भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति को जोरदार टक्कर देता नीतीश कुमार की समाजवादी विचारधारा

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देश की राजनीति में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हर दिन एक नए सियासी फैसले बदल रहे हैं जिससे केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन में बेचैनी बढ़ती जा रही है। गुजरात की सांप्रदायिक राजनीति में तपे – तपाए 56 इंच कद काठी के केंद्र की सत्ता में कब्जा जमाए दोनों नेताओं की सरपरस्ती में संघ से लेकर राजनीतिक एवम् गैर राजनीतिक बुद्धिजीवियों की एक बड़ी खेप नीतीश कुमार के हर एक राजनीतिक मूव को बारीकी से अध्ययन कर रही है। इसके अलावा कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार के अधीनस्थ सरकारी संस्थाएँ CBI, ED, ACB, NIA की कई टीम बिहार को अस्थिर करने के लिए अपनी ओर से जोर आजमाइश कर रही है।

अगस्त में एनडीए गठबंधन से अलग होकर नीतीश कुमार लागातार विपक्ष के बड़े नेताओं से मिल रहे हैं। केंद्रीय स्तर पर एनडीए गठबंधन के समानांतर फिलवक्त नीतीश कुमार की अगुआई में विपक्षी दलों के नेताओं की सुगबुगाहट चल रही है। केंद्र की राजनीति में नीतीश कुमार कितना फिट बैठते हैं, इस पर अभी दावा करना थोड़ी जल्दबाजी होगी। हां, ये बात ज़रूर है कि नीतीश कुमार की चहलकदमी से भाजपा के शीर्ष नेताओं में खलबली मच गई है। भाजपा के प्रदेश के नेता भी नीतीश कुमार के खिलाफ बहुत आक्रामक दिखाई नहीं दे रहे हैं। बिहार भाजपा के शीर्ष नेता गिरिराज सिंह हमेशा सांप्रदायिक ब्यान देने के आदि रहे हैं!वे भी आजकल रोजी-रोटी और रोजगार से जुड़े मुद्दे पर बात कर रहे हैं! शिक्षा विभाग में व्याप्त करप्शन पर कुछ नहीं बोल पा रहे हैं बल्कि शिक्षा में व्यापक सुधार एवम् शिक्षकों के नियमित वेतन और पटना में छात्रों पर किए गए लाठीचार्ज पर बात कर रहे हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि नीतीश कुमार अपने मुख्यमंत्रित्व काल का सबसे बड़ा हिस्सा एनडीए गठबंधन के साथ सरकार में रही है। इसलिए इस दौरान अगर सरकार में भ्रष्टाचार हुआ तो इसके भागीदार दोनों तरफ के नेता होंगे, अकेले जदयू के नेता या खुद नीतीश कुमार तो नहीं होंगे। अगर भ्रष्टाचार हुआ तो इसकी रेवड़ी भी सबके जेब में बराबर बराबर बटा है। छात्र राजनीति से लेकर अब तक सुशील कुमार मोदी, नीतिश कुमार के बगल में बैठे हैं। इसलिए जूनियर मोदी भी नीतीश कुमार पर खुलकर बोल नहीं पा रहे हैं। रही बात बिहार भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल की तो, ये गठबन्धन टूटने के सदमे से उबर नहीं पाए हैं। कहा जा रहा है कि बिहार में इस समय एंटी करप्शन ब्यूरो के अलावा ED और सीबीआई की कई टीम भी नीतीश कुमार के खिलाफ सबूत हासिल करने में जुटी है लेकिन अभी तक कुछ हाथ नहीं लगा है।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का ताज़ा बयान जो उन्होंने सीमांचल के अररिया में पत्रकारों के सवाल पर जवाब दिया कि सीमांचल में विकास में बड़ी समस्या जन्म दर की वृद्धि है। राजनीतिक विरोधियों में इस बयान को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सीमांचल आगमन से जोड़कर देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि इस ब्यान के जरिए अमित शाह के लिए बिहार भाजपा द्वारा सांप्रदायिक पिच की तैयारी चल रही है। ताकि भाजपा 2024 का लोकसभा चुनाव की तैयारी नीतीश कुमार के खिलाफ सांप्रदायिक माहौल बना कर किया जा सके।

बेगुसराय, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर, वैशाली, भोजपुर जैसे मध्य बिहार के जिले शुरू से ही बिहार का टॉप क्राइम क्षेत्र रहे हैं।आंकड़ों के मुताबिक जातिय संघर्ष इन इलाकों में ज्यादा रहा है। हाल में हुए बेगुसराय सीरियल गोली कांड की स्टोरी को भी भाजपा नेता ने सांप्रदायिकता की तरफ इशारा किया था। इसपर सांप्रदायिक ब्यान गिरिराज सिंह ने भी दिए लेकिन बेगुसराय एसपी द्वारा इस घटना पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के बाद जो चार नाम सामने आए उसके बाद से फिर एक बार भाजपा नेता बैकफुट पर आ गए। इस गोलीकांड को लेकर जो रणनीति भाजपा ने तैयार किया था वो अगले 48 घंटे में ही बिखर गया जबकि पुलिस अधीक्षक द्वारा दी गई क्राइम थ्योरी में भी स्पष्टता की घोर कमी थी। फिर भी भाजपा कमजोर पड़ गई।

मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के वर्तमान सहयोगी उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव भी इस बार भाजपा को कोई मौका नहीं देना चाहते हैं। वे बहुत संभलकर काम कर रहे हैं। केंद्र की सत्ता के सहयोगी माने जाने वाले सरकारी संस्था ED, CBI, ACB को प्रेस के जरिए लगातार चैलेंज कर रहे हैं। बल्कि बड़े अक्रामक होकर बयान दे रहे हैं। पिछले दिनों उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव द्वारा बिहार का एक मात्र सबसे बड़ा अस्पताल PMCH का 12 बजे रात में औचक निरीक्षण कर वहां के अधिकारियों को जो फटकार लगाई वो सराहनीय था। निरीक्षण के दौरान तेजस्वी यादव ने देखा कि किस प्रकार यहां के अधिकारी अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाह हैं। कई अधिकारी अपने ड्यूटी से नदारद थे। पता चलते ही अधिकारी दौड़ते भागते हुए अपने कार्यालय आते हुए दिखाई दिए। PMCH का महत्वपूर्ण टाटा वार्ड के मुख्य द्वार के पास डेड बॉडी कई घंटे से पड़ा हुआ था, उपस्थित लोगों की शिकायत के बावजूद भी अधिकारी सुन नहीं रहे थे। हॉस्पिटल के वार्ड के नजदीक आवारा कुत्तों का जमावड़ा देखकर तेजस्वी यादव भड़क उठे। उसके बाद वहीं प्रेस ब्यान में उप मुख्यमंत्री ने साफ-साफ अधिकारियों से कहा हमें इस तरह की लापरवाही बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं है। वहीं अगले कुछ घंटो में ही तेजस्वी यादव ने बिहार के तमाम स्वास्थ्य अधिकारियों की मीटिंग बुलाई और अधिकारियों से बेहतर स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के लिए कहा।

लेकिन इस सब के बावजूद भाजपा और उसके सेनापति अपनी पुरानी सांप्रदायिक नजरिए पर सवार होकर बिहार की राजनिति को साधना चाह रही है। इसकी तैयारी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के 23 और 24 सितम्बर को पूर्णियां और किशनगंज के आगमन पर हो रही है। हालांकि अमित शाह का यह दौरा नीतीश कुमार और भाजपा गठबन्धन के दौरान ही प्रस्तावित हुआ था। अब ऐसा माना जा रहा है कि अमित शाह के इस आगमन के बाद से ही 2024 लोकसभा चुनाव के लिए अपनी राजनीतिक पिच तैयार करेगी। स्वाभाविक है कि भाजपा के हिन्दू-मुस्लिम नैरेटिव के लिए पूरी तरह फिट बैठता है। ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार के भाजपा से अलग होने के बाद यूपी की तरह कैराना का खोज कर लिया गया है।

इन इलाकों में भाजपा, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अलावा आरएसएस भी अपनी मजबूत पकड़ बनाने के लिए पिछले तीन दशकों से कोशिश कर रहा है लेकिन अभी तक कोई ठोस कामयाबी हासिल नहीं हुई है। पहली बार भाजपा का कोई बड़ा नेता इस इलाके में राजनीतिक सेंधमारी का काम करने जा रहा है और उनके निशाने पर अपने ही पूर्व सहयोगी नीतीश कुमार हैं। इन इलाकों में आज भी नीतीश कुमार मजबूत हैं। अब देखते हैं कि इन इलाकों में भाजपा किस तरह इस क्षेत्र से लोकसभा चुनाव-2024 हेतु भाजपा के राजनीतिक पिच के लिए ज़मीन तैयार कर पाता है।

-✍️शाहिद सुमन

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