नागरिकता संशोधन विधेयक और धर्मनिरपेक्ष भारत.

अचानक न्यू इंडिया ने तय किया है कि उसके लिए गाँधी नहीं बल्कि जिन्ना का ही रास्ता बेहतर है। भारत के इस फैसले ने पाकिस्तान को इस द्वंद से मुक्त कर दिया है कि टू नेशन थ्योरी सही थी गलत। नागरिकता संशोधन विधेयक पूरे दक्षिण एशिया में धार्मिक कट्टरता का एक नया चैप्टर खोलेगा। एक-दूसरे को खाद-पानी देकर दक्षिण एशिया के देशों धार्मिक सत्ताएँ लगातार मजबूत होंगी। शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास जैसे सवालों का दूर-दूर तक कोई नामलेवा नहीं होगा।

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इतिहास के कुछ दौर निर्णायक होते हैं। अगर आप उस दौर में हैं तो आपको अपनी बुद्दि और तर्क के आधार पर यह फैसला लेना होता है कि आप किधऱ जाएँगे। हम आज एक ऐसे ही दौर में खड़े हैं।

यह लगभग तय है कि दुनिया की सबसे बड़े लोकतंत्र की संसद इस बात पर मुहर लगा देगी कि गाँधी गलत थे और जिन्ना का रास्ता सही था।

नागरिकता संशोधन विधेयक के पारित होने के बाद धर्मनिरपेक्ष भारत का स्वरूप पूरी तरह बदल जाएगा। नागरिकता तय करने का आधार धर्म बन जाएगा और संविधान में वर्णित समता का अधिकार एक तरह से बेमानी हो जाएगा। बताने की ज़रूरत नहीं कि इसके बाद संविधान भी कागज की लुगदी बन जाएगा।

धार्मिक उन्माद और कभी ना भुलाई जानेवाली हिंसा के बीच 1947 में जब देश का बँटवारा हो रहा था तब जिन्ना ने कहा था— इंडिया एक्ट से दो देश बन रहे हैं। हिंदुओं के लिए हिंदुस्तान और मुसलमानों के लिए पाकिस्तान।

नेहरू और पटेल जैसे नेताओं ने साफ शब्दों में जवाब दिया था— दो देश नहीं बन रहे हैं बल्कि अपनी जिद और सांप्रादायिक राजनीति के आधार पर उसका एक टुकड़ा अलग हो रहा है। वह टुकड़ा अपना जो नामकरण करना चाहे वह करे। भारत जिस तरह का बहुलवादी और बहुसांस्कृतिक देश ऐतिहासिक रूप से रहा है, आगे भी वैसा ही बना रहेगा।

मौलाना आज़ाद ने कहा था— धर्म के आधार पर किसी राष्ट्र राज्य के सफल होने की कल्पना बेमानी है। एक दिन पाकिस्तान का विघटन अवश्यंभावी है।

अगर आप यू ट्यूब पर ढूँढेंगे तो आपको पाकिस्तानी इतिहासकार और लेखकों के कई ऐसे डिबेट मिल जाएँगे जिसमें वे स्वीकार कर रहे हैं कि मौलाना आज़ाद वाकई ठीक कह रहे थे।

नफरत और जहालत के बीच धर्मनिरपेक्ष भारत दक्षिण एशिया में पिछले सत्तर साल से सीना तानकर खड़ा है। वह पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में कुंठा पैदा कर रहा है और वहाँ के समझदार लोगों को राह भी दिखा रहा है। बांग्लादेश में लगातार धर्मनिरपेक्षता की स्थापना की लड़ाई चल रही है।

अगर लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष भारत ना होता तो नेपाल में कभी राजशाही खत्म नहीं होती और वह एक धर्मनिरपेक्ष देश नहीं बनता।

लेकिन अब अचानक न्यू इंडिया ने तय किया है कि उसके लिए गाँधी नहीं बल्कि जिन्ना का ही रास्ता बेहतर है। भारत के इस फैसले ने पाकिस्तान को इस द्वंद से मुक्त कर दिया है कि टू नेशन थ्योरी सही थी गलत।

नागरिकता संशोधन विधेयक पूरे दक्षिण एशिया में धार्मिक कट्टरता का एक नया चैप्टर खोलेगा। एक-दूसरे को खाद-पानी देकर दक्षिण एशिया के देशों धार्मिक सत्ताएँ लगातार मजबूत होंगी। शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास जैसे सवालों का दूर-दूर तक कोई नामलेवा नहीं होगा।

मुस्लिम देशों में हिंदुओं के पीड़ित होने की दुहाई दी जा रही है। क्या भारत अपने यहाँ रह रहे तमाम हिंदुओं की सारी समस्याएं हल कर चुका है? शरणार्थी हिंदुओं को भारत की नागरिकता देने से किसने रोका है? फिर अलग से एक विधेयक लाने की ज़रूरत क्यों है, जिससे कोई भी घुसपैठिया अपने आप को हिंदू (गैर-मुसलमान) बताकर यहाँ आने का लाइसेंस हासिल कर ले?

ज़रूरत इसलिए है ताकि धार्मिक नफरत की एक स्थायी दीवार हमेशा के लिए खड़ी रहे जो बीजेपी की राजनीति की बुनियाद है। पिछले पच्चीस साल में भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति के रूप में जो पहचान बनाई थी, वह तेजी से धूमिल होती जा रही है। यह बहुत साफ है कि सरकार के पास रसातल में जा रही अर्थव्यवस्था को उबारने का कोई उपाय नहीं है। ऐसे में सिर्फ ध्यान भटकाने वाले तरीके ही उसे बचाये रख सकते हैं।

इतिहास के इस निर्णायक दौर में मेरी प्राथमिकता बहुत स्पष्ट है। मैं आइडिया ऑफ इंडिया को ध्वस्त करने वाले इस काले कानून का पुरजोर तरीके से विरोध करता हूँ। एक नागरिक के तौर पर जितने भी शांतिपूर्ण और सांवैधानिक रास्ते हैं, उनपर चलकर मेरा विरोध आगे भी जारी रहेगा।

Rakesh Kayasth

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