21वीं सदी के हिंदुस्तानी मुसलमान का खत!

आज आप देखो कि हम कहां पहुंच गए हैं और कहां खड़े हैं? एक खौफ की ज़िंदगी जी रहे हैं और हमारा भरोसा अब टूट चुका है लेकिन इस बार का यह खौफ और ज़ख्म पहले की तरह हमने पैदा नहीं किए हैं, बल्कि जिन लोगों का आपने भरोसा दिलाया था, उन्होंने खौफ पैदा किया है। जिन मस्जिदों की मीनारें उचक-उचककर सवाल कर रही थी और पूछ रही थी कि तुम कहां जा रहे हो, आज वही मस्जिदें खौफ के साए में खड़ी हैं और इंसाफ की मुन्तजिर (इंतज़ार में) है कि कोई उनको उनका हक दिला सके।हम इस मुल्क से ना तो उस वक्त भागना चाहते थे और ना आज भागना चाहते हैं लेकिन हमें भगाने की कवायद शुरू हो चुकी है।

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कार्टून-शारिक़ अहमद

Manzar Alam ✒….

जनाब मौलाना अबुल कलाम आज़ाद,
अस्सलामु अलैकुम।
मैं 21वी सदी के हिंदुस्तान का मुसलमान हूं। आपकी आज़ादी के बाद की जामा मस्जिद पर दी गई तकरीर (भाषण) को पढ़ा और आज की अपनी हालत को देखा। जिस हिंदुस्तान में आपने हमारे अजदाद (पूर्वज) को रुकने के लिए कहा था, आज उसके हालात बहुत बदल चुके हैं।हमारे दिलों में आज भरोसे की बजाए शक पैदा हो चुके हैं। हमारी आवाज़ को कोई सुनने वाला ही नहीं है। इस वतन में रहकर भी गैर वतनों जैसी ज़िन्दगी गुज़ारने पर मजबूर हो गए हैं।आपको हमारे अजदाद (पूर्वज) की कारगुज़ारियों से गिला था, आपका एहसास ज़ख्मी और दिल सदमे में था। आज हमें आपसे शिकायते हैं। हमारे एहसास, जिस्म और दिल सब ज़ख्मी हैं। आप उनसे पूछते थे कि उन्होंने कौन सी राह अख्तियार की थी लेकिन आज लगता है कि उन्होंने सही राह अख्तियार की थी।
आज आप देखो कि हम कहां पहुंच गए हैं और कहां खड़े हैं? एक खौफ की ज़िंदगी जी रहे हैं और हमारा भरोसा अब टूट चुका है लेकिन इस बार का यह खौफ और ज़ख्म पहले की तरह हमने पैदा नहीं किए हैं, बल्कि जिन लोगों का आपने भरोसा दिलाया था, उन्होंने खौफ पैदा किया है। जिन मस्जिदों की मीनारें उचक-उचककर सवाल कर रही थी और पूछ रही थी कि तुम कहां जा रहे हो, आज वही मस्जिदें खौफ के साए में खड़ी हैं और इंसाफ की मुन्तजिर (इंतज़ार में) है कि कोई उनको उनका हक दिला सके।हम इस मुल्क से ना तो उस वक्त भागना चाहते थे और ना आज भागना चाहते हैं लेकिन हमें भगाने की कवायद शुरू हो चुकी है। आज हमें हाकिमाना इक्तेदार के मदरसे से वफादारी का सर्टिफिकेट हासिल कर उसको जगह-जगह दिखाने की ज़रूरत आ गई है। जिस जमुना के किनारों पर हमारे काफिलों ने वजू (नमाज़ पढ़ने से पहले हाथ पैर धोना) किया था, आज उसी जमुना के पानी को हमसे छीनने की कोशिश हो रही है।जिस दिल्ली को हमारे खून से सींचा गया था, आज उसी दिल्ली में रहते हुए हमें खौफ महसूस हो रहा है। हमें यह एहसास दिलाने की कोशिश की जा रही है कि अब यह मुल्क हमारा नहीं रहा और हम इसके नहीं रहे। अब इस मुल्क की तकदीर के फैसले हमारी आवाज़ के बगैर ही पूरे हो रहे हैं। हद तो यह है कि हमारी ही तकदीर का फैसला हमारी आवाज़ के बगैर पूरे हो रहे हैं।जिस दो कौमी नज़रिए (दो देशों की थ्योरी में विश्वास करना) की आपने मुखालिफत (विरोध) की थी और उसको मर्ज़-ए-मौत करार दिया था, आज इस मुल्क की हुकूमत ने दोबारा उस नज़रिए को ज़िंदा कर दिया है। आज की हुकूमत ने हमारे अजदाद (पूर्वज) के वहम को सही साबित कर दिया है और आपके भरोसे को चकनाचूर कर दिया है। दो कौमी नज़रिए वाले लोगों के भरोसे को सही साबित कर दिया है।
हमें इस मुल्क में दूसरे दर्जे़ का शहरी बनाने की कवायद शुरू हो चुकी है। हमसे हमारे बुनियादी हुकूक छीनने की बात की जा रही है। हमें हिजरत (अपना देश छोड़कर दूसरे देश में बसना) के नाम पर फरार की ज़िंदगी या फिर कैद की ज़िन्दगी देने के मंसूबे बनाए जा रहे हैं।इंसाफ के सभी दरवाज़े हमारे ऊपर बंद करने की बात हो रही है और यह भी कहा जा रहा है कि हमारे अजदाद अपना हिस्सा ले चुके हैं, अब इस मुल्क में हमारा कोई हिस्सा नहीं है। क्या इसी दिन के लिए हमें आपने यहां रुकने पर मजबूर किया था? क्या यही इस मुल्क में हमारा मुस्तकबिल था? आज आपको गलत साबित किया जा रहा है और हालात देखकर लगता है कि आप हकीकत में गलत थे, क्योंकि आज दो कौमी नज़रिया दोबारा ज़िंदा हुआ है और इस मुल्क को फिर से मज़हब के नाम पर बांटने की शुरुआत हो चुकी है।वह दूसरा गिरोह आज सच्चा साबित हुआ है और आप गलत साबित हुए हैं। आपको इस बार हमने नहीं, बल्कि जिन लोगों पर आपने भरोसा किया था उन्होंने गलत साबित किया है। इस मुल्क की हुकूमत ने गलत साबित किया है। खैर, आज मैं भी मानता हूं कि आप गलत थे।

 

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