हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है जिसकी सांस्कृतिक विशेषता की दुनिया दीवानी है। इसी भारतीय संस्कृति में सदियों से महिला को देवी समान समझ पूजा जाता रहा है। यदि इतिहास को खंगाले तो देश में तमाम ऐसी गौरवपूर्ण घटनाएं घटी है जिसमें महिलाएं किसी भी प्रकार के कार्य और बलिदान में पुरुषों से पीछे नहीं रही हैं। देवी शक्ति से भयभीत समय के बड़े बड़े राक्षस रहे हैं। लेकिन ऐसे गौरवशाली इतिहास को संजोए भारत विकास का चक्र पूरा करके उस अविकसित काल में पहुंच गया है जहां मानव पशुओं की भांति जीवन व्यतीत करता था।
जिस प्रकार से देश में एक के बाद एक निरंतर मानवता को शर्मसार कर देने वाली घटनाएं महिलाओं के साथ घटित हो रही हैं तो उससे ठीक यही प्रतीत होता है कि हम उस काल में जी रहे हैं जहां मनुष्य जानवरों की भांति रहा करता था, जहां कोई भावनाएं नहीं होती थी, जहां मानवता का कोई नामो निशान नहीं था, बल्कि मानव कहना भी मानवता को शर्मसार करने के समान है क्योंकि मानवता को बहुत पीछे छोड़ इस आधुनिक भौतिकवादी राक्षस दरिंदों को भी मात दे देते हैं। लेकिन यहां यह प्रश्न उठता है कि जिस देश में महिलाओं को देवी समझ पूजा जाता रहा है उस देश में महिलाओं के प्रति पुरुषों की ऐसी मानसिकता क्यों बन बैठी। क्यों उनकी हवस की भूख इतनी बढ़ती चली गयी कि उनके और दरिंदे में कोई अंतर ही नहीं रह गया?
स्थिति यहां तक पहुंच गयी कि जिस भारतीय संस्कृति द्वारा महिलाओं को विरासत में सम्मान और प्रतिष्ठा मिली थी वह भारत आज महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक और असुरक्षित देश बन गया। पिछले वर्ष थॉमसन रॉयटर्स फांउडेशन की ओर से जारी किए गए एक सर्वे में महिलाओं के प्रति यौन हिंसा, मानव तस्करी और यौन व्यापार में ढकेले जाने के आधार पर भारत को महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक बताया गया था। इस सर्वे में महिलाओं के लिए सबसे बदतर दस देशों की सूची बनाई गयी थी जिसमें पहले स्थान पर भारत विद्यमान था। ऐसा भारत जहां महिलाओं को देवी समझा जाता है।
और इस सर्वे को सत्य साबित कर दिया हाल ही में डॉ प्रियंका रेड्डी के साथ हुई निर्दयी बलात्कार की घटना ने। हमारे देश के लोगों की एक आदत यह भी है कि जितने भी गहरे घाव या जितनी भी निर्दयी घटना पूर्व में घटित हो चुकी हो उसे बड़ी आसानी से भूल जाते हैं लेकिन महिला असुरक्षा की बलि चढ़ी महिलाएं और उन्हें अपनी हवस का शिकार बनाने वाले दरिंदे इन घावों को समय समय पर कुरेदेते हुए यह याद दिला देते हैं कि हम सभ्य होकर भी असभ्य हैं। देश निर्भया के साथ हुए बलात्कार को भी भूल गया था, उसके बाद ना जाने कितनी गुमनाम लड़किया जो इन दरिदों की हवस का शिकार बन चुकी हैं उनको भी भूल गया था यहां तक कि उन्नाव रेप कांड में पीड़िता को ही दोषी समझने लगा था उस देश को प्रिंयका के साथ हुई घटना ने एक बार फिर से झकझोर कर रख दिया और यह प्रश्न खड़ा कर दिया कि यह पुरुष मानसिकता महिलाओं के प्रति इतनी निर्दयी कैसे हो सकती है?
यदि हम अपने समाज का आंकलन करें तो ज्ञात होता है कि हमने सामाजिक विकास के नाम पर केवल महिला सशक्तिकरण का नारा देकर स्वयं को सभ्य समझ लिया है लेकिन दिल में हमारे वही पुरुषवादी सत्ता और शासन हावी है जिसने महिलाओं को दोयम दर्जे का बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। महिलाओं को नारी शक्ति बनने के लिए तो पुरुषों ने उकसाया लेकिन उनकी महिलाओं को तुच्छ समझने की मानसिकता नहीं बदली बल्कि महिला सशक्तिकरण के नाम के पीछे उनकी यही मानसिकता कार्य कर रही थी जिसने महिला को एक प्रोडक्ट बनाकर बाज़ार में तो खड़ा कर दिया लेकिन समाज में हावी पितृसत्तामक सोच को परिवर्तित करने का कोई कार्य नहीं किया। इसी लिए यह मानसिकता दिन प्रतिदिन प्रगति करते हुए आज इस स्थिति पर पहुंच चुकी जहां मानव और पशु में कोई अंतर बाकी नहीं रह गया। और इसका खामियाजा निर्भया, ट्विकंल, आसिफा और तमाम गुमनाम पीड़ित लड़कियों समेत प्रियंका रेड्डी तक पहुंच गया है लेकिन यह उस समय तक रुकने वाला नहीं जब तक समाज की मानसिकता ना तब्दील हो..जब तक महिलाओं को वह सम्मान ना दिया जाए जिसकी वह प्राकृतिक रुप से हकदार है।
महिला सशक्तिकरण के नारे और पुरुषवादी मानसिकता के बीच पिसती मानवता.
पिछले वर्ष थॉमसन रॉयटर्स फांउडेशन की ओर से जारी किए गए एक सर्वे में महिलाओं के प्रति यौन हिंसा, मानव तस्करी और यौन व्यापार में ढकेले जाने के आधार पर भारत को महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक बताया गया था। इस सर्वे में महिलाओं के लिए सबसे बदतर दस देशों की सूची बनाई गयी थी जिसमें पहले स्थान पर भारत विद्यमान था