इस्लाम दया का धर्म है। और यह सभी मानव जाति के लिए है (कुरान 34:28)। इस्लाम की यह दया स्वयं अल्लाह सुबहानहु व त’आला की दिव्य विशेषता में निहित है, जो सबसे अधिक कृपालु, सबसे ज्यादा दयावान (अर-रहमान और अर-रहीम) है। अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को मानवजाति पर रहम के तौर पर भेजा गया (कुरान 21:107)। इस्लाम का संदेश दया से भरा है। यह मनुष्य को अपने निर्माता, अपने साथियों और अपने आसपास के लोगों के साथ शांति स्थापित करना तथा शांति से रहना सिखाता है। इसलिए इस धर्म का नाम इस्लाम अर्थात शांति पड़ा।
इस्लाम में ये शांति सिर्फ इसके मानने वालों के लिए नहीं है। इस्लाम जो शांति चाहता है, वह सभी मानव जाति के लिए है। इस्लाम के हर पहलू, कर्म से लेकर उपदेश तक, का उद्देश्य शांति और न्याय को बनाए रखना है ताकि यह अमन सभी तक पहुंचे।
मानव जाति के लिए अल्लाह द्वारा दिया गया जीवन-मार्ग शरीयत द्वारा सन्निहित है (जीवन जीने का पूर्ण तरीका, इसे ‘फ़िक़्ह’ के साथ भ्रमित नहीं करना चाहिए, जो केवल शरीयत का एक भाग मात्र है और न कि सम्पूर्ण शरीयत है)। शरीयत इंसानों के लिए रहमत है। इब्न अल-क़ैय्यम ‘इलाम अल-मुवाक़ीन’ में इसे सुंदर रूप में प्रस्तुत करते हैं:
“शरीयत न्याय, दया, ज्ञान और भलाई का नाम है। इस प्रकार, कोई भी निर्णय जो न्याय को अन्याय से, दया को इसके विपरीत से, भलाई को शरारत से, या ज्ञान को बकवास से बदलता हो, एक ऐसा निर्णय है जिसका शरीयत से कोई संबंध नहीं हो सकता है, भले ही किसी व्याख्या के अनुसार ऐसा होने का दावा किया गया हो”
इस्लामी जीवन शैली की सबसे बुनियादी शिक्षा बेहतर इंसान बनना है। अपनी सीमाओं की कैद से खुद को ऊपर उठाना और खुद को शुद्ध करना ताकि हम बेहतर बन सकें (कुरान 64:16)।
इस दया-शांति-सुधार मिशन के कुछ हिस्सों में से एक अच्छा व्यवहार करना है। हमारा व्यवहार और आचरण, हमारे आदर्शों के संकेतक व परावर्तक हैं और वे हमारे आदर्शों और मूल्यों को व्यक्त करने के सबसे शक्तिशाली और प्रभावी उपकरण हैं। इसलिए, इस्लाम हमें सर्वोत्तम शिष्टाचार और व्यवहार करना सिखाता है। अल्लाह अपने रसूल को उदात्त आचरण और व्यवहार वाले व्यक्ति के रूप में वर्णित करता है (कुरान 68:4)। पैगंबर ने फरमाया, “अल्लाह ने मुझे नबी के रूप में भेजा है ताकि मैं चरित्र की पूर्णता, शिष्टाचार और व्यवहार में श्रेष्ठता का प्रदर्शन कर सकूं” (मुवत्ता इमाम मालिक, मुसनद अहमद, सही बुखारी)। अल्लाह और उसके पैगम्बर के अनुयायी के रूप में हम पर अनिवार्य है कि हम इन आदेशों का पालन करें।
इस्लाम को संप्रेषित करने के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक मुसलमानों का व्यवहार रहा है। सबसे अधिक मुसलमानों के आचरण से ही प्रभावित होकर विभिन्न समूह इस्लाम की छाया में आए हैं। हम दूसरों के साथ जिस प्रकार रहते हैं और व्यवहार करते हैं, यह उन्हें दर्शाते हैं कि हमारे मूल्य और सिद्धांत क्या हैं। अधिकांश गैर-मुसलमानों के लिए इस्लाम, मुसलमानों का उनके साथ व्यवहार ही है। जब हम बेहतर ढंग से व्यवहार करते हैं, तो हम उन्हें इस्लाम की महानता से अवगत कराते हैं। यदि हमारा व्यवहार बुरा है, तो वे इसे हमारे धार्मिक मूल्यों का प्रतिबिंब मानते हैं, खासकर यदि हम कुछ धार्मिक प्रथाओं जैसे नमाज़ या केवल हलाल खाने पर जोर देते हैं, लेकिन हमारे धर्म के अन्य समान रूप से महत्वपूर्ण पहलुओं की उपेक्षा करते हैं। समस्या तब आती है जब हम धर्म का एक हिस्सा तो लेते हैं और अन्य भागों को भूल जाते हैं या धर्म के प्राथमिकता वाले पहलुओं को भूल जाते हैं (वास्तव में यह वह गलती है जो पिछली उम्मतों ने किया है और ठीक वही है जो हमें करने के खिलाफ चेतावनी दी गई है, कुरान 2:85 )
दुर्भाग्य से, मुसलमानों की पतन में जाने वाली पहली चीजों में से एक अच्छा व्यवहार है। गैर-मुस्लिम इस्लाम (मुसलमानों के व्यवहार के माध्यम से) को कैसे मानते हैं, इस पर इसका बड़ा प्रभाव पड़ता है। मुसलमानों के लिए, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों या बहुल समाजों में रहने वालों के लिए, यह और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वे अन्य लोगों के लिए इस्लाम के राजदूत हैं।
धर्म में सबसे खतरनाक चीजों में से एक अतिवाद (غلو) है। चरम सीमाओं की ओर प्रवृत्त होकर, हम धर्म के उद्देश्यों को खो देते हैं।
आजकल कुछ लोग गैर-मुसलमानों से घृणा करने और उनके प्रति घृणा को बढ़ावा देने के विषय पर बहस कर रहे हैं। ऐसी ज़ेनोफोबिक प्रवृत्तियों के उदाहरण असंख्य हैं। कट्टर मुस्लिम धार्मिक ज़ेनोफोबिया काफिरों से दूर रहने और यहां तक कि मारने का आह्वान करता है और सॉफ्टकोर मुस्लिम धार्मिक ज़ेनोफोबिया धर्म का हवाला देते हुए सामान्य सभ्य व्यवहार और शिष्टाचार का भी बहिष्कार करके उनसे दूरी बनाए रखने का आह्वान करता है।
इस तरह की सोच वाले कुछ विद्वानों ने मुस्लिम-गैरमुस्लिम संबंधों के अपने आकलन में गलती की है। इन विद्वानों की व्याख्या और इस्लाम के बारे में उनकी धारणा सत्य से बहुत दूर है। इन विद्वानों के निर्णय उन आयतों और हदीसों पर आधारित हैं जो बहुत अधिक संदर्भ विशिष्ट हैं, जिन्हें वे मानक प्रथाओं के रूप में लेते हैं और सामान्य स्थिति पर लागू कर देते हैं।
यह संकीर्ण मानसिकता हाल की उत्पत्ति है। मुसलमानों के इतिहास में इससे पहले कभी (और उनका बहुल समाज में रहने का लंबा इतिहास रहा है) यह मसला नहीं था। मुस्लिम और गैर-मुसलमान एक साथ सौहार्दपूर्वक और शांति से सह-अस्तित्व में रहते थे। आज जो प्रश्न पूछे जा रहे हैं और जो उत्तर प्रस्तावित किए जा रहे हैं, वे पहले कभी विवाद का विषय नहीं थे। यह चरम सलफी विचारों के उदय के कारण ही है कि इस तरह के अतिवादी और गैर-इस्लामी विचार और प्रथाएं सरल दिमाग वाले और बेख़बर मुसलमानों के बीच चलन में आ रही हैं।
जब इस्लाम मुसलमानों को अच्छे व्यवहार का आदेश देता है, तो यह न केवल अन्य मुसलमानों के संबंध में है, बल्कि सभी के लिए है। इसमें बुनियादी मानवीय शिष्टाचार शामिल हैं जैसे एक दूसरे को बधाई देना (कुरान 4:86), खुश/दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के समय बधाई देना/शोक व्यक्त करना। इस संबंध में कुरान का आदेश 68:8 में स्पष्ट है। इसी तरह सीरह गैर-मुसलमानों के लिए पैगंबर के दयालु और कृपालु व्यवहार के उदाहरणों से भरपूर है। मिसाल के तौर पर, जब एक यहूदी का जनाज़ा उनके पास से गुजरा तो वे उसके लिए खड़े हो गए, जब कुछ साथियों ने बताया कि यह एक गैर-मुस्लिम का अंतिम संस्कार था, तो आपने जवाब दिया कि तब भी यह एक इंसान का जनाज़ा है (बुखारी, मुस्लिम)। इसी तरह वे अपने गैर-मुस्लिम बीमार पड़ोसियों (बुखारी) से मिलने जाते थे, उन्हें दान देते थे, उपहारों का आदान-प्रदान करते थे और गैर-मुसलमानों के साथ व्यापारिक व्यवहार भी करते थे (विभिन्न सीरह किताबें, इब्न कसीर और अन्य देखें)। उनके साथियों ने उनके उदाहरण का अनुसरण किया और उनमें से कई, जैसे अब्दुल्ला बिन अम्र गैर-मुसलमानों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने के लिए दर्ज हैं, जो त्योहारों के दौरान अपने गैर-मुस्लिम पड़ोसी के साथ भोजन साझा करते थे (बुखारी)।
कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि ये अच्छे शिष्टाचार से संबंधित हैं लेकिन धार्मिक पहलुओं पर लागू नहीं होता जैसे कि उनके त्योहारों पर उन्हें बधाई देना। इस मामले में भी नबी की उदारता प्रस्तुत के लिए, सीरह से निम्नलिखित उदाहरण उद्धृत किया जाता है: जब एक ईसाई प्रतिनिधिमंडल उनसे मिलने आया, तो उन्होंने उन्हें पैगंबर की मस्जिद में रखा और व्यक्तिगत रूप से उन्हें भोजन परोसा और उन्हें पैगंबर की मस्जिद में प्रार्थना सेवा करने की अनुमति भी दी। इस्लामी स्वभाव की व्याख्या इस उदाहरण से बढ़कर और क्या हो सकती है।
इसलिए इस्लाम के नाम पर गैर-मुसलमानों को दूर करने या उनके साथ अमानवीय व्यवहार करने जैसे मुद्दे इस्लामी नहीं हैं। इस्लाम हमें बुनियादी मानवीय शिष्टाचार प्रदर्शित करने से नहीं रोकता है जैसे कि उन्हें उनके त्योहारों पर बधाई देना। अक्सर उद्धृत कारण जैसे कि उनके विश्वासों को स्वीकार करना या उनके साथ जुड़ना आदि हास्यास्पद हैं और कोई तार्किक अर्थ नहीं रखते हैं।
अंत में, इस्लाम हमें सभी के साथ अच्छे व्यवहार की आज्ञा देता है और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हमें अपने उदाहरण से रास्ता दिखाया है। हमें अपने धर्म के बारे में सावधान रहना होगा और मार्गदर्शन के लिए हमेशा अल्लाह और उसके रसूल का उल्लेख करना होगा। हमें विचारों और विचारधाराओं के व्यवहार में भी सावधानी बरतनी चाहिए। हमें कभी भी किसी एक समूह की व्याख्या नहीं लेनी चाहिए, बल्कि दूसरे स्रोतों और व्याख्याओं की जांच करनी चाहिए क्योंकि कुछ आख्यानों के अनुरूप तथ्यों को मोड़ना बहुत आसान है। साथ ही, हमें यह भी याद रखना चाहिए कि इस्लाम और इस्लामी जीवन शैली एक व्यापक संपूर्ण है और हम इसे टुकड़ों में नहीं ले सकते हैं और न अन्य भागों से अलग कर सकते हैं, बल्कि हमें इसे पूर्ण रूप में ही लेना होगा। हमें अपने धर्म में प्राथमिकता के उचित क्रम को भी ध्यान में रखना चाहिए।
अल्लाह हम सभी को उचित ज्ञान और दीन के सही रास्ते पर चलने के लिए हमारा मार्गदर्शन करे।
✍️ सय्यद अहमद मुज़क्किर
(अंग्रेज़ी से अनुवाद- उसामा हमीद)