14 फ़रवरी 2018 को हिंदुस्तान के इतिहास में काला दिवस के नाम से दर्ज किया जाना चाहिए है, इस दिन हुई घटना के भयावह पक्ष को सबने देखा है. इस स्मृति को हम न मिटा सकते हैं न ही भुला सकते हैं।
आखिर क्यों?: 14 फ़रवरी 2018 को भारत प्रशासित कश्मीर के पुलवामा में एक आत्मघाती हमला होता है जिसमे भारत की ‘सेंट्रल रिज़र्व पुलिस फ़ोर्स’ (CRPF) के 47 जवान शाहीद हो जाते है। चारों तरफ देश में ग़म का माहौल था, मानों देश अकास्मिक रूप से स्तब्ध हो गया हो. लोगों में आक्रोष बढ़ गया और कश्मीर मुसलमानों पर गुस्सा होना शुरू हो गए, देश के हर कोने में रहने वाले कश्मीरियों पर अत्याचार करने लगे और उन्हें भगाने की कोशिश की गयी।
लेकिन एक सवाल जो मन मे आता है; क्या वाकई देश वासियों को कश्मीर से मोहब्बत है? क्यों कि इस हमलें की ज़िम्मेदारी जैश ए मोहम्मद ने अपने ऊपर ली थी. इस लिए हिंदुस्तानी मुस्लिमों से अपेक्षा की जाने लगी कि वें अपनी देशभक्ति साबित करें, क्योंकि हमलावरों ने मोहम्मद के नाम पर अपना संगठन बनाया हुआ है. कैसी मजबूरी है कि हमला जहाँ भी हो पहले हिंदुस्तान के मुस्लिम अपनी देशभक्ति साबित करने में लग जाते है!
महत्वपूर्ण: लोकसभा 2019 बहुत करीब है, इस हमले के बाद जब हम आगामी चुनावों के परिपेक्ष्य में सोचते हैं, तो महत्वपूर्ण सवाल उभरते हैं;
- पुलवामा हमले में क्या वाकई पाकिस्तान का हाथ है?
- क्या इस हमलें के पीछे मौजूदा सरकार की चाल है ? वोट बैंक की राजनीति के लिए?
- क्या सरकार सेना का इस्तेमाल कर देश की जनता के बीच कश्मीर में मनमानी करना चाहती है.
- क्या कोई विपक्ष की चाल है, ताकि मौजूदा सरकार को नीचा दिखा कर सत्ता हासिल कर सके?
- जब किसी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री या किसी हाई प्रोफाइल पूंजीपति का काफिला निकलता है तो उस मार्ग पर आवागमन एक घण्टे पहले रोक दी जाती है। जब सैनिकों का इतना बड़ा काफ़िला जा रहा था, तो कोई व्यवस्था क्यों नही थी?
- जब ख़ुफ़िया एजेंसी ने पहले ही हमलें की चेतावनी दे दी थी तो इतनी बड़ी भूल कैसे हुई, वो भी कश्मीर में क्यों?
बहुत सारे सवाल हैं जो इस हमले से जुड़े हुए हैं। जनता को और शहीद सैनिकों को एक बार मौजूदा सरकार से ये सवाल जरूर करना चाहिए! क्यों कि किसी ने अपना भाई, तो किसी ने अपना बाप, किसी ने अपना पति खोया है।