नारी ईश्वर की बनायीं हुई अनमोल एवं अनिवार्य रचना है । प्राचीन काल से ही नारी पर अनेकों प्रकार के अत्याचार होते रहे है कभी धर्म और आस्था के नाम पर उसे प्रताड़ित किया गया तो कभी स्त्री होने की बिना पर उसे तुच्छ समझा गया अर्थात प्राचीन काल से ही नारी बलिदान का पर्याय बनी रही है।
समय समय पर स्त्री के हितेषियो द्वारा नारी के उत्थान के लिये अनेक प्रकार के प्रयास किये जाते रहे हैं । 21वी सदी की शुरुआत में भी नारी को समानता एवं स्वतंत्रता दिलाने हेतु समाज के ठेकेदारों ने एक नया तरीका ईजाद किया जिसे नारीवादी आंदोलन कहा गया जिसका उद्देश्य स्त्री को पुरुष के बराबरी में खड़ा करना था। 21वी सदी के नारीवाद ने स्त्री को संबल बनाने का सम्पूर्ण प्रयास किया उसे घर की चारदीवारी से निकाल कर बाहरी दुनिया के रंग ढंग सिखाये जाने लगे। जो स्त्री प्राचीन समय में तुच्छ समझी जाती थी जिसे घरों में शोषित किया जाता था जिसे पुरुषों के मामलों में बोलने का हक तक नहीं था आज वही नारी समाज में पुरुषों से कदम से कदम मिला कर चलती नज़र आने लगी।
परंतु क्या वर्तमान समय में नारी स्वतंत्र एवं सम्मानित है?
वर्तमान में इस प्रश्न का उत्तर हमें शायद हाँ के रूप में सुनने को मिले लेकिन ये ढकोसला मात्र है। इलेक्ट्रानिक मीडिया में नारी एक कामयाब एवं सम्मानित इंसान के रूप में दिखाई पड़ती है कहीं वो डॉक्टर है कहीं इंजीनियर कहीं पायलट है तो कहीं टीचर यहां तक की नारी ने अपनी प्रतिभा की छाप चाँद पर भी छोड़ दी है। वह अपनी सफलता के झंडे विश्व भर में गाड़ रहीं है। परंतु क्या वर्तमान में नारी को उसके मूल गुण अर्थात उसके स्त्रीत्व के साथ स्वीकार किया गया है??
एक तरफ़ नारी को कथित स्वतंत्रता एवं सफलता मिलीं है परंतु इसका दूसरा पहलू जो हमारी नज़रों से औझल है वो ये कि आज नारी को पुरुष प्रधान समाज में समानता का अधिकार तो मिला परंतु सम्मान के साथ नहीं बल्कि उसे अपमानित करके, उसे स्वतंत्रता तो मिली परंतु उसकी लज्जा जो कि उसका सबसे बड़ा धन है उससे छीन लिया गया ।
नारीवादी सोच ने स्त्री के स्त्रीत्व को कुचल कर रख दिया और उसे पुरुषों जैसा बनने पर मजबूर किया गया। 21वी सदी के नारीवाद ने स्त्री को सफलता समानता और स्वतंत्रता पुरूषवादी सोच के आधार पर प्रदान की है।
पाश्चात्य संस्कृति ने ये सिखाया कि यदि कोई स्त्री पुरुषों के समान स्वतंत्रता एवं समानता चाहती है तो उसे अपनी लज्जा एवं अपनी स्त्रीत्व भावनाओं को त्याग कर पुरूषों जैसा रूप धारण करना होगा। वो पुरुषों जैसे वस्त्र पहने, पुरुषों जैसे मेहनत और मशक़्क़त करें और पुरुषों की हवस के अनुसार खुद को बना ले तब ही उसे कामयाब माना जायेगा। फ़िल्मों एवं टीवी सीरियल में काम करने वाली महिलाओं को ऐसा करने पर मजबूर किया जाता है कार्यालय स्थलों पर महिलाओं के साथ पुरुषों द्वारा शारीरिक एवं मानसिक शोषण किया जाता है। हालिया दिनों सुर्खियों में आने वाला MeToo अभियान महिलाओं के साथ होने वाले दोहरे व्यवहार को दर्शाता है।
वर्तमान पाश्चात्य संस्कृति एक स्त्री को स्त्री के रूप में स्वीकार ही नहीं करती है। 21वी सदी का नारीवाद भी एक लिँगी समाज का समर्थन करता नज़र आता है जिसमें स्त्री का अपना कोई अस्तित्व नहीं उसे पुरुषवादी सोच के अनुसार ही आगे बढ़ना होगा। नारीवादी सोच ने स्त्री को मम्तत्व से भी वंचित किया है आज महिलाएं स्वयं को सम्बल बनाने एवं पुरुष प्रधान समाज में स्वयं को खड़ा रखने के अनथक प्रयास में माँ बनने का सुख भी दांव पर लगा रही है। जो महिलाएं माँ बनती है वो अपने बच्चों की ठीक से परवरिश नहीं कर पाती। आर्थिक संघर्ष ने महिलाओं को परिवार से दूर कर दिया है अक्सर महिलाएं अपने बच्चों को पालना घरों में छोड़ कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाती है जिसके कारण वर्तमान समय में बच्चों एवं युवाओं में नैतिक मूल्यों में गिरावट साफ नज़र आने लगी है।
नैतिक मूल्यों में गिरावट के कारण समाज एवं देश को बेहतर नागरिक नहीं मिल पाते । भौतिकवादी युग ने भी नारी के शोषण में कोई कमी नहीं छोड़ी है आज किसी गाड़ी से लेकर छोटी सी ओइल क्रीम तक बेचने में एक स्त्री का उपयोग किया जाता है यहां तक जो वस्तुयें केवल पुरुषों के लियें है उनकी मार्केटिंग में भी स्त्रियों का उपयोग किया जाता है। जिस स्त्री को देवी के रूप में पूजा जाता रहा है आज वो बाज़ार का खिलौना मात्र समझी जाने लगी है।आज स्थिति ये है की एक नारी कितनी ही गुणी और प्रतिभा की धनी हो उसकी इंटेलीजेन्सी को उसके कपड़ों से आंका जाता है। प्राचीन काल में स्त्रियों को घर में रख कर उसे शोषित किया जाता था और आज उसे स्वतंत्रता एवं समानता के नाम पर ठगा जा रहा है॥
लेखिका: बिलकिस बेगम
(लेखिका कोटा विश्वविद्यालय की छात्रा एवं स्वतंत्र लेखक है)