“आह-चिराग गुल हो गया” मौलाना सिराजुल हसन की जीवनी

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“आह-चिराग गुल हो गया”
(मौलाना सिराजुल हसन की जीवनी)

 

शिक्षाविदों में इस्लाम को पसंद करने वाले और खास तौर पर तहरीकी हल्कों में यह खबर बहुत अफसोस के साथ सुनी जाएगी कि जमात-ए-इस्लामी हिन्द के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सिराजुल हसन का 2 अप्रैल 2020 को देहांत हो गया! इनकी उम्र 88 वर्ष थी ,कुछ रोज़ पहले ये स्नानघर में फिसल कर गिर गए जिसकी वजह से स्वास्थ्य के गिरते स्तर को देखते हुए डॉक्टरों ने ऑपरेशन करना सही नही समझा ,इसके बाद स्वास्थ्य लगातार गिरता चला गया और आज इनका देहांत हो गया!

‌मौलाना सिराजुल हसन का जन्म (मार्च 1932) में जिला रायचूर कर्नाटक में हुआ! इनके पिताजी का नाम अबुल हसन था, शुरुआती शिक्षा विद्यालय से प्राप्त की इसके बाद इन्होंने अपने घर से अपनी शिक्षा जारी रखी,ये महज 19 वर्ष की उम्र में जमात-ए-इस्लामी हिन्द से जुड़ गए, जुड़ने के पश्चात संगठन के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने थे, सन 1957 में 25 वर्ष की उम्र में संगठन के सदस्य बन गए , अगले ही वर्ष इन्हें कर्नाटक राज्य के प्रदेशाध्यक्ष के रूप में मनोनीत किया गया! इन्होंने (सन1957 -1984 ) के अवधिकाल में लगभग 26 वर्ष तक जमात-ए-इस्लामी हिन्द के कर्नाटक राज्य प्रदेशाध्यक्ष की भूमिका निभाई, इसके बाद इन्हें जमात-ए-इस्लामी-हिन्द के मरकजी सचिव का पदभार संभालने के लिए दिल्ली आने का न्यौता मिला!

सन 1989 के आखिरी व सन 1990 के पहले सत्र में तकरीबन 6 माह के लिए जमात-ए-इस्लामी हिन्द के कार्यवाहक अध्यक्ष के तौर पर अपनी सेवा दी,फिर सन 1990 में इनका चुनाव जमात-ए-इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए हुआ ,इसके बाद वो जमात के 3 कार्यकाल में 13 वर्षो तक जमात के अध्यक्ष रहे!

मौलाना सिराजुल हसन जमात-ए-इस्लामी हिन्द के अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभाने के साथ ,( आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड),(आल इंडिया मुस्लिम मजलिस मुशावरत),बाबरी मस्जिद राब्ता कमेटी, और भी अन्य संगठनों व कमेटियों में महत्वपूर्ण योगदान अदा करते थे, इनके जीवनकाल में मुसलमानों को बहुत सी मुसीबतों से गुजरना पड़ा ,सन 1992 में बाबरी मस्जिद शहीद किये जाने के बाद जमात-ए-इस्लामी हिन्द पर सरकार ने पाबन्दी लगा दी थी,इस दौरान मौलाना ने अपने व्यक्तित्व के अनुसार नरम रुख से इन मसलो को हल करने में अहम किरदार अदा किया!

मौलाना मरहूम को इस्लाम के पैगाम को दूसरों तक पहुंचाने में बहुत दिलचस्पी थी,वह लोगो मे इस्लाम के पैग़ाम को पहुँचाने के लिए बेचैन रहते थे!
देश में रहने वाले अलग-अलग धर्मो के धर्म-गुरुओ से अच्छे सम्बन्ध रखते थे,देश मे अमन-चैन ,शांति व सौहार्द की हवा को कायम रखने के लिए हर सम्भव प्रयासरत थे,इसके लिए इन्होंने “धार्मिक जन मोर्चा” के नाम से प्लेटफार्म तैयार किया था!इनके इन कामो की वजह से इन्हें अलग -अलग मुस्लिम तथा गैर-मुस्लिम संगठनों में इज्जत दी जाती थी!

मौलाना सिराजुल हसन बेहतरीन वक्ता थे,इनकी तकरीरें लोगो को असर कर जाती,इनकी तकरीरों का लोगो पर गहरा प्रभाव पड़ता था, जब वो बोलना शुरू करते तो सुनने वाले स्तब्ध रह जाते थे , इनके एक खूबी यह भी थी जिनसे भी मिलते बड़े ही आदर से पेश आते हर मिलने वाले से चाहे अनजान ही क्यों न हो इतने प्रेम व आदर सत्कार से पेश आते के मिलने वाला इनका मुरीद ही जाता था!

पूर्व अध्यक्ष जमात-ए-इस्लामी हिन्द मौलाना सिराजुल हसन बाहर से आये मेहमानों से भी अदब के साथ मुलाकात करते थे !

मै अलीगढ़ का रहने वाला हूं मेरा इदारा अलीगढ़ में स्थित है , जो इस्लामी तालीम मुहिया करता है, और इसके द्वारा छपने वाली मासिक मैगजीन ( ” तहकीकात-इस्लामी) का सहायक-सम्पादक भी था ,जब भी किसी काम से दिल्ली मरकज जाना होता तो मुझ पर नजर पड़ते ही तुरन्त आगे बढ़ते और गर्मजोशी से मिलते इदारे के लोगो और अलीगढ़ के जानने वालों के समाचार पूछते,खास तौर पर इदारे के उस वक़्त के सचिव मौलाना सय्यद जलालुद्दीन उमरी की जो उन दिनों अलीगढ़ में रहते थे ,इसके बाद “तहकीकात-इस्लामी” में छपने वाले में लेखों पर अपने विचार रखते और इसपर अपनी राय पेश करते थे, मुझे बड़ा आश्चर्य होता की वो इतने व्यस्तता के बाद भी इतनी ज्यादा किताबे और समसामयिक घटनाओं पर भी इनकी नजर होती थी!

मौलाना मरहूम ने मौलाना अबुल लैस नदवी रह. अलै. से जमात का कार्यभार मिला था ,13 वर्ष के कार्यकाल के बाद इन्होंने जमात के अध्यक्ष पद का कार्यभार प्रोफेसर मोहम्मद अब्दुल हक़ अंसारी को सौंप दिया था!

जमात के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद एक बार इनका साक्षात्कार लिया गया!

-: साक्षात्कार लेने वाले ने पहला सवाल किया

साक्षात्कार :- जमात के कार्यभार छोड़ने के बाद आपकी दिनचर्या क्या रहती है?

मौलाना ने बड़े प्यार से जवाब दिया –
“मैंने जमात के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया है,न कि मेरे इस मकसद से जो कि मेरी जिंदगी का मकसद है , घर पर रहते हुए भी मैं किताबे पढता हुँ”
इस दौरान और भी कार्यक्रम बने रहते है! ज्यादातर कर्नाटक के अलग-अलग जगहों पर जाना होता है!

अल्लाह तआला का इरशाद है:- { ईमान लाने वाला में से कुछ ऐसे लोग है, जिन्होने अल्लाह से किये हुए वादे को सच कर दिखाया, इनमे से कोई अपने नजर पूरी कर चुका है और कोई वक़्त आने का इन्तेजार कर रहा है,इन्होंने अपने मिजाज में कोई बदलाव नही किया-( अल हजाब-23 )

मै गवाही देता हूँ कि मौलाना मुहम्मद सिराजुल हसन ने अपनी जिंदगी मकसद तय किया था ,उसे वो अपनी जिंदगी की आखिरी सांस तक पूरा करते रहे ,जब जीवित रहे इस्लाम पर कायम रहे ,जब दुनिया से रुखसत हुए तो ईमान पर उनका अंत हुआ!

【 ऐ अल्लाह तू मौलाना सिराजुल हसन साहब से खुश हो जा,उनकी गलतियों को माफ कर दे, इन्हें जन्नतुल फिरदौश में जगह दे, इनके परिवार वालो सब्र अता कर 】
आमीन या रब्बुल आलमीन

लेखक : डॉक्टर मुहम्मद रजीउल इस्लाम नदवी
अनुवादक : मुदस्सिर अंसारी,सीकर राजस्थान

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