मौलाना आजाद : भारतीय शिक्षा पद्धति के व्यापक सुधार में मुख्य भूमिका निभाई

0
2536

आधुनिक भारत के इतिहास के महान विभूतियों में शामिल मौलाना अबुल कलाम आजाद ने जीवन पर्यंत देश की सेवा की। एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी ,उत्कृष्ट पत्रकार, कुशल लेखक के रूप में प्रसिद्ध शिक्षाविद् मौलाना अबुल कलाम आजाद को स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री होने का गौरव प्राप्त है।उनके जन्मदिवस 11 नवंबर को प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

राष्ट्रीय आंदोलन के संदर्भ में नीति निर्णयन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले मौलाना आजाद कांग्रेस के उन प्रमुख नेताओं में से थे जिन्होंने सबसे कठिन और निर्णायक दौर में कांग्रेस का सफल नेतृत्व किया।

हिन्दू मुस्लिम एकता की प्रखर वकालत करने वाले मौलाना आजाद ने आजादी के समय देश के विभाजन का जमकर विरोध किया। उन्होंने न केवल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सक्रियता दिखाई अपितु आजादी के बाद भी एक नए भारत के निर्माण में अहम सहभागिता सुनिश्चित किया।

मौलाना आजाद का वास्तविक नाम मुहिउद्दीन अहमद था। वह 11नवंबर 1888 को सउदी अरब के प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर मक्का में पैदा हुए परन्तु सन् 1980 में उनका परिवार कलकत्ता (भारत) शिफ्ट हो गया।बचपन से ही मेधावी मौलाना आजाद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से ही हासिल की ।इन्हें बचपन से ही पढ़ने लिखने का शौक था , यही कारण है कि उन्होंने अपने छात्र जीवन में ही अपना पुस्तकालय चलाना शुरू कर दिया था। उनके पिता को यह बात पसंद नहीं थी कि वह स्कूल की किताबों के अलावा इधर उधर की किताबें भी पढ़ें लेकिन मौलाना का शौक किसी तरह कम न हुआ। वह अपने जेब खर्च से पैसे बचाकर मोमबत्तियां खरीद लाते और जब घर के लोग सो जाते तब वह अपनी मोमबत्तियां जलाकर पत्र पत्रिकाओं व अन्य किताबें पढ़ते।आपने दर्शनशास्त्र, इतिहास, अंग्रेजी सहित उर्दू साहित्य में भी विशेषज्ञता हासिल की।

अपने ओजस्वी और तथ्यपरक लेखों और भाषण से स्वतंत्रता सेनानियों में जोश भर देते। एक उत्कृष्ट विद्वान के रूप आपकी महत्वपूर्ण रचनाओं में इंडिया विंग्स फ्रीडम, गुब्बार-ए- खातिर, हिज्र व वसाल, खुतबात-ए-आजाद, अहराम ए इस्लाम, अलब्यान,हमारी आजादी और तजकरा आदि शामिल हैं।उनके द्वारा पैगाम, लिसान-उल-सिद्क जैसी पत्रिकाएं भी प्रकाशित की गईं साथ ही विभिन्न अखबारों से भी सम्बद्ध रहे।

मौलाना आजाद ने पवित्र कुरआन का उर्दू अनुवाद भी किया तर्जुमान-उल-कुरआन को साहित्य अकादमी द्वारा छ:संस्करणों में प्रकाशित किया गया।

लार्ड कर्जन के बंगाल विभाजन की नीति के विरोध के समय जनजागृति हेतु उन्होंने साप्ताहिक अखबार अल-हिलाल प्रकाशित करवाया जिसमें अंग्रेजों की कुनीतियों के विरुद्ध लेख प्रकाशित होते थे इसलिए अंग्रेजी हुकुमत ने सन् 1914 में इसे प्रतिबंधित कर दिया तत्पश्चात उन्होंने अल-बलाग नामक अखबार निकालना शुरू किया ।यह अखबार भी अंग्रेज के कुनीतियों के विरुद्ध अग्रसर रहा।फलतः अंग्रेजों ने उन्हें कठोर धाराओं के तहत कैद कर कलकत्ता से रांची जेल शिफ्ट कर दिया।

मौलाना निरंतर संघर्षरत रहे। जेल से रिहा होते ही महात्मा गांधी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में कूद पड़े और पुनः जेल की सलाखों में कैद होना पड़ा।

मौलाना आजाद की दूरदर्शिता और विद्वता से हर कोई प्रभावित था यही वजह है कि सन् 1922 के गया अधिवेशन में वैचारिक मतभेदों के कारण दो खेमों में विभाजित कांग्रेस को एकजुट करने में मौलाना ने अहम किरदार अदा किया।

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कांग्रेस के शीर्ष नेताओं समेत मौलाना अबुल कलाम आजाद को भी गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा। इस दौरान अहमद नगर फोर्ट जेल में बंद मौलाना आजाद के साथ निर्दयतापूर्ण व्यवहार हुआ। जहाँ एक ओर मौलाना जेल की यातनाओं का मुकाबला कर रहे थे वहीं दूसरी ओर घर पर उनकी पत्नी बीमारी से जुझ रही थीं। जेल प्रशासन द्वारा बीमार पत्नी से मिलने की ईजाजत नहीं मिली। इसी दौरान उनकी पत्नी जुलेखा बेगम का देहांत भी हो गया।जुलेखा बेगम भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बढ़चढक़र हिस्सा लिया और अपने पति के साथ संघर्ष पथ पर डटे रहे। गुबार -ए-खातिर उनकी वह पुस्तक है जो इसी कैदखाने में लिखा गया।

महात्मा गांधी, पंडित नेहरू सरीखे कांग्रेस नेता मौलाना आजाद का बड़ा सम्मान देते, उन्हें करीबी मित्र समझते और महत्वपूर्ण फैसलों में उनकी राय को तरजीह देते थे।कांग्रेस एवं ब्रिटिश पक्षों के बीच सभी महत्वपूर्ण वार्ता में मौलाना अधिकृत प्रतिनिधियों के रूप में अंग्रेजी हुकूमत से वार्ता करते यद्यपि 1942का क्रिप्स मिशन हो या 1945 का शिमला कांग्रेस या फिर1946का कैबिनेट मिशन ।

पंडित जवाहर लाल नेहरू की नेतृत्व वाली स्वतंत्र भारत की पहली सरकार में भी मौलाना आजाद को अहम जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्हें स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री के रूप में भारतीय शिक्षा पद्धति में व्यापक बदलाव का श्रेय हासिल है।

मौलाना आजाद ने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में देने की वकालत की वहीं भारत की तरक्की में निरक्षरता को एक बड़ी समस्या बताते हुए प्रौढ़ शिक्षा की व्यापकता पर भी विशेष ध्यान दिया।

एक ओर जहाँ उन्होंने तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए श्रंख्लाबद्ध तरीके से खड़गपुर, मुम्बई, चेन्नई , कानपुर और दिल्ली में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई० आई० टी०) की स्थापना की वहीं भारतीय कला व संस्कृति की धरोहर को संरक्षित करने हेतु सन् 1953में संगीत नाटक अकादमी, सन्1954 में साहित्य अकादमी, सन् 1945 में ललित कला अकादमी जैसे उत्कृष्ट संस्थानों के अलावा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना करवाकर अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।

जीवन पर्यंत संघर्ष करनेवाले आंदोलनकारी,प्रतिभा के धनी और सादगी के पर्याय मौलाना आजाद ने 22 फरवरी 1958 को इस संसार सदैव के लिए अलविदा कह दिया। भारत सरकार ने सन् 1992 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया।शैक्षिक क्षेत्रों में उनके द्वारा किए गए प्रयास शैक्षिक, सांस्कृतिक और तकनीकी विकास का परिचायक है।

🖋️ मंजर आलम (लेखक आईटा, बिहार प्रदेश सलाहकार समिति के सदस्य हैं )

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here