लेखक : मंजर आलम
*पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा आखिरकार क्यों नहीं?*
बिहार की राजधानी पटना स्थित पटना विश्वविद्यालय देश का एक पुराना और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय है।इसकी स्थापना सन् 1917 ई०में हुई।इसे ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट भी माना जाता है और आज भी यह विश्वविद्यालय बिहार के सर्वाधिक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है। स्थापना से पहले इसके अंतर्गत आने वाले कॉलेज कलकता विश्वविद्यालय के अंग थे।यह पटना में गंगा के किनारे अशोक राजपथ पर अवस्थित है। विश्वविद्यालय का मुख्य भवन दरभंगा हाउस के नाम से जाना जाता है, जिसका निर्माण दरभंगा के महाराज ने करवाया था।इसके प्रमुख महाविद्यालयों में साईंस कॉलेज, पटना कॉलेज,वाणिज्य महाविद्यालय, पटना , बिहार नेशनल कॉलेज, पटना चिकित्सा महाविद्यालय, पटना कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लॉ कालेज पटना, मगध महिला कॉलेज तथा वीमेंस कॉलेज पटना सहित 13 महाविद्यालय है। 1886 में स्कूल ऑफ सर्वे के रूप में स्थापित तथा 1924 में बिहार कॉलेज ऑफ़ इंज़ीनियरिंग बना अभियंत्रण शिक्षा का यह केंद्र इसी विश्वविद्यालय का एक अंग हुआ करता था जिसे जनवरी 2004 में एन आई टी का दर्जा देकर स्वतंत्र कर दिया गया।
राष्ट्रीय राजनीति में कद्दावर माने जाने वाले लोकनायक जयप्रकाश नारायण, लालू प्रसाद, रविशंकर प्रसाद, रामविलास पासवान, शत्रुधन सिंहा, नीतीश कुमार,सुशील मोदी, सरीखे नेता और सामाजिक कार्यकर्ता बिंदेश्वरी पाठक जैसे वरिष्ठ जन पीयू के परिसर से निकले हैं ।खास बात यह कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में वित्तमंत्री रहे यशवंत सिन्हा पटना कॉलेज के प्राध्यापक भी रह चुके हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप के सातवें सबसे पुराने विश्वविद्यालय “पटना विश्वविद्यालय” को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिले, ऐसी आकांक्षा हमेशा से ही हर बिहारी छात्र युवाओं की रही है।सन् 2017 में आयोजित “पटना विश्वविद्यालय शताब्दी समारोह” में उपस्थित प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने इस मांग को प्रमुखता से उठाया था परंतु प्रधानमंत्री मोदी जी इसे अपने शब्दों की जादुगरी के सहारे टाल गए । निःसंदेह पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिलना चाहिए।वैसे गत लोकसभा चुनाव के समय इस आकांक्षा को पूरा करने का आश्वासन कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने दिया था जो न सिर्फ बिहार अपितु देश के लिए हर्ष की बात होती परंतु विडंबना है कि चुनाव में ऐसे मुद्दे का कोई प्रभाव आमजनों पर नहीं पड़ता।चुनाव के समय एक दूसरे दलों पर आरोप प्रत्यारोप, जातिवाद और साम्प्रदायिकता के मुद्दे हावी हो जाते हैं।नतीजतन शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार,महंगाई जैसे मूल मुद्दे गौण हो जाते हैं।यह सवाल काफी अहम है कि इस विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने में आनाकानी क्यों? आखिरकार कब तक इसे केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त होगा?बड़े बड़े कद्दावर नेताओं को शायद इस मुद्दे से कोई सरोकार नहीं यही वजह है कि केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ एनडीए सरकार में बिहार की दो अहम राजनीतिक दल जद (यू०) और लोजपा के गठबंधन के बावजूद भी इस पर कोई तवज्जो नहीं दी जा रही है जबकि भाजपा जद (यू०)और लोजपा के प्रमुख नेता इस विश्वविद्यालय के छात्र रहे हैं। बिहार में कांग्रेस और वाम दलों सहित प्रमुख विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के अलावा सभी राजनीतिक दलों को इसके लिए आवाज बुलंद करनी चाहिए।कुछ छात्र संगठनों ने इस मुद्दे पर आवाज बुलंद की थी परंतु आवश्यकता है कि सभी छात्र संगठन राजनीति से उपर उठकर और एकजुट होकर इस मुद्दे को सरकार के समक्ष पेश करे।चूँकि यह बिहार के गौरव की बात है अतः हर बिहारवासियों को इसके लिए गहन चिंतन करना होगा।