महामारी के दौरान रमज़ान की आमद!

चँद मुक़रर दिनों के रोज़ें हैं । अगर तुम में से कोई बीमार हो या सफ़र पर हो तो वो दुसरे दिनों में उतनी ही तादाद पूरी कर ले । और जो लोग रोज़ा रखने कि क़ुदरत रखते हों ( फिर न रखें ) तो वो फिदया दें । एक रोज़े का फिदया एक मिसकीन को खाना खिलाना है और जो अपनी ख़ुशी से ज़्यादा भलाई करे, तो ये उसके लिए बहतर है । लेकिन अगर तुम समझो, तो तुम्हारे हक़ में अच्छा यही है कि रोज़ा रखो " (अल क़ुरआन 2: 184) ।

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-सय्यद अज़हरुद्दीन
(जनरल सेक्रेटरी, एसआईओ ऑफ़ इंडिया)

हर साल, मेरे कई दोस्त, सहकर्मी और पड़ोसी मुझसे सवाल पूछते थे कि आप रोज़ा क्यों करते हैं? आप कैसे रोज़ा करते हैं? रमज़ान का क्या महत्व है? आदि आदि। इसी प्रकार के कुछ प्रश्न हमारे सामने होते हैं, जब हम रमज़ान के महीने में रोज़ा शुरू करते हैं। इस वर्ष वे ऐसे प्रश्न नहीं पूछ सकते हैं, क्योंकि हमें इस बार COVID-19 महामारी के कारण लॉकडाउन की स्थिति में अपने प्रियजनों से मिलने या बातचीत करने का अवसर नहीं मिल रहा है। विश्व का अधिकांश हिस्सा लॉकडाउन है, महामारी की चुनौतियों का सामना कर रहा है, इस दौरान बहुतों ने अपने प्रियजनों को खो दिया है। उन सभी पीड़ित परिवारों के प्रति एकजुटता एवं मानवीय संवेदनाओं का जोड़कर, मैं रमज़ान 2020 का स्वागत करता हूं। हम में से कई सोच रहे होंगे कि महामारी और लॉकडाउन के कारण रमज़ान के वास्तविक आनंद से महरूम रह जाएंगे या उसे महसूस नहीं कर सकते हैं। ऐसा नहीं है! चिंता की कोई बात नहीं है, रमज़ान को इस वर्ष भी वास्तविक रूप से मना सकते हैं, उसका आनंद उठा सकते हैं।

रमज़ान क्या है?
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक रमज़ान वर्ष का 9वां महीना है। रमज़ान में सुबह से शाम तक सेहतमंद मुसलमानों को ही रोज़ा रखना जरूरी है। पवित्र महीने के दौरान, मुसलमान सुहुर नामक पूर्व-सुबह भोजन करने के लिए जल्दी उठते हैं, और शाम के समय इफ्तार के रूप में संदर्भित भोजन के साथ अपना रोज़ा तोड़ते हैं।
” चँद मुक़रर दिनों के रोज़ें हैं। अगर तुम में से कोई बीमार हो या सफ़र पर हो तो वो दुसरे दिनों में उतनी ही तादाद पूरी कर ले और जो लोग रोज़ा रखने कि ताकत रखते हों (फिर न रखें) तो वो फिदया दें। एक रोज़े का फिदया एक मिसकीन को खाना खिलाना है और जो अपनी ख़ुशी से ज़्यादा भलाई करे, तो ये उसके लिए बहतर है। लेकिन अगर तुम समझो, तो तुम्हारे हक़ में अच्छा यही है कि रोज़ा रखो ” (अल क़ुरआन 2: 184)।
रोज़ा में पीने, खाने, अनैतिक कार्य और क्रोध से परहेज़ करना शामिल है। रोज़ा गरीबों की भूख को महसूस करने और जरूरतमंदों को खिलाने के लिए है। लॉकडाउन के कारण इसे और अधिक करने की आवश्यकता है और दूसरों को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करें। This Ramadan Help The Needy
पैगंबर मोहम्मद (PBUH) ने कहा: “… जो कोई भी रमज़ान के दौरान रोज़ा रखता है, वह ईमानदारी से आस्था करता है और अल्लाह की ओर से अज्र की उम्मीद करता है, और फिर उसके सभी पिछले पापों को माफ कर दिया जाएगा।”

रमज़ान के महीने में रोज़ा क्यों? रमज़ान में कुरआन को भेजा गया।
“रमज़ान वो महीना है, जिस में कुरआन नाज़िल किया गया जो इंसानों के लिए सरासर हिदायत है और ऐसी वाज़ेह तालीमात पर मुशतमील है, जो राहे रास्त दिखाने वाली और हक़ व बातिल का फर्क खोल कर रख देने वाली है। लिह़ाजा अब से जो शख्स इस महीने को पाए, उस पर लाज़िम है कि इस पुरे महीने के रोज़े रखे और जो कोई मरीज़ हो या सफ़र पर हो, तो वो दुसरे दिनों में रोज़ों की तादाद पूरी करे। अल्लाह तुम्हारे साथ नर्मी करना चाहता है, सख़्ती करना नहीं चाहता। इसलिए ये तरीक़ा तुम्हें बताया जा रहा है ताकि तुम रोज़ों की तादाद पूरी कर सको और जिस हिदायत से अल्लाह ने तुम्हें सरफ़राज़ किया है, उस पर किबरीयाई का इज़हार व ऐतेराफ़ करो और शुक्र गुज़ार बनो” (अल-क़ुरआन 2: 185)। रमज़ान के दौरान रोज़ा इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है और यह पूजा का एक तरीका है, जिसमें हर एक मानव सर्वशक्तिमान ‘अल्लाह’ के करीब जाने का एक तरीका है और जरूरतमंद लोगों के प्रति अधिक दयालु बनने का एक अवसर प्रदान  है। रोज़ा का उद्देश्य हमें आत्म-संयमित बनने की शिक्षा देता है बुराई से बचाता है और खुद को सर्वशक्तिमान ‘अल्लाह’ के लिए आत्मसमर्पण करना सिखाता है। रोज़ा हमें धैर्यवान बनाता है और बुरी आदतों से बचने के नये तरीके सिखाता है, इसलिए इस महीने को सकारात्मक बदलाव के लिए प्रशिक्षण का महिना भी कहा जाता है।

यह एक सच्चाई है कि मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग, जिसने रमज़ान के वास्तविक सार को गलत तरीके से प्रस्तुत किया है, जिसके कारण गैर मुस्लिम इन मुसलमानों को देखकर रमजान का मक़सद ये समझते हैं कि ज्यादा से ज्यादा मस्जिद जाकर नमाज और कुरान पढ़ना उसके अलावा लजीज हलिम/हरिस खाना, अनावश्यक खरीदारी करने और गरीबों भूखों को खाना खिलाने के बजाय बहुत आराम करने, अर्थात ईश्वरीय उपासना के कुछ राश्म-ओ-रिवाज को समझ बैठते हैं। जबकि रमजान का मक़सद तो ज्यादा से ज्यादा मस्जिदों में नमाज व कुरान पढ़ने के साथ-साथ अल्लाह के ज़िक्र में बैठना है। कुरान में दर्ज शिक्षाओं को समझ कर उसका अनुसरण करना है। कुरान की मानवव्यापी शिक्षाओं को अपनाकर समाज में न्यायिक तंत्र को मजबूत कर जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्र और भाषा की बुनियाद पर ऊंच-नीच, भेद-भाव, गैरबराबरी को मिटाना इसका मुख्य उद्देश्य है। इसलिए कुरआन सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि पूरी मानवता के लिए है।

रमज़ान का महीना अन्य महीनों से कैसे अलग है?
सुहूर और इफ्तार करने के अलावा रात में विशेष नमाज अदा की जाती है जिसे तरावीह कहते हैं। प्रत्येक दिन पांच वक़्त की नमाज़ पढ़ना सभी वर्ष के 365 दिनों के लिए हर एक मुस्लिम पर अनिवार्य है, लेकिन रमज़ान में सर्वशक्तिमान ‘अल्लाह’ को खुश करने के लिए विशेष प्रार्थना अतिरिक्त नहीं बल्कि अनिवार्य है। इस विशेष प्रार्थना का आयोजन समूहिक रूप से इस महीने में मस्जिदों में होता है। कुछ लोग इस विशेष नमाजों को अपने घर परिवारों के साथ मिलकर भी अदा करते हैं। यह व्यक्ति की मर्जी और इच्छा पर निर्भर करता है कि वे इस विशेष नमाज को कहाँ पढ़ना बेहतर समझते हैं। इस समय पूरी दुनिया कोरोना महामारी के चपेट में है स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अलावा इस्लामिक शिक्षाओं के अनुसार महामारी के समय लोगों को शारीरिक दूरी बनाकर(फ़िज़िकल डिस्टेन्स) बनाकर रहना चाहिए ताकि संक्रमण को एक-दूसरे में फैलने से रोका जा सके। इसलिये रमज़ान-20 के दौरान, ये विशेष प्रार्थनाएं घर पर भी की जा सकती हैं, अनावश्यक रूप से घूमने फिरने के बजाय, सभी लॉकडाउन के अवसर का उपयोग कर सकते हैं और अल्लाह से क्षमा और दया की प्रार्थना, क़ुरआन का पाठ कर सकते हैं ।

#LetsPrayForCoronaFreeWorld.

इस महीने में, सर्वशक्तिमान के करीब आने के लिए अंतिम दस दिन अधिक महत्वपूर्ण हैं क्योंकि रमज़ान की अंतिम दस विषम संख्या वाली रातों में से किसी एक में कुरआन को भेजा गया था और इस रात शक्ती वाली रात Night of Power (लैलतुल कदर) कहा जाता है।
कुरान की विशेष आयात में इस रात का जिक्र इस प्रकार है

देखो!
” हम ने इस (क़ुरआन) को शबे क़द्र में नाज़िल किया।
और तुम क्या जानो के शबे क़द्र क्या है?
शबे क़द्र हज़ार महीनों से बहतर है।
फ़रिश्ते और रूह इस में अपने रब के अज़न से हर हुक्म ले कर उतरते हैं।
वो रात सरासर सलामती है तुलुए फज़र तक।”
(अल-क़ुरआन 97: 1-5)।

इसलिये लोगों की जन की हिफाजत के लिये सरकार द्वारा निर्देशित लॉकडाउन के निर्देशों का पालन करें। रमज़ान के अंतिम 10 दिनों के दौरान और जितना संभव हो सके अल्लाह की इबादत  करें, लैलतुल क़द्र की रात का तलाश करें और ऐतेकाफ (ईश्वर की उपासना के लिए एक समय समर्पित करना) का अभ्यास करें।

मुसलमान रमज़ान का महीना कैसे गुज़ारते हैं?
रमज़ान के दौरान अलग-अलग संस्कृतियों की अलग-अलग परंपराएँ हैं। इस दौरान विशेष भोजन और पकवान पकाये जाते हैं। परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर इफ्तार(समूहिक रूप से शाम के वक़्त) के साथ-साथ रात के खाने पर मेहमानों और पड़ोसियों को आमंत्रित करते हैं। इसके अलावा गरीब और बेसहारा लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था करते हैं। पूरे साल कमाये गये रक़म से 2.50 प्रतिशत ज़कात के रूप में अनिवार्यतः दान देते हैं। लॉकडाउन के कारण इस तरह के आयोजन के लिये सभाएं करना मुमकिन नहीं है लेकिन व्यक्तिगत तौर पर वैकल्पिक रूप से हमें सहकर्मियों, दोस्तों और पड़ोसियों को रमज़ान, क़ुरआन और इस्लाम के संदेश के साथ शुभकामनाएं देनी चाहिए। अपने आस-पड़ोस के गरीब और बेसहारा लोगों का ध्यान रखें कोई  भूखा नहीं रहे। लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद इफ्तार समारोहों की योजना बना सकते हैं। #NoGatheringDuringPandemic

इसी तरह ज़कात भी इस्लाम का पाँच बुनयादी स्तंभ में से एक है। प्रत्येक मुसलमान को पूरे वर्ष में एक बार संचित धन का 2.5% हिस्सा देना अनिवार्य है लेकिन मुसलमान रमजान के महीने में इस धन को दान करना सबसे पुण्य का कार्य समझते हैं। इसका रोज़ा और रमज़ान से कोई सीधा संबंध नहीं है। ज़कात केवल ग़रीबों बेसहारों और यतीमों जैसे ज़रूरतमंदों और उन लोगों के लिए है, जिसे किसी गुलामी के बंधन से मुक्त करना है या कर्ज के बोझ तले दबे हैं की मदद करने के लिए है और अल्लाह की राह में खर्च करने के तरीके के लिए है। इसलिए संकट की इस घड़ी में हमें ज़कात ग़रीबों और ज़रूरतमंद लोगों के अलावा प्रवासी कामगारों के उत्थान के लिए देना चाहिए। लॉकडाउन की चपेट में आकर छोटे पैमाने के व्यवसायी का बहुत नुकसान हुआ है ऐसे में हम इस पैसे की मदद से उनका साथ दे सकते हैं।

ईद-उल-फितर की वास्तविकता क्या है?

रमज़ान के ख़त्म होने के बाद ईद-उल-फितर का त्योहार होता है। एक महीने के रोज़ा के बाद, सर्वशक्तिमान ‘अल्लाह’ मुसलमानों को धन्यवाद देने के लिए ईद-उल-फितर (दान पुण्य का त्यौहारा) खुशियों के साथ मनाते हैं। फितरा एक और प्रकार का दान है जो प्रत्येक मुसलमान पर अनिवार्य है, प्रत्येक व्यक्ति की ओर से परिवार का मुखिया त्योहार की प्रार्थना से पहले दान देता है। यह रक़म समाज के उनलोगों के लिये है जिसके पास ईद की खुशियाँ मनाने के लिये कोई साधन नहीं हों। पैगंबर मुहम्मद (PBUH) त्योहार के दिन ज़ुहैर बिन सगीर नाम के एक छोटे से लड़के के पास आए, जो सबसे अलग फुटपाथ पर अकेला दुखी बैठा था, और रो रहा था। पैगंबर मुहम्मद (PBUB) ने उससे पूछा “बच्चे तुम क्यों रो रहे हो? ऐसे शुभ दिन पर आप क्यों रो रहे हैं? बच्चे ने कहा, मैं एक अनाथ हूं, आज उत्सव का दिन है, देखो कि हर कोई खुश है, मेरे सभी दोस्त नए कपड़े पहन रहे हैं और उनके खाने के लिए स्वादिष्ट चीजें हैं, और यहां मैं हूं, मेरे पास कपड़े नहीं हैं, जिसे पहनकर ईदगाह जा सकूँ उसके अलावा खाने के लिए कोई खाना नहीं।” पैगंबर मुहम्मद (PBUH) ने उस बच्चे को दिलासा दिया और कहा, “मैं समझ सकता हूँ कि तुम इस समय कैसा महसूस कर रहे हो, जब मैं था, तो मैंने अपने माता-पिता को खो दिया था।” पैगंबर मुहम्मद (PBUH) ने मुस्कुराते हुए कहा, “क्या होगा अगर मैं तुम्हारा बाप जैसा बन जाऊं और मेरी पत्नी तुम्हारी नई माँ और मेरी बेटी तुम्हारी नई बहन, तो क्या यह तुम्हें खुश कर देगा?” “ओह! हाँ! यह दुनिया में सबसे आदर्श चीज होगी!” लड़का नई आशा के साथ मुस्कुराया। पैगंबर मुहम्मद (PBUH) उसे अपने घर ले गए और उसे ईद-उल-फितर के इस शुभ दिन पर नए कपड़े, स्वादिष्ट भोजन खिलाया।

#AnOrphanWhoAdoptedTheWorld

रमज़ान केवल खरीदारी करने और अच्छे पकवान बनाने या खाने के लिए नहीं है, बल्कि दूसरों की देखभाल करने के लिए, अल्लाह के बहुत करीब आने का एक सुनहरा अवसर है। महामारी के बाद (रमज़ान के बाद हो सकती है) रमज़ान में आप जैसे हैं वैसे ही रहें। केवल जरूरतमंदों की मदद करने के मामले में ही नहीं, बल्कि घर में दैनिक कार्यों में मां, बहनों या पत्नी की मदद करना भी आवश्यक है। यदि आप अपने आप को बदलते हैं, तो इसका प्रभाव आपके परिवार पर पड़ेगा, यदि आपका परिवार बदलता है, तो इसका प्रभाव आसपास के समाज पर पड़ेगा और आपका इलाका बाक़ी दुनिया में सकारात्मक बदलाव का एक उदाहरण होगा। रचनात्मक दिशा में दुनिया को बदलने के लिए खुद को बदलें।

 

अनुवाद: सिद्दीक़ी मुहम्मद उवैस

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