मुद्दों के सामाजिक सरोकार से हटकर मीडिया की अपाहिज मानसिकता समाज को ही वीभत्स बना दे रही है
दिसंबर के महीने से शुरू हुआ कोरोना नाम का वाइरस आज पुरे दुनिया में व्यापक रूप धारण करते हुए डब्लू॰एच॰ओ॰ के अनुसार एक वैश्विक महामारी बन चूका है जिससे अबतक 8 लाख लोग संक्रमित हैं, 40 हज़ार से ज़्यादा लोग मर चुके हैं, दुनिया के सभी देश हाईअलर्ट पर हैं और इसे रोकने के लिए हर मुमकिन प्रयास किया जा रहा हैं। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक़ कोरोना वाइरस द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया के लिए सबसे बड़ी परीक्षा है।
विश्व के साथ साथ हमारा देश भारत भी इस वैश्विक महामारी से निपटने के लिए प्रयासरत है। भारत में अबतक 2000 लोग इससे संक्रमित पाए गए हैं और 53 लोगों की मौत हुई है, भारत में 21 दिनों का संपूर्ण बंदी (लॉकडाउन) किया गया है और ये आदेश है की जो जहाँ है वहीँ रुका रहे जिससे संक्रमण कम फैले और धीरे धीरे इस महामारी पे क़ाबू पाया जा सके। जहाँ केंद्र सरकार कुछ क़दम उठा रही वहीँ राज्य सरकार भी इस महामारी को रोकने के लिए हर मुमकिन प्रयास कर रही है आइसोलेशन वार्डस बनाये जा रहे हैं दिहाड़ी मजदूरों और ग़रीबों की मदद के लिए अनाज और बुनियादी सुविधाएँ घर तक पहुंचाई जा रही है जोकि क़ाबिले तारीफ़ है और हर एक नागरिक इसका समर्थन और आदेशों का पालन भी कर रहा है, अलग-अलग सामाजिक और धार्मिक संगठन ग़रीबों के मदद के लिए आगे आ रहे हैं तो वहीँ दूसरी तरफ समाज को बांटने और नफरत का प्रसार ज़ोरों पैर है।
मामला है बीते दिनों दिल्ली का जहाँ एक धार्मिक संगठन तब्लीग़ी जमाअत के मुख्यालय में सम्मलेन चल रहा था जिसमे देश – विदेश से क़रीब 2-3 हज़ार लोग शामिल थे, बीते दो दिन पहले वहां के लोगों के अंदर कोरोना वायरस का संक्रमण मिला और उस सम्मलेन में शामिल होकर लौटे 6 लोगों की तेलंगाना में मौत हो गयी जिससे पुरे देश में एक हलचल सी मच गयी और मरकज़ निज़ामुद्दीन हर किसी के आकर्षण का केंद्र बन गया और हो भी क्यों न जब पूरा देश हर दिन इससे संक्रमित और इससे मरने वालों का आंकड़ा गीन रहा हो और अचानक इसमें बढ़ोतरी हो जाये और 50 लोगों के मरने का आँकड़ा सामने आ जाये वो भी एसे वायरस से जो कि एक इंसान को दूसरे के साथ रहने से या छूने से फैलती हो, तो ये लाज़िम है की लोग परेशान होंगे ही और चिंता इस बात की भी बढ़ गयी के उस सम्मलेन से लौटे लोग कहाँ कहाँ गए होंगे और कितने लोग उससे संक्रमित हुए होंगे।
लेकिन इससे इतर जिस तरह की बातें मीडिया की तरफ से आ रही हैं वो काफी परेशान करने वाली है के किसी एक धार्मिक संगठन को देश में इस महामारी के फ़ैलाने का सबसे बड़ा कारण बताया जाने लगे और उसपे दिन और रात झूट फैलाया जाए।
यक़ीनन इसमें कोई शक नहीं की इस महामारी के शुरू होने के बाद इस तरह 2 – 3 हज़ार लोगों का एक जगह कार्यक्रम करना बिलकुल ग़ैरज़िम्मेदाराना काम है और नासमझी है जिसके लिए खुद मुस्लिम समुदाय में संक्रमण का ख़तरा बढ़ गया है, लेकिन क्या इस घटना के होने में सिर्फ तब्लीग़ी जमाअत के लोग ही ज़िम्मेदार हैं?
बिलकुल नहीं! बल्कि हमारी पूरी व्यवस्था को इसकी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए के कैसे 30 जनवरी को कोरोना वाइरस का पहला संक्रमण मिलने के बाद भी सरकार सोई रही और विदेशियों का बिना मेडिकल जांच भारत में आना-जाना लगा रहा और जितने विदेशी भारत में शुरूआती महीने में आये थे उनकि जांच नहीं की गयी?
सवाल ये भी होना चाहिए की हमारे देश में अबतक इतने कम जांच केंद्र क्यों हैं जहाँ लोग ख़ुद से जाकर आसानी के साथ अपनी जाँच करवा लें?
सवाल ये भी होना चाहिए की मरकज़ निजामुद्दीन के समीप पुलिस चौकी होने के बावजूद इतना बड़ा कार्यक्रम चलता रहा और संपूर्ण बंदी के तुरंत बाद वहां के लोगों को इमरजेंसी पास के ज़रिये क्यों नहीं निकला गया?
ये बात तो विशेष रूप से तबलीग़ी जमाअत को लेकर हुई जबकि 30 जनवरी से 22 मार्च के बीच नमस्ते ट्रम्प जैसे कार्यक्रम हुए जिसे ख़ुद हमारे प्रधानमंत्री ने आयोजित कराया, जिसमें देश-विदेश से हज़ारों लोगों ने हिस्सा लिया और अब वे लोग देश के किस हिस्से में हैं नहीं मालुम और न ही उन सारे लोगों की जांच हुई, लॉकडाउन के लिए संपूर्ण इन्तेज़ाम नहीं होने के कारण आनंद विहार बस अड्डे पर हज़ारों लोगों की भीड़ लगी, तो मरकज़ निजामुद्दीन के मामले को सिर्फ मुद्दा बना कर कोरोना संक्रमण की पूरी ज़िम्मेदारी थोपना बिलकुल ग़लत है।
इस पूरे प्रकरण से समाज में जो असर जा रहा है वो काफी चिंता का विषय है और इसमें मुख्य धारा की मीडिया का रोल सबसे ज़्यादा सवालिया निशान खड़ा करता है,”कोरोना के जंग में जमाअत का आघात”, “धर्म के नाम पर जानलेवा अधर्म”, “कोरोना जेहाद से देश बचाव”, “निज़ामुद्दीन का वीलेन कौन?”, “मरकज़, शाहीनबाग़ और निज़ामुद्दीन कनेक्शन”, “मौत के मौलाना का वाइरल ऑडियो”, “तबलीग़ी जमाअत का देश से विश्वासघात”, “कोरोना का खलनायक कौन”, “तबलीग़ी जमाअत का आतंक से कनेक्शन” इत्यादि शीर्षक से प्राईम टाइम चलाए जा रहे हैं हद तो तब हो गई जब एक केंद्रीय मंत्री ने यहां तक कह दिया के “तबलीग़ी जमाअत ने तालिबानी जूर्म किया है” जबकि इस मसले को सिर्फ इस हद तक ही देखा जाना चाहिए था की इस बीमारी से निपटने में एक बड़ी चूक हुई है जो की निष्पक्ष जांच का विषय है लेकिन इस मुद्ददे के सिर्फ नकारात्मक पहलू को उजागर करना किसी संगठन के सारे सदस्यों को परेशानी में डाल सकता है और उससे बढ़कर पूरे मुस्लिम समाज के लोगों के लिए एक नकारात्मक धारणा बनने लगती है जहाँ कोई भी किसी को दाढ़ी-टोपी में देखे तो उसे मुजरिम की निगाह से देखने लगे (इसी वजह से हमने दिल्ली दंगा और आए दिनों मोब-लिंचींग जैसी अप्रिय घटनाओं को होते देखा है) जबकि मुस्लिम समुदाय के सभी लोग इस संक्रमण से निपटने के लिए सरकार के साथ क़दम से क़दम मिला कर चल रहे हैं और अधिकांश मुस्लिम संगठन इस बंदी में गरीबों और मजदूरों के लिए खाने पिने का बंदोबस्त कर रहे हैं, और क़रीब-क़रीब सारी ही मस्जिदों में जुमे के साथ साथ 5 वक़्त की नमाज़ भी बंद है और लोग घरों में ही नमाज़ अदा कर रहे हैं।
इस विकट परिस्थिति में हमें एकजुट होकर जाती, धर्म, समुदाय, संगठन और राजनीति से ऊपर उठ कर सोचने और सरकार का सहयोग करने की जरूरत है तभी हम अपने देश भारत को उसकी विभिन्नता में एकता की खूबसूरती को बरक़रार रखते हुए इस वैश्विक महामारी से जंग जीत पाएं।
वरना अगर यह एसे ही चलता रहा तो आने वाले समय में एक ख़ास समुदाय के लोगों से भय और नफरत की बीमारी कोविड-19 से भी ख़तरनाक रूप धारण करेगी जीसका संक्रमण लोगों के मानवीय मानसिकता को पूरे
तरह से ख़त्म कर देगी।
- मुहम्मद आफ़ताब आलम (झारखंड)