-अमानुल्लाह अमन, बिहार
पिछले कुछ दिनों से ज्योति की कहानी दुनिया के सामने आई। ये दरभंगा जिला के सिरहुल्ली गांव की निवासी है। ज्योति, जो अपने बीमार पिता को साईकिल पर बैठाकर गुडगांव से दंरभंगा ले आई। उसके हौसले और हिम्मत को सलाम है।
लेकिन सरकारें और समाज दोनों बेशर्मी की हदों को पार कर चुकी हैं। बेशर्मी इसलिए क्योंकि किसी को उसके अपने घर से 1200 किलोमीटर दूर हरियाणा से साईकिल चलाकर लौटने का कोई दुख नहीं है कि वो कैसे इतनी लंबी दूरी तक साईकिल चलाकर वापस आई? उसे इसमें कितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ा होगा? आखिर इसका ज़िम्मेदार कौन है कि उसको ऐसा करने पर मजबूर होना पड़ा? उन्हें या इस तरह लाखों करोड़ो बेबस आम लोगों के भूखे-प्यासे पैदल चलते हुये घर पहुँचते लोगों को बस, ट्रेन और दूसरी जरूरी सुविधाएं सरकार क्यों नहीं दिला पाई? जबकि सरकार के पास सभी जरूरी आम सुविधाएं मौजूद हैं।
लेकिन इन सब से बीच एक चीज़ जो साफ-साफ दिखायी दे रही है कि ज्योति के हौसले और हिम्मत का इस्तेमाल सरकारें अपनी नाकामयाबी छिपाने के लिए कर रहीं हैं। इस तरह पैदल चलते लोगों का महिमामंडन कर सरकार से पुछे जाने वाले प्रश्न को धुंधला बनाया जा रहा है ताकि इस धुंधलेपन पर किसी की नजर नहीं पड़े। कोई फोटो खिचवानें जा रहा है, तो कोई मिठाई खिलाकर उसे बधाई दे रहा है। इन सबका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाला जा रहा है। सुविधाविहीन लाखों करोड़ो लोगों को मरते-पीटते छोड़कर पक्ष-विपक्ष ने अपने अवसरवादी केमरे के फ्लश से ज्योति के थके-मांदे चेहरे पर डालकर अपनी राजनीतिक चमक बिखेरने में व्यस्त हैं। इसलिये इसे बेशर्मी कहना ही ठीक होगा।
बस, ट्रेन के बाद हवाई जहाज पढ़ने की आदत होगी न आपको। लेकिन ज्योति और उसके जैसे तमाम लोगों के लिए सरकारों ने बस, ट्रेन के अलावा साईकिल का जुगाड़ किया है कि जब वो उन्हें बस और ट्रेन ना दे पाएं तो कोई एक ज्योति या तबरेज( 9 साल के बालक है अपने माता पिता को बनारस से ठेला के जरिए बिहार के अररिया ले कर आए) जिससे सरकारें अपनी नकामयाबी को छिपाने में कामयाब हो जाए। ज्योति या तबरेज दोनों बेशक बहादुर है लेकिन उसको बहादुर बताकर खुद की गलतियों को छिपाने वाली सरकार को एक बार अपनी बहादुरी के बारे में भी सोचना चाहिए।
ऐसे समय में, जब लाखों लोग सड़कों पर हजारों किलोमीटर भूखे-प्यासे पैदल चलने को मजबूर हैं, ज्योति के जैसे दूसरे अन्य युवा साईकिल चलाकर अपने गांव वापस जाने को मजबूर हैं। तब सरकार कौन-सी बहादुरी दिखाने में व्यस्त है? ये सब सवाल गुड़गांव से निकलते वक्त ज्योति के मन में भी रहे होंगें। क्या पता अब भी हो? लेकिन वो चुपचाप सब देख रही हो कि कैसे उसके सारे असली सवालों को बड़ी चालाकी से उसकी बहादुरी, हिम्मत और हौसले की कहानी के पीछे दबा दिया गया।
अब भी ना जाने कितनी ज्योति साईकिलों से पैदल, ट्रकों और ट्रालियों पर चढ़कर अपने गांव पहुंचने के लिए निकलीं तो ज़रूर हैं लेकिन रास्तों में कहीं गुम हो गयी हैं।
ज्योति बताती है कि हर दिन सुबह 7 बजे से 8 बजे रात तक लोग आ रहे हैं। नींद पूरी नहीं हो पा रही है, ना समय पर खा सकते है और इस समय हम होम कुरेइंटाइन में है। ज्योति या उस जैसे सभी पीड़ित क्या चाहते हैं? “जब पढ़ लिख लेंगे तो बता देंगे। बस हमको इतना मालूम है कि पढ़ लिख कर कुछ बनना है.”
15 साल की ज्योति जो अपने पिता को कभी साइकिल और कभी ट्रक पर बैठाकर गुरुग्राम से सिरहुल्ली पहुंची है,
किसी के लिए ज्योति गर्व, किसी के शर्म और कोई ज्योति पर गर्व और सरकार पर शर्म महसूस कर रहा है।
दरअसल ज्योति के इस पूरे प्रकरण ने समाज और सरकारी व्यवस्थाओं की नाकामी को उजागर कर दिया है। इस समय भी जब ज्योति को सम्मानित करने वालों की भीड़ उसके घर लगी है, हज़ारों ‘ज्योति’ सड़क पर पैदल चलती नजर आ रही है, ट्रेन में ठूंस-ठूंस कर भूखे प्यासे अपने घर आने की पीड़ादायक यात्राएं कर रही हैं। सरकार अब अपने लेट-लतीफ ही सही अपनी सारी योजनाएं केमरे के चमकते चेहरे सिर्फ ज्योति के घर पहुंचा रही है।
ज्योति के घर में जहां आनन-फ़ानन में शौचालय बन गया “शौचालय के लिए 26 मई तक तो बाहर ही गए हैं। आज घर में बन रहे शौचालय में दरवाजा लग जाएगा। अंदाज है कि कल से बाहर नहीं जाना पड़ेगा। पता नहीं कैसे ज्योति का गाँव सरकारी कागज पर केंद्र सरकार की “स्वच्छ भारत अभियान” के तहत बाहर शौचालय मुक्त नहीं हो पाया। इतनी बड़ी चूक कैसे हुई? इस गाँव के लोग आज भी बाहर सौच करने जाते हैं। “वहीं अब मुख्यमंत्री हर घर नल जल योजना के तहत तीन नल लग गए है। हो सकता है कुछ दिनों में इनके घर उज्ज्वला योजना के तहत लाभ भी मिल जाए, जन वितरण प्रणाली, बिहार सरकार द्वारा दाना-पानी का भी इंतेजाम हो जाय लेकिन इस समय भी इन सभी योजनाओं का लाभ सिर्फ ज्योति के घर तक क्यों? अगर ज्योति के घर तक इन सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुँच पाया तो इसका मतलब और भी हजारों लाखों घर ऐसे होंगे जहां तक इन सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुँच पाया हो। खैर ज्योति के बहाने ही केंद्र और राज्य की सरकारें अपनी योजनाओं के क्रियान्वयन का विश्लेषण करे। उड़ता बिहार विकसित बिहार के सरकारी अकड़ों में सभी ज्योति जैसे छूटे लोगों का नाम शामिल किया जाय।