कविता – “हे शूद्र!”

महेंद्र सिंह की मार्मिक कविता

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लो पैर तुम्हारे साफ हो गये
अब चप्पलों की जरूरत नहीं तुम्हे
तुम उतर सकते हो सीवर मे बे फिक्र
तुम मरोगे नहीं, तुम्हे
निर्वाण मिलेगा अब
सीधा स्वर्ग मे जाओगे
बिना रोक टोक
विचरण करोगे साहब संग
हवा महल मे

मरे हुए जानवरों की खाल नहीं उतारोगे
अब तुम रेस्तरां के मालिक बनोगे
थानों के थानेदार
मंदिरों के प्रबंधक बनोगे

नहीं रहोगे गावों के दक्षिण टोला मे अब
शहरों की बहुमंजिला मे बसोगे
साहब ने धो दिये है पांव तुम्हारे
अब नहीं फटेंगी एड़ियां तुम्हारी
नही पड़ेगी बिवायी
बदबू नहीं आएगी तुम्हारे शरीर से अब

अब तुम सुअर नहीं बकरा खाओगे
मूस नहीं मुर्गा खाओगे
हगने को होगा टायलेट
नहाने को बाथरूम
मेकडोनल मे बैठ कर
खा सकोगे पीजा बर्गर

संभ्रात स्कूलों मे पढ़ा करेंगे तुम्हारे बच्चे
तुम नहीं दिखोगे अब अजनबी से
अपने ही लोगों से अब डरोगे नहीं
शादियां रचा सकोगे धूम धाम से
घोड़े पर सवार होगा दूल्हा बेफिक्र
पानी पी सकोगे किसी भी कुओं से नल से

जिंदा नही जलाया जाएगा अब तुम्हे
बलात्कार का शिकार नहीं होंगी
तुम्हारी बेटियां बीबियां बहुएं
अब तुम भी जजमानी कर सकोगे !
क्योंकि अब चरण हो गये हैं साफ तुम्हारे
जहां धरोगे पवित्र हो जाएगी वो धरा !

और हां !!
मैला ढ़ोना आध्यात्मिक सुख देता है
और वो तुम्हे ही करते रहना है !

रचना : महेंद्र सिंह

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