Rajiv Mittal✒ ….
दो दशक पहले तक गाँवों में विभिन्न कामों में इस्तेमाल हो रही पराली आज इसलिए जलायी जा रही है क्योंकि गाँवों में पशुधन बचा ही नहीं और विकास की आंधी छप्पर को उड़ा ले गयी.. तो दिल्ली या किसी और शहर को गैस चैम्बर बनाने का इल्ज़ाम किसान पर डालना हर निष्क्रिय सरकार की निकृष्टम मज़बूरी है…जबकि सरकारी सहयोग से और अपनी खुद की हरकतों से हम खुद अपने को मौत के मुँह में में धकेलते जा रहे हैं.. हमने और हमारे विनाशशील विकास ने देश भर के गाँवों और कस्बों को शहर का सड़ांध मारता मुहल्ला बना दिया है..
जो शहर पांच-सात किलोमीटर बाद ही खेतों या जंगलों से घिरना शुरू हो जाते थे..शहर और कस्बे या गांवों के बीच कई कई किलोमीटर के फासले होते थे..गाँव गाँव दिखता था..और क़स्बा क़स्बा, आज जिलों के विकास प्राधिकरणों ने कस्बों और गांवों की पहचान ही मिटा दी हैं….खेतों पर कॉलोनियां बस गई हैं..पशुधन आवारा हो शहरों में उसी तरह भटक रहा है और खेती छोड़ किसान- मज़दूर बन गया है या रिक्शा चला रहा है…
जो शाकाहारी जानवर गांवों से जुड़े जंगलों या बाग बगीचों में अपना जीवन काट देते थे, वो अब शहर के घरों में आतंक फैला रहे हैं..हमारे विनाशक विकास ने उनका सदियों पुराना ठिकाना ही उजाड़ दिया..और अब तो तेंदुए, भेड़िये, सियार और अजगर तक शहरों में पाये जाने लगे हैं..
विनाशशील विकास की राह में किसान रोड़ा बना हुआ बिलकुल फिजूल की चीज हो गया है गाय बैल की तरह..तो गाय बैल तो हाइवे की तेज रफ्तारी में कुचल के मर रहे हैं और किसान कीटनाशक पी कर जान दे रहे हैं..दोनों तरह की मौतें हर साल हज़ारों में पहुँच गयी हैं..
जो किसान अब तक अन्नदाता वाला दैवीय अलंकरण ओढ़े लोकतंत्र की एक मजबूत स्तम्भ वाली फर्जी गरिमा के साथ जी रहा था, अब देश का प्रमुख प्रदूषणदाता बन गया है…और उसने यह तमगा देश भर को जहन्नुम बनाये ट्रैफिक प्रदूषण और देश की आबोहवा और नदी नाले के पानी को ज़हरीला बनाने के अंतिम चरण में पहुँच चुके औद्योगिक कचरे और शहरों की गंदगी को पछाड़ कर हासिल किया है.,.
जबकि एक पूंजीपति विकास का महत्वपूर्ण हिस्सा, देश की जीडीपी का महती अंग ही नहीं होता, वरन राजनैतिक दलों और उनके नेताओं का पालनहार भी होता है…सत्ता हासिल करने की सारी ज़रूरतों को पूरा करता है, सत्ताधारी को मज़े दिलाता है, देश का नाम रोशन करता है..
देश को गैरज़रूरी नदियों, जंगलों से छुटकारा दिलाता है, एमबी वेलियाँ बना कर नेताओं और अफसरों के लिए ऐशगाहों का इंतज़ाम करता है…गैरज़रूरी मजलूमों की मौत के इंतज़ाम में हाथ बंटाता है..तो फिर शहरी गैस चैंबरों से कैसा डरना कैसा घबराना…यही गैस चैम्बर हमारे देश के विकास का आधार हैं…हिटलर ने भी तो यही किया था…रास्ते हमें दिखा तो गया..और हम उन्हीं रास्तों पर नहीं चल रहे है क्या..?
~~इस पोस्ट को अमरता प्रदान करने वाली पराली गंगा तेरा पानी अमृत समान..