चतुर बनिया कौन है? गाँधी या शाह !

वर्तमान कानूनों में जो कमियां और कोताहियाँ हैं उनको दूर करने के लिए विपक्ष को भी विश्वास में लेकर एक प्रयत्न किया जाना चाहिए लेकिन इस मामले को रफादफा करने के लिए पुलिस के हाथों चार आरोपियों को मौत के घाट उतार दिए गए।

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कार्टून-शारिक़ अहमद

-डा०सलीम खान 📝…
लोकसभा चुनाव में दूसरी बार अपार सफलता के पश्चात प्रधानमंत्री जी की समझ में यह बात आ गई कि अब अच्छे दिन कभी नहीं आएँगे।इसलिए कि यह उनके बस की बात नहीं है तो उन्होंने उसका जिक्र ही छोड़ दिया।उनको यह अंदाज भी हो गया था कि पिछले पाँच सालों में जो बीज बोया गया है और जिसको खुन पसीना एक करके सींचा गया है अब उस तरह की फसल लहलहाने वाली है और देश के अंदर बहुत बुरे दिन आने वाले हैं।इसलिए उन्होंने बहुत सोच समझकर पूर्व गृहमंत्री राजनाथ सिंह जी को उनके पद से हटाकर अमित शाह को गृहमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी,इसलिए कि एक चतुर बनिया ही देश के अंदर पैदा होने वाले समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए बिला झिझक झूठ बोल सकता है।किसी समुदाय का हर नागरिक न सभ्य होता है और न ही असभ्य,लेकिन चूंकि बनिया कौम आम तौर पर व्यवसाय प्रधान होता है इसलिए उसे ग्राहक का ध्यान अपने सामान की खराबी से ध्यान हटाने की कला में निपुण हो जाता है।
ग्राहक को शीशे में उतारने के लिए के झूठ बोलने की कला में भी माहिर हो जाती है।तत्काल सत्तारूढ़ पार्टी को ऐसे लोगों की सख्त जरूरत है और अमित शाह को इसलिए गृहमंत्री बनाया गया है फलतः वो अपना काम दृढ़तापूर्वक कर रहे हैं।इसके बावजूद यदि देश की जनता झाँसे में न आए तो यह उनका दोष नहीं ब्लकि उस सामान की कमी है जो उन्हें बेचने के लिए दिया गया है।संयोगवश जिस फैक्ट्री से माल बनकर आ रहा है उनके मालिकों में भी अमित शाह का नाम शामिल है।
हैदराबाद में डाक्टर की सामुहिक दुष्कर्म और हत्या ने फिर से एक बार देश को हिला कर रख दिया है।समस्त देश के महिलाओं के अंदर अपनी सुरक्षा को लेकर एक एहसास जाग उठा है।बगैर जाति धर्म के भेदभाव देश के पचास प्रतिशत आबादी के अंदर अपने इज्जत और असमत के हवाले खौफ व आतंक एक गंभीर समस्या है।यह मामला चूंकि लोकसभा अधिवेशन के दौरान पेश आया इसलिए इस पर सांसदों में विस्तार से बहस हुई और होनी भी चाहिए! वर्तमान कानूनों में जो कमियां और कोताहियाँ हैं उनको दूर करने के लिए विपक्ष को भी विश्वास में लेकर एक प्रयत्न किया जाना चाहिए लेकिन इस मामले को रफादफा करने के लिए पुलिस के हाथों चार आरोपियों को मौत के घाट उतार दिए गए।इस सम्बंध में पुलिस का ब्यान विश्वास से परे है कि जेल से आने वाले चार दुबले पतले आरोपियों ने दस पुलिसकर्मियों से बंदूक छीन कर भागने की कोशिश की।इस एनकाउंटर पर भी सदन में बहस होनी चाहिए।इसके लिए अगर अदालत की सुस्त रफ्तारी जिम्मेदार है तो उसके कारणों का पता लगाकर इंसाफ मुहैया कराने का प्रयत्न होना चाहिए थे लेकिन गृहमंत्रालय ने अचानक पड़ोसी देशों में रहने वाले अल्पसंख्यकों का राग अलापना शुरू कर दिया हालांकि वह तो विदेश मंत्रालय का काम है।
गृहमंत्रालय की यह बुनियादी जिम्मेदारी है कि वह अपने देश में रहनेवाले नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करे।उत्तरप्रदेश में हालिया दिनों बीजेपी की सरकार है उन्नाव के सांसद साक्षी महाराज और विधायक कुलदीप सेंगर का संबंध भी बीजेपी से है।उसके बावजूद वहाँ एक *प्रेमिका* का सामुहिक बलात्कार होता है।वह अदालत में गवाही देने के लिए अपने घर से निकलती है तो उसके दरवाजे पर उसे जिंदा जला दिया जाता है।वह बेचारी एक किलोमीटर पैदल जाती है लेकिन कोई उसकी मदद के लिए नहीं आता अंततः जब वह अस्पताल में दम तोड़ देती है तो मुख्यमंत्री उन्हें संवेदना प्रकट करने भी नहीं जाता।उसके गाँव में खौफ व दहशत का यह आलम है कि पड़ोस के लोग उनकी अंत्येष्टि में शामिल नहीं हो पाते।पूछने पर पता चलता है कि हम हत्यारों को नाराज नहीं कर सकते क्योंकि हमें यहीं रहना है ।पीड़िता की बहन का कहना है कि हम दोबारा अपनी बहन को जलाने की हिम्मत नहीं कर सकते इसलिए अपने खेत में दफना रहे हैं।इसके बावजूद प्रदेश सरकार से रिपोर्ट नहीं लिया जाता और न ही सदन के विपक्ष में इस पर हंगामा ही होता है।क्योंकि वहाँ तो नागरिकता संशोधन बिल पर चतुर बनिया ने पहले ही सबको उलझाकर रख दिया है।गृह मंत्रालय की जिम्मेवारी देश से डर का माहौल खत्म करके इंसाफ दिलाने की है या फिर दूसरे देश में बसने वाले अल्पसंख्यक समुदाय पर अपनी राजनीति चमकानी है? यह अहम सवाल आज न तो कोई पूछता है और न ही कोई जवाब देता है।निर्भया के दुष्कर्मियों का जिंदा रहना अगर दिशा की कत्ल का जिम्मेदार है तो बीजेपी के विधायक सेंगर का जिंदा रहना उन्नाव बलात्कार व हत्याकांड का जिम्मेदार क्यों नहीं?
ढाई साल पहले रायपुर में अपनी पार्टी के सभा को संबोधित करते हुए अमित शाह ने कहा था कि गांधी जी एक चतुर बनिया थे।महात्मा बुद्ध को राष्ट्रपिता मानने वालों ने इसे गांधी का अपमान कहा था।लेकिन अब समय आ गया है अमित शाह जी को चतुर बनिया कहकर सम्मानित करने जाए।ढाई साल पहले कौन जानता था कि प्रज्ञा ठाकुर को दिग्विजय सिंह के सामने खड़ा कर जितवा दिया जाए जिनके अंदर राष्ट्रपिता जैसी हस्ती के प्रति ईर्ष्या और घृणा भरा हो।इन कृत्यों पर जब किरकिरी होती है तो प्रधानमंत्री जी उसे मन से माफ नहीं करने की बात करते हैं पर जैसे ही मामला शांत होता है उसे राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में शामिल कर लिया जाता है।पुनः उनके बिगड़े बोल जब गोडसे की तारीफ कर बैठता है तो दिखावे के लिए सुरक्षा परिषद से बाहर का रास्ता तो दिखा दिया जाता है पर पार्टी से नहीं निकाला जाता है।इस तरह के दोहरे चरित्र का प्रदर्शन कोई चतुर बनिया ही कर सकता है।यही कारण है कि गृहमंत्री बनाए जाने के बाद भी शाह जी को पार्टी का अध्यक्ष बनाए रखने का अमल जारी है।

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