके लिए ज़रूर बुरा साबित हुआ! वैसे भविष्य का कुछ पता नहीं कब ये फिर से एंट्री मार जाएं! और एक हम हैं। हम टमाटर की महंगाई में उलझे पड़े हैं! हमें नरक मिलेगा!

जब इतने बड़े-बड़े लोग टमाटर के बग़ैर अच्छी तरह जिए तो क्या हम टमाटर खाना छोड़ देंगे तो मर जाएंगे? देश फिर से 2014 में आज़ाद हो गया है मगर हम आज तक टमाटर की ग़ुलामी से बंधे हुए हैं! शर्म आनी चाहिए हमें कि हम आज तक इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं हुए हैं, जबकि पिछले नौ साल से प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं कि मेरी और मत देखो, आत्मनिर्भर बनो! हम शर्म तक के मामले में उनकी ओर देख रहे हैं कि पहले उन्हें किसी एक बात पर तो शर्म आए, तब हमें भी आने लगेगी!

जहां तक टमाटर की महंगाई का सवाल है, ये तो सोचो कि इसका असर सब पर बराबर पड़ रहा है! प्रधानमंत्री से लेकर अदना से अदना मंत्री और अधिकारियों के घर भी टमाटर महंगे आते होंगे। उनकी जेब पर भी भारी असर पड़ता होगा मगर उन्होंने तो एक आदर्श नागरिक, एक अच्छे हिन्दू की तरह एक बार भी इसकी शिकायत नहीं की, टमाटर का नाम तक मुंह से नहीं निकाला! उन पर क्या गुज़र रही होगी, यह सोचा कभी हमने? अपना दुःख हमें बड़ा दिखता है, उनका नहीं, जो हमारे लिए देश चलाने का भार स्वेच्छा से उठाते आ रहे हैं! बार-बार जनसेवा करने के लिए तड़प रहे हैं। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री आदि सब अपनी नींद बर्बाद करके आठ-आठ, दस-दस घंटे मीटिंग पर मीटिंग कर रहे हैं। सुबह से शाम तक इधर-उधर दौड़ रहे हैं। एक तरफ़ उनका देशप्रेम का जज़्बा है और दूसरी तरफ़ हमारा टमाटर-प्रेम का जज़्बा! हम कभी टमाटर, कभी प्याज़, कभी कुछ, कभी कुछ को लेकर बैठ जाते हैं! भौतिकता से ऊपर उठ ही नहीं पाते! मोदी जी-शाह जी की राह पर चल ही नहीं पाते, जबकि इस देश के लोग गांधी जी की राह पर चल कर दिखा चुके हैं!

अरे हम मुग़ल बादशाहों को पाठ्यक्रम से हटा सकते हैं तो क्या टमाटर को भोजन से नहीं हटा सकते? और प्याज़ को भी इसी मौक़े पर हटा देना चाहिए! यह भी अक्सर महंगा होता रहता है! वैसे यह तामसिक भोजन में आता है। सच्चा वैष्णव तो प्याज़ की तरफ़ देखता तक नहीं। यह ब्रह्मचर्य-विनाशक है और हिंदू संस्कृति में ब्रह्मचर्य को एक बड़ा महत्व हासिल है! बलात्कारों की जड़़ प्याज़ है, पुरुष नहीं! टमाटर को जेल नहीं भेज सकते तो खाना तो छोड़ सकते हैं, धर्म की रक्षा तो कर सकते हैं! विपक्ष पेट्रोल, डीजल, गैस के नाम पर भी लोगों को भड़काता रहता है, इनको भी जीवन से निकाल देना चाहिए यानि विपक्ष की हवा निकाल देना चाहिए। कश्मीर और मणिपुर समस्या प्रधान हो चुके हैं, इनकी चिंता से भी टीवी और अख़बारों को मुक्त कर देना चाहिए!

आत्मनिर्भर बनना चाहिए। आत्मनिर्भरता के लिए मोदी सरकार ने पृथ्वी लोक और तमाम लोक सजा कर रख दिए हैं, उन्हें देखना चाहिए। कॉमन सिविल कोड की माला जपना चाहिए। लव जिहाद, राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक़ के गीत गाना चाहिए। इस लोक से उठकर उस लोक में जाना चाहिए। टमाटर और प्याज़ को भूल जाना चाहिए! जय श्री राम कहना सीख जाना चाहिए!

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